दिल्ली के एक कोर्ट ने आदेश दिया था कि दिल्ली दंगों (Delhi Riots) में अपनी बाईं आंख खोने वाले मोहम्मद नासिर की शिकायत पर FIR दर्ज की जाए. पुलिस ने इस आदेश को चुनौती दी थी. हालांकि, कड़कड़डूमा कोर्ट के जज विनोद यादव ने पुलिस की याचिका खारिज करते हुए 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया और उनकी जांच को 'हास्यास्पद' भी बताया.
कोर्ट ने 13 जुलाई को कड़े शब्दों में अपने आदेश में पुलिस को फटकार लगाई. कोर्ट ने पुलिस की जांच को 'निर्दयी' करार दिया. एडिशनल सेशंस जज विनोद यादव ने कहा कि याचिकाकर्ता (SHO भजनपुरा पुलिस स्टेशन) और इनके सुपरवाइजिंग अफसर 'केस में अपने दायित्वों को निभाने में बुरी तरह नाकाम रहे हैं.'
आरोपी के वकील महमूद प्राचा ने कहा, "देर से ही सही, न्याय हुआ है. हम इस आदेश का स्वागत करते हैं."
याचिकाकर्ता (SHO भजनपुरा पुलिस स्टेशन) को लेकर आदेश में कहा गया कि 'याचिकाकर्ता के पास FIR दर्ज करने के आदेश से परेशान होने की कोई वजह या औचित्य नहीं है.'
"इस आदेश से नरेश गौर, नरेश त्यागी, सुभाष त्यागी, उत्तम त्यागी, सुशिल और उनके अज्ञात साथियों के पास परेशान होने की वजह है, लेकिन उन्होंने आदेश के खिलाफ आपराधिक याचिका दायर करने का फैसला नहीं किया."कड़कड़डूमा कोर्ट के जज विनोद यादव
क्विंट ने पहले ही इन आरोपियों के बारे में जानकारी दी थी कि ये सभी आरएसएस के सदस्य हैं. नरेश, सुभाष, उत्तम के पास संघ की अलग-अलग जिम्मेदारी हैं. वहीं, सुशील कभी-कभी शाखा जाता है और 2020 दिल्ली चुनाव में बीजेपी के कैंपेन में भी शामिल था.
कोर्ट ने पुलिस जांच को 'हास्यास्पद' बताया
जांच पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से जांच हुई है, वो खुद को उसके प्रभावी होने या निष्पक्ष को लेकर समझा नहीं पाया है. आदेश में कहा गया, "FIR No.64/2020 केस में जांच सबसे बेढंगी, निर्दयी और हास्यास्पद तरीके से हुई है."
आदेश में कहा गया कि 'नासिर की शिकायत में आरोपी व्यक्ति के लिए डिफेंस पुलिस का बनाया हुआ है.' कोर्ट ने आदेश को पुलिस कमिश्नर को भी भेजा है ताकि केस में 'जांच के स्तर और सुपरविजन को उनके ध्यान में लाया जा सके.'
नासिर ने आरोपियों के खिलाफ एक लिखित शिकायत दर्ज कराई थी और 19 मार्च 2020 को उन्हें नामित किया था. नासिर ने एक साल तक इंतजार किया और पुलिस केस दर्ज करने से इनकार करती रही.
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