ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोविड:दिल्ली से UP तक,क्यों नॉर्थ में कोहराम,साउथ में बेहतर इंतजाम

कोरोना से लड़ने में केरल जैसे छोटे से राज्य ने देश ही नहीं दुनिया में सरहानीय मॉडल पेश किया है.

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

कोरोना की पहली लहर के बाद अब दूसरी लहर का तांडव देश भर में देखने को मिल रहा है. इन दिनों महामारी के दौरान जहां उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में ऑक्सीजन, बिस्तर और इंजेक्शन की मारामारी देखने को मिल रही है वहीं दक्षिण भारत के राज्यों की स्थिति बेहतर है. आखिर क्या वजह है कि नॉर्थ सत्ता का केंद्र है, यहां के लोग राष्ट्रीय राजनीति में ज्यादा सक्रिय हैं फिर भी उन्हें साउथ के लोगों से ज्यादा झेलना पड़ रहा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चुस्त-दुरुस्त मेडिकल व्यवस्था :

आजादी के बाद से देश की सत्ता उत्तर भारतीय राज्यों के राजनीतिज्ञों के पास ज्यादा रही है, लेकिन आज इन्हीं राज्यों में मेडिकल सुविधाओं के लिए हाहाकार मचा हुआ है. न तो पर्याप्त बेड हैं न डॉक्टर, दवा और मूलभूत सुविधाएं. नतीजन आम जनता को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. वहीं दक्षिण भारतीय राज्यों की बात करें तो वहां कोराना काल और इससे पहले से ही राज्य सरकारों ने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का काम किया है. केरल जैसे छोटे से राज्य ने देश ही नहीं दुनिया में सरहानीय मॉडल पेश किया है.

  • नीति आयोग आयोग द्वारा जारी किए गए हेल्थ इंडेक्स 2019 में केरल लगातार दूसरी बार पहले स्थान पर रहा था, वहीं उत्तरप्रदेश सबसे फिसड्डी राज्य साबित हुआ था.

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 1:1000 यानि प्रति 1000 लोगों पर एक डॉक्टर का मानक तैयार किया हुआ है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मानक के अनुसार तमिलनाडु, दिल्ली, कर्नाटक, केरल, गोवा और पंजाब में डॉक्टर और लोगों का अनुपात उम्मीद से ज्यादा अच्छा है. जबकि झारखंड, हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार और हिमाचल प्रदेश में ये आंकड़ें काफी भयावह हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
  • प्रति डॉक्टर के अनुपात में लोगों की बात करें तो तमिलनाडु में 253, दिल्ली में 334, कर्नाटक में 507, केरल में 535, गोवा में 713 और पंजाब में 789 लोगों के बीच एक डॉक्टर है.

  • वहीं हिमाचल प्रदेश में 3124, बिहार में 3207, उत्तरप्रदेश में 3767, छत्तीसगढ़ में 4338, हरियाणा में 6037 और झारखंड में 8180 लोगों के बीच एक डॉक्टर उपलब्ध हैं.

  • देशभर की स्थिति की बात करें तो लगभग 1674 लोगों के बीच एक डॉक्टर उपलब्ध है. यह हमारे मेडिकल सिस्टम की सबसे बड़ी कमियों में से एक है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सिंड्रोम बेस्ड एप्रोच :

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रोफोसर और एपिडिमियोलॉजिस्ट डॉ. गिरिधर आर बाबू आईसीएमआर और कर्नाटक कोविड टास्क फोर्स के सदस्य हैं उनका कहना है कि कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु ने सिंड्रोम बेस्ड एप्रोच के साथ टेस्टिंग पर जोर दिया. इसका मतलब है कि अगर किसी में भी कोविड का लक्षण पाया गया है तो उसकी जांच प्राथमिकता के अनुसार जरूर गई है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

प्लानिंग और एक्शन

  • कनार्टक में कोविड-19 की टेक्निकल एडवाइजरी कमेटी ने जनवरी-फरवरी में ही कोरोना की दूसरी लहर के बारे में आगाह कर दिया था और इसको ध्यान में रखते हुए जिले स्तर पर कड़ी मॉनीटरिंग की व्यवस्था की गई.

