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COVID-19 के बहाने देशभर में हो रहे मुसलमानों पर हमले

मस्जिदों और मुसलमानों के द्वारा चलाए जाने वाले कारोबारों को भी निशाना बनाया गया है

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COVID-19 के खतरे की वजह से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बावजूद भारत के अलग-अलग हिस्सों में पिछले कुछ दिनों से मुसलमानों पर हमले बढ़े हैं. न केवल मुसलमानों को, बल्कि मस्जिदों और मुसलमानों के द्वारा चलाए जाने वाले कारोबारों को भी निशाना बनाया गया है.

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उत्तराखंड

उत्तराखंड के हलद्वानी में कुछ लोगों ने मुस्लिम विक्रेताओं को धमकाया और दुकानें बंद करने को कहा. स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस तरह से हिंदू विक्रेताओं को धमकी नहीं दी गई. सोशल मीडिया पर इस किस्म का वीडियो वायरल हुआ.

उन लोगों ने कथित तौर पर कहा कि मुस्लिम फल विक्रेता वायरस का संक्रमण कर सकते हैं और इसलिए वे भाग जाएं.

उत्तराखंड पुलिस का दावा है कि नैनीताल में एक केस दर्ज किया गया है. पुलिस ने वादा किया कि आगे की कार्रवाई की जाएगी.

खबरों के मुताबिक, 6 लोगों पर इस मामले में केस दर्ज हुए हैं.

हरियाणा

हरियाणा में अब तक ऐसे दो हमले हुए हैं जिनकी पुष्टि हुई है.

जींद

हरियाणा के जींद जिले में एक मुस्लिम परिवार पर कथित रूप से उसके हिंदू पड़ोसी ने इसलिए हमला किया क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर ‘9 बजे, 9 मिनट’ कार्यक्रम के दौरान घर की बत्तियां नहीं बुझाईं.

मुस्लिम परिवार और हिंदू पड़ोसी के बीच 5 अप्रैल की रात पीएम के अभियान को लेकर कथित तौर पर उस समय बहस हुई, जब कुछ हिंदुओं ने पटाखे फोड़ने शुरू किए.

अगले दिन मुस्लिम परिवार के चार भाइयों- बशीर खान, सादिक खान, नजीर खान और संदीप खान- पर कथित रूप से उनके हिंदू पड़ोसियों ने धारदार हथियारों से हमला कर दिया. सभी को उनके सिर पर चोटें आई हैं.

एक पड़ोसी संजय कुमार ने बीबीसी हिंदी को बताया कि झगड़ा इसलिए हुआ क्योंकि मुस्लिम परिवार ने ‘बत्ती बुझाने की पीएम की अपील का सम्मान’ नहीं किया.

गांव के प्रधान रमेश कुमार भी हिंदुओं का साथ लेते दिखे. बीबीसी हिंदी के मुताबिक, उन्होंने कहा, “झगड़ा टाला जा सकता था, अगर सारे परिवारों ने अपनी बत्ती बंद कर दी होतीं.” बताया जाता है कि हमला करने के आरोप में चार लोगों पर केस दर्ज किया गया है.

गुरुग्राम

हरियाणा में एक और हमला 4 और 5 अप्रैल की दरम्यानी रात हुआ. गुरुग्राम के धनकोट गांव में मस्जिद पर गोलियां दागी गईं. कोई घायल नहीं हुआ. मस्जिद के इमाम की ओर से एक शिकायत दर्ज की गई है जो घटना के समय इमारत के भीतर सो रहे थे. खाली कारतूस घटना स्थल से बरामद किए गए. लेकिन, गोलियां चलाने वालों की पहचान पुलिस अब तक नहीं कर सकी है.

दिल्ली

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने दिल्ली पुलिस को यह दावा करते हुए नोटिस भेजा है कि उत्तर पश्चिम दिल्ली में अलीपुर के पास मुखमलपुर में एक मस्जिद पर हमला हुआ.

दिल्ली अल्पसंख्यक कमेटी के चेयरपर्सन डॉ. जफर उल इस्लाम खान के मुताबिक, करीब 200 लोगों ने 3 अप्रैल को मस्जिद पर हमला किया.अल्पसंख्यकों के पैनल ने आरोप लगाया है कि मस्जिद में तोड़फोड़ की गई और उसे आंशिक रूप से जला दिया गया.

बहरहाल दिल्ली पुलिस ने ऐसी किसी घटना की जानकारी होने से इनकार किया है.

पंजाब

द वायर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब के होशियारपुर जिले में मुस्लिम गुज्जर समुदाय से संबंधित दूध विक्रेताओं को कुछ हिंदू बहुल गावों में पीटा गया.

