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दिल्ली चुनाव: 68 सीटों पर EVM में पड़े वोटों और गिनती के बीच अंतर

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के लिए डाले गए और गिने गए वोटों की संख्या में अंतर का मामला

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भारत में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को इसलिए अपनाया था क्योंकि उसे चुनाव प्रक्रिया को सटीक और पारदर्शी बनाना था. मगर क्या वास्तव में ऐसा हो रहा है? ईवीएम और वीवीपैट (वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) में सटीक तरीके से वोट दर्ज हो रहे हैं?

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क्विंट ने 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान गिने गए और डाले गए वोटों में फर्क से जुड़ी अपनी दो रिपोर्ट के जरिए आंकड़ों में अनियमितताओं को उजागर किया था. मगर चुनाव आयोग ने अनियमितता की बात को इस आधार पर नकार दिया था कि जारी किए गए आंकड़े ‘तात्कालिक’ थे, अंतिम नहीं.

2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में यह पता लगाने के लिए कि ईवीएम में डाले गए और गिने गए वोटों में क्या कोई अनियमितता थी, क्विंट ने सभी विधानसभा क्षेत्रों से जुड़े फॉर्म 20 के आंकड़ों का विश्लेषण किया. फॉर्म 20 हर एक निर्वाचन क्षेत्र में गिने गए वोट, हर मतदान केंद्र पर हर उम्मीदवार को मिले वोट, कुल पंजीकृत वोटर, नोटा के तहत पड़े वोट और टेंडर्ड वोट का ब्योरा देता है. फॉर्म 20 के आंकड़ों को चुनाव अधिकारी संकलित करते हैं.

हमने पाया कि दिल्ली के 70 में से 68 विधानसभा क्षेत्रों में ईवीएम में डाले गए और गिने गए वोटों की संख्या में फर्क है. ध्यान देने की बात यह है कि 68 में से 47 विधानसभा क्षेत्रों में बेमेल वोटों की संख्या 50 से ज्यादा है. 
  • सबसे ज्यादा सरप्लस यानी अतिरिक्त ईवीएम वोट करोल बाग विधानसभा क्षेत्र में दर्ज किए गए. इस विधानसभा क्षेत्र में ईवीएम में पड़े वोटों की संख्या 1,07,228 थी यानी 60.44 फीसदी और गिने गए ईवीएम वोटों की संख्या थी 1,08,339. इस तरह यहां सरप्लस ईवीएम वोटों की संख्या 1,111 रही
  • ईवीएम वोटों की गिनती में सबसे ज्यादा कमी नजफगढ़ निर्वाचन क्षेत्र में दर्ज की गई. इस विधानसभा क्षेत्र में डाले गए ईवीएम वोटों की संख्या थी 1,62,206 या 64.41% और गिने गए ईवीएम वोटों की संख्या थी 1,61,194. इस तरह ईवीएम वोटों में 1,012 की गिनती कम रही

ज्यादा गिने गए EVM वोटों वाले 3 विधानसभा क्षेत्र

कम गिने गए EVM वोटों वाले 3 विधानसभा क्षेत्र

चुनाव आयोग का जवाब

क्विंट ने अनियमितताओं को लेकर दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी से संपर्क किया. उनके जवाब को तीन प्वाइंट्स में समेटा जा सकता है :

  • मतगणना के दिन ईवीएम से गिने गए वोट और टर्न आउट डाटा यानी डाले गए वोटों में “बहुत मामूली फर्क” था
  • चार विधानसभा क्षेत्रों में, “आंकड़ों में अंतर उन वोटों को नहीं गिनने के कारण है जो ईवीएम में पड़े, लेकिन ईवीएम से मिले नतीजे में नहीं दिखे या फिर मॉक पोल के आंकड़े क्लियर नहीं हो सके”
  • “काउंटिंग एजेंटों और उम्मीदवारों की ओर से कोई आपत्ति दर्ज कराने का मामला ईवीएम के कंट्रोल यूनिट में दर्ज किए गए वोट और मतगणना के दिन फॉर्म 17सी के आंकड़ों में अंतर के रूप में सामने नहीं आया. इससे पता चलता है कि इन दोनों में कोई अंतर या अनियमितता नहीं पाई गई’’
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दिलचस्प बात यह है कि ये तीनों प्वाइंट्स बेमेल वोटों के मुद्दों का जवाब नहीं देते और इसलिए आसानी से विवाद की वजह हो सकते हैं.

छोटी भूल से आए अंतर ने क्या दो विधानसभा क्षेत्रों के नतीजों पर असर डाला?

चुनाव आयोग का दावा है कि डाले गए और गिने गए वोटों के आंकड़ों में अंतर स्वाभाविक और ‘मामूली’ है. मगर क्या इस ‘मामूली’ अंतर ने कम से कम दो दिल्ली विधानसभा क्षेत्रों के नतीजों पर फर्क डाला है जहां जीत का अंतर 1000 वोटों से कम था?

