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पानी नहीं, शौचालय नहीं- ऐसे चुनाव ड्यूटी को मजबूर CRPF जवान

असिस्टेंट कमांडेंट की मुख्य चुनाव आयुक्त को चिट्ठी, झारखंड चुनाव ड्यूटी पर तैनात सीआरपीएफ जवानों की दिक्कतें बताईं

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सर, लगता है कि इस देश में आतंकवादियों और नक्सलियों के बाद ही हमारे जवानों के मानवाधिकारों की बारी आती है. 
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यह उस चिट्ठी का हिस्सा है,जो सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट राहुल सोलंकी ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को लिखी है. इसमें उन दिक्कतों का जिक्र है, जिन्हें, झारखंड में चुनाव ड्यूटी पर तैनात सीआरपीएफ जवान झेल रहे हैं. इन हालातों को सोलंकी ने 'अमानवीय और दयनीय' करार दिया है.

जवानों की सेहत और उनके लिए साफ-सफाई के प्रति सिविल अधिकारियों का इस तरह का अमानवीय और दयनीय रवैया और कुछ नहीं बल्कि उनकी गरिमा और मानवाधिकार का उल्लंघन है.

सोलंकी ने 23 नवंबर 2019 को मुख्य मुख्य चुनाव आयुक्त को जो चिट्ठी लिखी है, उसे द क्विंट ने देखी है. सोलंकी ने इस चिट्ठी में लिखा है कि झारखंड के लिए ट्रेन से सफर शुरू करने के साथ ही सीआरपीएफ जवानों के सामने खाना, पानी और साफ-सफाई जैसी बेसिक सुविधाओं की दिक्कतें आने लगी थीं.

सीआरपीएफ के एक प्रवक्ता ने चिट्ठी के बारे में कहा, ‘’जवानों के ज्यादातर मामले सुलझा दिए गए हैं. दूसरे मुद्दे भी सुलझाने की कोशिश हो रही है ताकि जवानों को ठहरने-खाने औैर दूसरी चीजों में सहूलियत हो.’’

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पर्याप्त टॉयलेट्स नहीं

जवानों की दिक्कतें खत्म हुईं या नहीं , यह पता करने के लिए द क्विंट ने जवानों से संपर्क किया. लेकिन यह जान कर दंग रह गए कि सीआरपीएफ ने गुमराह करने वाला बयान दिया है.

चिट्ठी में कहा गया है कि सीआरपीएफ के जवानों को झारखंड में कुकूकाला के माध्यमिक विद्यालय में ठहरने के लिए कहा गया था. इस को-एड स्कूल में 600 स्टूडेंट हैं. इनमें 280 लड़के और 320 लड़कियां हैं. लेकिन स्कूल में सिर्फ दो टॉयलेट हैं. इनमें से एक टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ के लिए है.

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सिविल अधिकारियों से बार-बार अनुरोध करने के बाद भी जवानों के लिए पीने के पानी का कोई इंतजाम नहीं हुआ. सिविल पुलिस कह रही है कि पीने का पानी सिर्फ पैसे देने पर ही मुहैया कराया जा सकता है. 
चिट्ठी का एक अंश 

चूंकि सीआरपीएफ जवानों के लिए दो टॉयलेट पर्याप्त नहीं थे. इसलिए सिविल पुलिस ने बांस और काले पॉलीथिन का इस्तेमाल कर एक टॉयलेट ब्लॉक अलग से बनाया. सोलकी कहते हैं, ये कुछ भी हो सकते हैं लेकिन टॉयलेट नहीं.

नाम न बताने की शर्त पर जवानों ने कहा, झारखंड में चुनाव ड्यूटी पर 3000 सीआरपीएफ कर्मियों को तैनात किया गया है. हमें पता चला है कि ज्यादातर सीआरपीएफ जवानों के लिए ऐसे ही टॉयलेट बनाए गए हैं.
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खरीद कर पानी पी रहे हैं जवान

द क्विंट को सीआरपीएफ जवान से पता चला कि वे खरीद कर पानी पी रहे हैं.

सीआरपीएफ जवानों को हर दिन खाने के लिए 117 रुपये मिल रहे हैं. जब हमने अपने वरिष्ठों से पानी के पैसे देने को कहे तो उन्होंने कहा कि पानी, खाने का ही हिस्सा है. इसलिए इसके लिए अलग से पैसा नहीं मिलेगा.
सीआरपीएफ जवान ने बताया 
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न गद्दे,न तकिया और न ही आराम के लिए पर्याप्त जगह

जवानों से क्विंट को पता चला कि जवान झारखंड में एक स्कूल में रुके हुए हैं. हालांकि यह जगह साफ सुथरी है. लेकिन उन्हें पर्याप्त जगह नहीं मुहैया कराई गई है.

एक क्लासरूम (18x20 फीट) में 15 जवान रह रहे हैं, जवान बगैर गद्दे और तकियों के जमीन पर सो रहे हैं.
सीआरपीएफ जवान ने बताया 
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आईआरसीटीसी ने घटिया खाना मुहैया कराया

चिट्ठी के मुताबिक सीआरपीएफ जवानों की शिकायत है कि बिलासपुर स्टेशन पर आईआरसीटीसी की ओर से मुहैया कराए गए लंच की क्वालिटी अच्छी नहीं था. उनका कहना था कि आईआरसीटीसी का खाना ‘खाने लायक नहीं’ था.

जवानों ने स्कूल के गलियारों में एक अस्थानीय किचन बना लिया है. एक जवान ने बताया कि वे पर्याप्त सूखा राशन लेकर चलते हैं. इसलिए उन्हें खाने की कोई दिक्कत नहीं आ रही है.

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‘पुलिस के डर से काम कर रहे हैं स्थानीय ड्राइवर’

झारखंड में लोकल मूवमेंट के लिए सीआरपीएफ जवानों को छह गाड़ियां और छह ड्राइवर दिए गए हैं. सोलंकी ने चिट्ठी में लिखा है कि ड्राइवर इस तरह की ड्यूटी कराने पर शिकायत कर रहे हैं. लेकिन वे ‘पुलिस के डर’ से काम कर रहे है

ड्राइवर शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें वक्त पर पैसा नहीं दिया जा रहा है. उनके खाने का भी इंतजाम नहीं किया गया है. हम मानवता के आधार पर उन्हें खाना दे रहे हैं. ड्राइवरों का कहना है उनके  पास पैसा नहीं है. 
चिट्ठी का हिस्सा 

एक जवान ने क्विंट को बताया कि सीआरपीएफकर्मी अक्सर बेसिक सुविधाओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी का सामना करते हैं. लेकिन सुरक्षा चिंताओं की वजह से शायद ही वे कभी इस बारे में शिकायत करते हैं. 2019 में लोकसभा चुनावों के दौरान देश के दूर-दराज के इलाकों में शांति और कानून-व्यवस्था बरकरार रखने के लिए लगभग दो लाख सीआरपीएफ जवान तैनात किए गए थे. इस दौरान अपनी कठिनाइयों के बारे में ये जवान शायद ही शिकायत करते हैं. लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि सरकार इनकी बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज कर दे. अगर उन्हें बेसिक सुविधाएं भी नहीं दी जाएंगी तो वे अपना काम कैसे करेंगे?

सोलंकी की चिट्ठी के बारे में द क्विंट ने चुनाव आयोग से जानकारी मांगी है. चुनाव आयोग का जवाब मिलते ही हम इस स्टोरी को अपडेट करेंगे.

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