देशभर में कोविशील्ड की दोनों डोज के बीच के गैप को लेकर बहस चल रही है. इस बीच केंद्र सरकार की तरफ से बनाए गए कोविड वर्किंग ग्रुप के चेयरपर्सन डॉ एन के अरोरा का कहना है कि दोनों डोज के बीच जो 12 से 16 हफ्तों का गैप निर्धारित किया गया है वो भारत में किए गए ट्रायल के डेटा के हिसाब से सही है. डॉ अरोरा का कहना है कि यूके के डेटा से आए नतीजे भारत के लिए उतने सही साबित नहीं होते. उन्होंने ये भी कहा कि आंकड़ों के हिसाब से देखा गया है कि डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ कोविशील्ड की पहली डोज 61 फीसदी प्रभावी है.
एनडीटीवी से बातचीत के दौरान डॉ एन के अरोरा कहते हैं:
"जब हमने नेशनल वैक्सीनेशन प्रोग्राम की शुरुआत की थी उस वक्त दोनों डोज के बीच का गैप चार हफ्तों का था. वो भी ट्रायल के नतीजों के हिसाब से तय किया गया था, हमें पता चला था कि चार हफ्तों के अंतराल में इम्यून रिस्पॉन्स काफी अच्छा है. हालांकि, उस वक्त यूके ने पहले ही इस गैप को बढ़ाकर 12 हफ्तों का कर दिया था. ये वो समय था जब यूके अल्फा वेरिएंट से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा था. दिसंबर- जनवरी उनके लिए काफी कठिन वक्त रहा है.''
डॉ अरोरा कहते हैं कि उस वक्त हम इससे आश्वस्त नहीं थे और चार हफ्ते के अंतराल पर ही काम कर रहे थे. कुछ हफ्तों बाद WHO ने भी ये सुझाव दिया कि 6 से 8 हफ्ते का अंतराल सही आइडिया है.
हमने डेटा का रिव्यू किया और हमें यूके से जुड़ा अनुभव था ही और फिर हमने सोचा कि ये सही रहेगा कि गैप को 6 से 8 हफ्तों का कर दिया जाए.एनडीटीवी से बातचीत में डॉ अरोरा
हालांकि, वर्किंग ग्रुप ने यूके के आ रहे रियल लाइफ डेटा को भी देखने का तय किया. तब तक यूके में AstraZeneca यानी भारत में Covishield के सबसे ज्यादा कंज्यूमर थे. डॉ अरोरा ने आगे कहा कि अप्रैल में पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड ने सुझाया कि 12 हफ्ते के अंतराल देने पर वैक्सीन 65 फीसदी से 80 फीसदी तक प्रभावी रहती है. ये वो समय था जब भारत डेल्टा वेरिएंट के प्रकोप से जूझ रहा था.
डॉ अरोरा ने बताया कि CMC वेल्लोर ने अहम आंकड़ों और डेल्टा संक्रमण के दौरान हजारों केस को ध्यान में रखते हुए ये दिखाया कि कोविशील्ड की पहली डोज इस वेरिएंट के लिए 61 फीसदी और दोनों डोज के साथ 65 फीसदी प्रभावी है.
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