रिपोर्ट में कहा गया है, “होशियारपुर जिले के हाजिरपुर और तलवारा प्रखंड में मुस्लिम गुज्जर समुदाय के कई परिवारों को हिंदू बहुल गांवों में बेकाबू भीड़ ने कथित तौर पर पीटा. सामाजिक बहिष्कार के बीच गुज्जरों को सैकड़ों लीटर दूध ब्यास नदी की ओर बहने वाले नाले में फेंकना पड़ा क्योंकि उन्हें अपनी झोपड़ियों से बाहर निकलने की इजाजत नहीं दी गई.''

हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में एक मुस्लिम गुज्जर दूध विक्रेता ने कथित रूप से सामाजिक बहिष्कार के बाद अपनी जान ले ली.

कर्नाटक

कर्नाटक में कुछेक गंभीर साम्प्रदायिक हमलों की पृष्ठभूमि भी यही है.

बागलकोट

इस हफ्ते की शुरुआत में बागलकोट जिले के बिदारी गांव में एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उन मुसलमानों को लातों से मारते और अपमानित करते देखा जा सकता है जो कृष्णा नदी पर मछली मारने गए थे. हमलावर यह कहते सुने जा सकते हैं, “तुम्ही लोग (मुसलमान) हो जो रोग (COVID-19) फैला रहे हो.”

इसी जिले के कादाकोरप्पा गांव में एक अन्य घटना घटी, जहां कहा जाता है कि गुंडों ने एक मस्जिद में घुसकर नमाज पढ़ते लोगों पर हमला किया.

बेलागावी

एक अन्य घटना में 5 अप्रैल की रात बेलागावी में दो मस्जिदों पर कथित रूप से हमले किए गए. पुलिस के मुताबिक इन मस्जिदों पर हमले इसलिए हुए क्योंकि 5 अप्रैल की रात 9 बजे 9 मिनट तक बत्ती बंद रखने की पीएम की अपील के बावजूद उन्होंने अपनी बत्ती नहीं बुझाईं.

न्यूज मिनट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों मामलों में हमलावर मस्जिद में घुस गए और बत्ती बुझाने की मांग की. बताया जाता है कि पुलिस ने 20 से ज्यादा लोगों को इन दो घटनाओं के सिलसिले में गिरफ्तार किया है.

बेंगलुरु

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में स्वराज अभियान कार्यकर्ताओं पर कथित रूप से क्रिकेट के बैट से हमले किए गए जब वे लोग फंसे हुए प्रवासी मजदूरों में खाना बांट रहे थे. एक कार्यकर्ता सैय्यद तबरेज ने क्विंट को बताया, “हम पुलिस की इजाजत से काम कर रहे थे. लेकिन आज (सोमवार 6 अप्रैल को) उन लोगों ने (गुंडों ने) हमारा पीछा किया और बैट से हमें मारा. उन्होंने कुछ कहा नहीं. उन्होंने मेरे हाथ और सिर पर मारा.”

तबरेज ने हमले से कुछ दिन पहले दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के साथ शुरुआती तकरार को याद करते बताया, “उन्होंने हमें कहा था कि वे लोग उन्हें खाना बांटने नहीं देंगे क्योंकि हम सब निजामुद्दीन से आए हैं. उन्होंने कहा कि वायरस केवल तुम लोगों के कारण फैल रहा है और इसलिए खाना नहीं बांट सकते. कुछ दिक्कतें यहां थीं. तब पुलिस ने हमारी मदद की और कहा कि हम खाना बांट सकते हैं.” स्वराज अभियान कार्यकर्ताओं पर खाने में थूकने का भी इल्जाम लगाया गया.

मंगलुरु

उसके बाद मंगलुरु के सेकेंड कोल्या में चिपकाए गए पोस्टर में कहा गया, “सेकेंड कोल्या कनीरटोटा के लोगों के हित में, जब तक कोरोना वायरस पूरी तरह से नहीं चला जाता तब तक किसी मुस्लिम कारोबारी को गांव में घुसने की इजाजत नहीं. हस्ताक्षर : सभी हिंदू, सेकेंड कोल्या.”

ऐसे हमलों को संज्ञान में लेते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने वायरस के लिए मुस्लिम समुदाय को जिम्मेदार नहीं ठहराने की चेतावनी दी.

मुसलमानों, उनके कारोबार और उनसे जुड़े स्थानों पर बीते कुछ दिनों में COVID-19 से जुड़े हमलों की यह पूरी लिस्ट नहीं है बल्कि कुछेक सत्यापित या दर्ज की गई घटनाएं हैं.

ऐसा लगता है कि मार्च के महीने में दिल्ली में हुए तबलीगी जमात के कार्यक्रम से लौटने वाले कई लोगों में वायरस टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद से ये हमले बढ़े हैं.

इस बीच वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन इमरजेंसी प्रोग्राम के डायरेक्टर माइक रायन ने COVID-19 मामलों को धार्मिक नजरिए से न देखने के लिए कहा है.

सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “COVID-19 का मरीज होना किसी का गुनाह नहीं है. हर मामले में कोई पीड़ित है. यह बहुत अहम है कि हम नस्ल, धर्म और पहचान के आधार पर मामलों को न देखें.”

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