केंद्र ने बुधवार को निजी डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को लोकसभा में पेश किया. यह विधेयक सरकार को फेसबुक, गूगल समेत कई कंपनियों से कॉन्फिडेंशियल प्राइवेट डेटा और गैर-निजी डेटा के बारे में पूछने का अधिकार देता है. इस बिल का कांग्रेस और तृणमूल ने सख्ती से विरोध किया और इसे नागरिकों के 'मूलभूत अधिकारों का हनन' बताया. दोनों दलों ने इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति में भेजे जाने की वकालत की.
बिल के समर्थन में रविशंकर प्रसाद का तर्क
निचले सदन में विधेयक को पेश करते हुए, इलक्ट्रॉनिक्स और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने विपक्ष के विरोध को खारिज कर दिया और कहा कि इस डेटा संरक्षण विधेयक से, भारतीयों के अधिकारों की रक्षा होगी.
“विधेयक के अनुसार, अगर डेटा किसी की सहमति के बगैर लिया गया तो आपको दंड का भुगतान करना होगा.”
उन्होंने कहा,
“दूसरा यह है कि अगर आप सहमति से परे जाकर डेटा का दुरुपयोग करते हैं, तो आपको इसके परिणाम भुगतने होंगे. इसलिए इस डेटा प्रोटेक्शन बिल के जरिए हम भारतीयों के अधिकार की रक्षा करते हैं.”
विपक्ष का दावा
विपक्ष के दावे कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता को किसी शख्स के मूलभूत अधिकार के तौर पर बरकरार रखा जाना चाहिए. मंत्री ने कहा कि सदस्य सही हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि एक भ्रष्ट व्यक्ति के पास निजता का अधिकार नहीं होता है. विधेयक पर आपत्ति जताते हुए, कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने कहा, "हमारी निजता पहले से ही खतरे में है."
“हमारी निजता पहले से ही खतरे में है. आपके नेतृत्व में जासूसी उद्योग फल-फूल रहा है.जब हमारी निजता खतरे में थी, जब हमारे लोग सुप्रीम कोर्ट में निजता की लड़ाई लड़ रहे थे, उस समय भी मैंने सोचा था कि इस तरह के विधेयक की अच्छे तरीके से जांच होनी चाहिए.”
उन्होंने कहा, "सरकार को इस तरह के 'अभिमानपूर्ण' तरीके से इस विधेयक को नहीं लाना चाहिए. मैं जानता हूं आप संख्याबल के मामले में बहुमत में हैं, लेकिन आप इस तरह के विधेयक को इस अभिमानपूर्ण तरीके से हमपर थोप नहीं सकते. इस विधेयक की संयुक्त संसदीय समिति(जेपीसी) से अच्छी तरह से जांच किए जाने की जरूरत है."
वहीं तृणमूल के सौगत रॉय ने भी विधेयक का विरोध किया और कहा कि इस विधेयक की कोई जरूरत नहीं है. यही स्थिति जारी रहती है तो हमारे पास व्यवसाय बदलने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होगा.
‘2,000 परामर्श हमें प्राप्त हुए थे. चर्चा के बाद, हम यहां आए हैं’
रविशंकर प्रसाद ने कहा,
“सुप्रीम कोर्ट ने आधार मामले में खुद ही जोर देते हुए कहा था कि हमें निश्चित ही डेटा संरक्षण कनून लाना चाहिए. इसलिए, यह सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश है कि हमें निश्चित ही डेटा प्रोटेक्शन कानून को लाना चाहिए.”
मंत्री ने यह भी साफ किया कि सरकार यह विधेयक लेकर अचानक नहीं आई है और उसने यह फैसला लेने से पहले सुप्रीम कोर्ट के प्रतिष्ठित न्यायाधीश बी.एन. श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था. उन्होंने कहा,
“उन्होंने सदस्य समिति का भी गठन किया था. उन्होंने बड़े पैमाने पर पूरे देश से परामर्श लिया था. कम से कम 2,000 परामर्श हमें प्राप्त हुए थे. चर्चा के बाद, हम यहां आए हैं.”
कई विशेषज्ञों ने भी उठाए सवाल
कई कानून विशेषज्ञों ने पहले ही इस मुद्दे पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि यह प्रावधान सरकार को देश में यूजर्स के निजी डेटा के असीमित एक्सेस की इजाजत देता है
बता दें कि विधेयक के बारे में ये सामने आया कि विधेयक का नया प्रारूप कुछ मामलों में निजी और गैर-निजी डेटा को खासकर के राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में इस्तेमाल करने की अनुमति देता है.
(इनपुट: IANS)
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