  • तमिलनाडु के हेल्थ सेक्रेटरी जे राधाकृष्णन के अनुसार टेस्टिंग के लिए स्ट्रीट वाइज एप्रोच को अपनाया गया. फीवर कैंप और क्लीनिक की हर जिले में व्यवस्था की गई. मरीजों को जल्दी हॉस्पिटलाइज्ड किया गया जिससे डेथ रेट में कमी रही. क्लस्टर के आधार पर विश्लेषण किया गया और विवाह, अंतिम संस्कार, धार्मिक गतिविधियों तथा राजनीतिक रैलियों में नजर रखी गई.

  • केरल की बात करें तो यहां देश का पहला कोविड मरीज सामने आया था. लेकिन केरल ने जिस रणनीति के साथ काम किया वह देश और दुनिया के लिए मिसाल बन गया. ओणम और लोकल बॉडी इलेक्शन के दौरान यहां एक बार फिर चिंता बढ़ रही थी, लेकिन यहां स्थिति नियंत्रण में रही. स्टेट नोडल ऑफिसर डॉ. अमर फेटल के अनुसार यहां सरकार के साथ-साथ जनता काफी जागरुक है वो खुद आगे बढ़कर टेस्टिंग के लिए आ रही है. सरकार ने यहां टेस्टिंग रणनीति को पेट्रोल के दामों की तरह प्रतिदिन बदलती रही. यहां लोकलाइज्ड टेस्टिंग स्ट्रैटजी पर जोर दिया गया.

  • केरल में ग्रासरूट स्तर पर हेल्थवर्कर और जनप्रतिनिधियों के सहयोग से कोविड नियंत्रण के लिए काम किया गया. यहां हेल्थकेयर वर्कर्स और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की टीमें राज्य के हर गांव के घर-घर तक पहुंचीं और लोगों को इस वायरस के बारे में समझाया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग :

केरल में हेल्थ वर्कर्स और पुलिस समेत पूरी मशीनरी ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और स्क्रीनिंग का काम व्यापक स्तर पर शुरू कर दिया था. केरल योजना बोर्ड के सदस्य और हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. इकबाल केरल के कोरोना से प्रभावी तौर पर निबटने के पीछे 'ग्रासरूट वर्कर्स की मदद से कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और कंटेनमेंट स्ट्रैटेजी' को वजह मानते हैं. वह कहते हैं कि हेल्थकेयर के विकेंद्रीकरण की हमारी पॉलिसी से हमें मदद मिली है. इसके जरिए हमने स्वास्थ्य सेवाओं को प्राइमरी हेल्थ सेंटर्स से जिला अस्पतालों और स्थानीय निकायों तक पहुंचाया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एडवांस व्यवस्था :

महाराष्ट्र और गुजरात से लेकर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और मध्यप्रदेश तक सभी जगह ऑक्सीजन की भारी कमी हो रही है. कुछ अस्पतालों ने बाहर ऑक्सीजन खत्म होने का नोटिस लगाए गए हैं. लेकिन एडवांस प्लानिंग और व्यवस्था के तहत केरल ने पहले तो ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ा दी और फिर इस पर कड़ी नजर रखनी शुरू की. केस बढ़ने के मद्देनजर केरल ने ऑक्सीजन सप्लाई बढ़ाने की योजना पहले से ही तैयार रखी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
  • केरल के पास अब सरप्लस ऑक्सीजन है और अब यह दूसरे राज्यों को इसकी सप्लाई कर रहा है.

  • कर्नाटक में सभी अस्पतालों को 80 फीसदी बेड्स और आईसीयू कोविड मरीजों के लिए रिजर्व में रखने का आदेश दिया गया है.

  • आंध्रप्रदेश के प्रिंसपल सेक्रेटरी अनिल कुमार सिंघल के अनुसार उनके राज्य के अस्पतालों में बेड्स और ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है. वाइजैग में 7500 बेड्स तैयार हैं. इसके साथ ही बिस्तर बढ़ाने का काम चल रहा है.

  • आंध्रा हेल्थकेयर स्कीम के तहत आंध्रप्रदेश में एक लाख लोगों का मुफ्त में कोविड का इलाज किया गया है.

अब नॉर्थ के लोगों को सोचना है कि उन्हें अपने जनप्रतिनिधियों से क्या चाहिए, जुमले या जरूरी चीजें?

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×