गैर सरकारी संस्थान 'सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट' (सीएसई) का मानना है कि अगर साल 2019 तक देश में खुले में शौच मुक्त होने का टारगेट रखा है, तब इसको पूरा करने के लिए 6 करोड़ 40 लाख परिवार के लिए शौचालय का बनाना जरूरी है.
सीएसई के मुताबिक, अभी भी देश में 60 फीसदी आबादी खुले में शौच करती है. सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने गुरुवार को पटना में ग्रामीण स्वच्छता रिपोर्ट पत्रकारों के सामने रखी. उन्होंने कहा कि भारत तब तक स्वच्छता के लक्ष्यों को पूरा नहीं कर सकता, जब तक बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिशा राज्य को खुले में शौच से मुक्त नहीं बनाया जाता.
उन्होंने कहा कि देश में 60 फीसदी आबादी खुले में शौच करती है, जिसमें ज्यादातर लोग बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिशा में रहते हैं.
79 लाख शौचालयों की हालत इस्तेमाल करने लायक नहीं है, जिस कारण खुले में शौच के खिलाफ लड़ाई विफलता की ओर बढ़ रही है.सुनीता नारायण, निदेशक, सीएसई
शौचालयों को इस्तेमाल के लायक बनाए रखना जरूरी
सुनीता ने कहा कि शौचालयों का बनवाना और शौचालयों का उपयोग करवाना, दो अलग-अलग बातें हैं. केवल शौचालयों के बनाने से ही सबकुछ हल नहीं हो सकता. साफ सफाई के लिए शौचालयों को इस्तेमाल के लायक बनाए रखना भी होगा.
निदेशक सुनीता के मुताबिक, बिहार में शौचालय तो बन रहे हैं, लेकिन ज्यादातर का इस्तेमाल चारा और मवेशियों को रखने के लिए हो रहा है. इस तरह बेकार पड़े शौचालयों में से एक फीसदी शौचालय इस्तेमाल लायक नहीं रह गए हैं.
सरकारी योजना के तहत शौचालय तो बन रहे हैं, लेकिन इस्तेमाल को लेकर लोगों को पहले से जागरूक नहीं किया जा रहा है.
ग्रामीण साफ सफाई के मामले में बिहार काफी पीछे है. देश में 6.40 करोड़ परिवार बिना शौचालय के हैं और ऐसे 22 फीसदी परिवार बिहार में हैं. स्कूलों में शौचालयों के नहीं रहने या उसके इस्तेमाल के लायक नहीं रहने के कारण 50 फीसदी से ज्यादा लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं.
(इनपुट IANS से)
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