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पापा नहीं रहे, कोविड ने 14 साल के बच्चे को बड़ा बना दिया

मेरे पति की तनख्वा से ही हमारा घर चलता था. मुझे नहीं पता अब में बाकि खर्च कैसे करूंगी, बच्चों को कैसे पढ़ाऊंगी.

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Coronavirus की दूसरी लहर के दौरान करोना ने ना केवल लोगों को अपनी चपेट में लेकर उनके स्वास्थ्य पर हमला किया, बल्कि कई परिवारों और उनके घरों को भी उजाड़ कर रख दिया. उनके भविष्य को भी अंधेरे में ढकेल दिया.

ऐसे ही दिल्ली के एक हंसते-खेलते परिवार के भविष्य पर भी कोरोना ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया.

दिल्ली (Delhi) के एक एनजीओ में काम करने वाले अर्जुन की कोरोना से मौत हो गई थी. परिवार में अर्जुन की पत्नि कविता के अलावा दो बच्चे भी हैं. पूरा परिवार केवल अर्जुन की कमाई पर ही निर्भर था.

अर्जुन की मासिक आय 35 हजार रुपए थी. लेकिन अर्जुन की मौत के बाद परिवार के पास घर के किराए के लिए पैसे तक नहीं थे. अब कविता और बच्चे, अर्जुन की बहन के घर पर रह रहे हैं.

मेरे पति की तनख्वाह से ही हमारा घर चलता था. मुझे नहीं पता कि अब मैं बाकी खर्च कैसे निकालूंगी, बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी. हम घर का किराया नहीं दे सकते. मेरे पति ने पर्सनल लोन भी लिया है, बैंक वाले लोन चुकाने के लिए रोज फोन करते हैं. लेकिन मेरे पास पैसे नहीं है.
कविता, अर्जुन की पत्नि
  • 01/02

    कविता, अर्जुन और बच्चे

    (Photo courtesy: Kavita)

  • 02/02

    कविता और अर्जुन

    (Photo courtesy: Kavita)

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'एक दिन में 7 अस्पतालों के चक्कर काटे'

कविता ने बताया कि वो एक ही दिन में सात अस्पतालों में अपने पति को लेकर गईं, लेकिन कहीं इलाज नहीं मिला.

एक दिन में ही मैं उन्हें ब्रह्म शक्ति हॉस्पिटल, दीपचंद बंधु हॉस्पिटल, एसजीएस हॉस्पिटल और जीटीबी हॉस्पिटल ले गई. जब मैं उन्हें ब्रह्म शक्ति हॉस्पिटल ले गई तब उनकी हालत बहुत खराब हो गई थी. मैंने उन्हें ऑक्सीजन देने के लिए डॉक्टर्स से प्रार्थना की. लेकिन डॉक्टर्स ने बेड न होने की वजह से उन्हें एडमिट नहीं किया. मैं वहीं रोने लगी, उनके सामने हाथ जोड़े. लेकिन उन्होंने मेरे पति को एक बार भी नहीं देखा. वो कार में ही पड़े रहे.
कविता

अर्जुन की मौत उस वक्त हुई जब वह जीटीबी हॉस्पिटल के गेट पर पहुंचे. वहां पहुंचते ही अर्जुन ने दम तोड़ दिया था.

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'मुझे वहां केवल लाशें ही दिखी'

कविता ने कहा कि जीटीबी अस्पताल की हालत बहुत खराब थी. वहां केवल डेड बॉडीज ही देखने को मिल रही थी. वहां का स्टाफ डेड बॉडी को बड़े अनादर से बस फेंक रहा था.

अर्जुन की कोरोना की पॉजिटिव होने की रिपोर्ट उनकी मौत के तीन दिन बाद आई. कविता बताती हैं कि अस्पताल का स्टाफ बिल्कुल भी संवेदनशील नहीं था, हालांकि अस्पताल में स्टाफ की कमी के कारण भी ऐसा हो सकता है.

कविता कहती हैं कि आने वाले साल बहुत ही कठिन होने वाले हैं. वह चाहती है कि सरकार उनकी मदद करे, ताकि वह अपने बच्चों का पालन पोषण कर उन्हें अच्छी दे सकें. कविता का मानना है कि अच्छी शिक्षा मिलने से ही भविष्य बेहतर किया जा सकता है.

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