भारत के दलवीर भंडारी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) भारी बहुमत से जज चुन लिए गए हैं. मुकाबला तगड़ा था लेकिन भारत की अचूक कूटनीति और भारी समर्थन ने अपना काम कर दिया. ऐसे में ब्रिटेन ने अपने उम्मीदवार क्रिस्टोफर ग्रीनवुड का नाम ऐन मौके पर वापस ले लिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश मंत्रालय को इस सफल कूटनीत का श्रेय दिया है. प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में संयुक्त राष्ट्र को भी भारत पर भरोसे के लिए बहुत धन्यवाद दिया है.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर खुशी का इजहार किया. सुषमा ने लिखा है 'वंदे मातरम- इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भारत की जीत हुई. जय हिंद'.
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी ICJ में जज की आखिरी सीट के लिए वोटिंग में भंडारी को जनरल असेंबली में 183 वोट और सुरक्षा परिषद में सभी 15 वोट मिले. ब्रिटेन के लिए यह बहुत बड़ा झटका है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के 71 सालों में ये पहला मौका है जब यहां कोई ब्रिटिश जज नहीं होगा. लेकिन भारत ने इतनी बड़ी कूटनीतिक सफलता कैसे हासिल की..
दलवीर भंडारी की कैसे हुई जीत?
भारत और ब्रिटेन दोनों किसी भी कीमत पर जीतना चाहते थे. आखिर ये अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा का सवाल था. पहले ब्रिटेन के पक्ष में पड़ला भारी था क्योंकि वो सिक्योरिटी काउंसिल का स्थायी सदस्य भी है. उसे दूसरे स्थायी सदस्यों ने समर्थन का भरोसा दिया था. एक एक राउंड रोमांचक हो रहा था. लेकिन धीरे धीरे भारत के लिए समर्थन बढ़ने लगा और 11वें राउंड तक भारत के भंडारी ने ब्रिटेन के ग्रीनवुड से बढ़त बना ली.
दलवीर भंडारी को जनरल असेंबली में बढ़त मिल चुकी थी. अब भारत का लक्ष्य था सिक्योरिटी काउंसिल में समर्थन बढ़ाना. भारत ने पूरी ताकत इसमें झोंक दी
कमाल तो तब हुआ जब सिक्योरिटी काउंसिल में आगे चल रहे ब्रिटेन के वोट कम होने लगे. क्रिस्टोफर ग्रीनवुड ने 11 राउंड तक मुकाबला खींचा. लेकिन भारत की कूटनीति काम कर गई. जब ब्रिटेन को लगा समर्थन कम भी होने लगा है तो 12 वें राउंड में चुनाव से पहले ब्रिटेन के राजदूत मैथ्यू राइक्रॉफ्ट ने चिट्ठी ही लिख दी कि अब और समय खराब करने की जरूरत नहीं.
चुनाव के अगले चरण के लिए सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा का कीमती समय बर्बाद करना गलत है.मैथ्यू राइक्रॉफ्ट, UN में ब्रिटेन के राजदूत
जस्टिस भंडारी का दूसरा कार्यकाल 9 साल का होगा. वो फरवरी 2018 से काम शुरू करेंगे. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में कुलभूषण जाधव की सुनवाई के वक्त दलवीर भंडारी जज भी जज की कुर्सी पर थे.
आखिरी जज के चुनाव में अटका था पेंच
भारत की जीत से पहले ये माना जा रहा था कि ब्रिटेन को सिक्योरिटी काउंसिल के स्थायी सदस्यों अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन का समर्थन मिलने के पूरे आसार हैं. लेकिन भारत ने मुकाबला करना नहीं छोड़ा. आखिरकार ब्रिटेन को अपने हाथ पीछे खींचने को मजबूर होना पड़ा. अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में 15 जज चुने जाने थे जिनमें से 14 जजों का चुनाव हो चुका था. 15वें जज के लिए ब्रिटेन की तरफ से ग्रीनवुड और भारत की ओर से जस्टिस भंडारी उम्मीदवार थे.
क्यों ब्रिटेन इतना उतावला था?
दरअसल अंतराष्ट्रीय कोर्ट के 71 साल के इतिहास में अब तक ऐसा नहीं हुआ कि कोई सिक्योरिटी काउंसिल का किसी स्थायी सदस्य सीट के लिए पीछे हटना पड़ा हो. कोर्ट की स्थापना के वक्त से ही ब्रिटेन इसका सदस्य था. लेकिन इस बार भारत की मजबूत दावेदारी से उसे हार का सामना करना पड़ा.
क्या है इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस?
आईसीजे यूनाइटेड नेशन की जुडिशियल बॉडी है. इसकी स्थापना यूनाइटेड नेशन के चार्टर के जरिये जून 1945 में की गई थी और अप्रैल 1946 में आईसीजे ने काम करना शुरू किया था.
आईसीजे में कुल 15 जज होते हैं, जिनका कार्यकाल 9 साल के लिए होता है. इसे यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली और सिक्योरिटी काउंसिल द्वारा चुने जाते हैं.
आईसीजे की 15 सदस्यीय बेंच के एक तिहाई सदस्य हर 3 साल में चुने जाते हैं. इनका कार्यकाल 9 साल का होता है. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद के सदस्य वोटिंग करते हैं.
क्या काम करता है आईसीजे?
आईसीजे अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक कानूनी विवादों पर फैसला सुनाता है. मतलब आमतौर पर दो देशों के बीच विवाद पर फैसले सुनाता है. साथ ही यूएन के बाकी संगठनों को कानूनी राय भी देता है.
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