दिल्ली के एक कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि राजद्रोह एक पावरफुल टूल है और शरारती तत्वों को सबक सिखाने के नाम पर विरोध की आवाज को दबाने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने किसानों के विरोध प्रदर्शन को लेकर फेसबुक पर फर्जी वीडियो पोस्ट करने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए ये टिप्पणी की.
अपने आदेश में एडिशनल सेशन जज धर्मेद्र राणा ने कहा,
“समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए राजद्रोह का कानून सरकार के पास एक पावरफूल टूल है. हालांकि, उपद्रवियों को शांत करने के के नाम पर इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.”
जज ने कहा कि कानून ऐसे सभी कृत्य के खिलाफ है, जिसमें हिंसा का सहारा लेकर सार्वजनिक शांति की गड़बड़ी या अशांति पैदा करने की प्रवृत्ति होती है.
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मामले में आरोपी देवीलाल बुड़दक और स्वरूप राम, 4 और 5 फरवरी से पुलिस हिरासत में हैं. बुड़दक एक फाइनेंस कंपनी में काम करता है, वहीं राम मजदूर हैं.
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि बुड़दक ने अपने फेसबुक पोस्ट पर एक फेक वीडियो शेयर किया, जिसकी टैगलाइन थी, “दिल्ली पुलिस में बगावत, 200 पुलिसकर्मियों ने दिया सामुहिक इस्तीफा.” सरकार ने बताया कि ‘वीडियो एक ऐसी घटना से संबंधित था जिसमें खाकी (होमगार्ड के जवान) पहने कुछ लोग झारखंड सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे.’
हालांकि सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि वीडियो में दिल्ली पुलिस का एक वरिष्ठ अधिकारी नारे लगाता दिख रहा है और उसके पीछे दिल्ली पुलिसकर्मी खड़े हैं. कोर्ट ने कहा कि वीडियो में बैकग्राउंड आवाजों से लगता है कि माहौल बेहद गर्म था.
मामले की जांच कर रहे अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि आवेदक ने ये पोस्ट नहीं की था, और इसे केवल फॉरवर्ड किया था. अदालत ने आरोपी को 50,000 रुपये के मुचलके पर जमानत दे दी है.
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