  • एक बिजवासन विधानसभा क्षेत्र है जहां आम आदमी पार्टी उम्मीदवार को 753 वोटों से जीत मिली, जबकि दूसरे नंबर पर बीजेपी के उम्मीदवार थे. आंकड़े बताते हैं कि यहां 239 वोट कम गिने गए
  • दूसरा लक्ष्मी नगर विधानसभा क्षेत्र है जहां बीजेपी उम्मीदवार को 880 वोटों से जीत मिली, जबकि दूसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार थे. यहां भी अनियमितता है जहां डाले गए वोटों से 86 वोट कम पाए गए
  • विशेषज्ञ कहते हैं कि दोनों मामलों में दूसरे नंबर पर रहे उम्मीदवारों के पास फॉर्म 20 के आंकड़ों के आधार पर अदालत में चुनाव याचिका दायर करने के मजबूत आधार हैं
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मतदान केंद्रों पर चार लोगों की तैनाती

हर मतदान केंद्र पर चार चुनाव अधिकारी तैनात किए जाते हैं जिनमें एक पीठासीन अधिकारी या मतदान केंद्र प्रमुख और तीन अन्य मतदान अधिकारी होते हैं. औसतन किसी एक मतदान केंद्र पर हजार से ज्यादा वोटर नहीं होते हैं क्योंकि वीवीपैट 1200 वोटों से ज्यादा का रिकॉर्ड नहीं रख सकता है.

अब अगर कोई फॉर्म 20 के आंकड़ों पर गौर करे, तो 95 फीसदी मतदान केंद्रों पर 500 से कम वोट डाले गए. 

इतना ही नहीं, चुनाव आयोग के नियम के अनुसार भी पीठासीन अधिकारी को अपने मतदान केंद्र पर हर दो घंटे में दर्ज वोटों का रिकॉर्ड रखना होता है और साथ-साथ निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग अफसर को इसकी जानकारी देनी होती है.

जब चुनाव की प्रकिया अच्छी तरह से परिभाषित है तब क्यों डाले गए और गिने गए वोटों में अनियमितताएं देखनी पड़ रही हैं?

“चुनाव प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों की मेहनत के बाद ही आयोग की ओर से फॉर्म 20 जारी किया जाता है. जब तक मैं चुनाव आयुक्त रहा, कम से कम मैंने ऐसी अनियमितताएं नहीं देखी हैं. कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में लिपिकीय गलती हो सकती है लेकिन सभी जगहों पर नहीं हो सकती. अगर तकनीकी गलतियों के कारण अनियमितता है तो चुनाव आयोग को बहानेबाजी करने के बजाए इस मामले को तुरंत देखना चाहिए.”
भारतीय चुनाव आयोग के पूर्व कर्मचारी

लिपिकीय भूलों के बावजूद चुनाव आयोग ने कहा, डाले गए वोटों के आंकड़े सही

दिल्ली विधानसभा चुनावों में डाले गए वोटों के बारे में चुनाव आयोग की घोषणा में 24 घंटे की देरी हुई. घोषणा में देरी को लेकर चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण था कि वह ‘अटकलों को टालना चाहता’ था.

दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी रणबीर सिंह ने कहा, “वे अनुमान लगाना नहीं चाहते थे और वास्तविक आंकड़े देना चाहते थे...इसलिए रिटर्निंग अफसरों ने आंकड़ों की जांच पर पूरी रात मेहनत की और सुनिश्चित किया कि वे सटीक हों. इसमें थोड़ा वक्त लगा है लेकिन आंकड़े दर्ज करने में सटीक रहने को सुनिश्चित करना सबसे अहम है.”

चुनाव आयोग ने ‘सटीकता सुनिश्चित’ की, इसलिए बेमेल आंकड़े और भी चौंकाते हैं. इसके अलावा लिपिकीय भूल एक या दो नहीं, 68 विधानसभा क्षेत्रों में कैसे हुई?

चुनाव आयोग ने पहले कहा था कि मतदान के आंकड़ों की घोषणा में देरी हुई थी क्योंकि वे ‘सटीक आंकड़े’ सुनिश्चित करना चाहते थे. अब वे कह रहे हैं कि डाले गए और गिने गए वोटों में फर्क लिपिकीय भूलों के कारण हैं. कम से कम इन दोनों दावों में से एक भ्रामक है.

अगर ईवीएम डेटा नहीं बचा तो वीवीपैट की गिनती क्यों नहीं हुई?

फॉर्म 20 जिसमें मतदान केंद्रवार गिने गये वोटों का ब्योरा है, बताता है कि सभी मतदान केंद्रों के ईवीएम गिने गए. साफ है कि कोई ईवीएम बाकी नहीं रहा. ना ही किसी तकनीकी गलती के कारण ऐसा हुआ कि वोट नहीं गिने गए. इतना ही नहीं, जो मॉक पोल में वोट पड़े वे भी मिटाए नहीं गए थे.

दूसरी बात यह है कि मतदान के दिन ईवीएम-वीवीपैट में केवल 50 वोट ही डाले गए हैं. ऐसे में सरप्लस वोटों की गिनती 50 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन तीन निर्वाचन क्षेत्रों में सरप्लस वोटों की गिनती 50 से ज्यादा रही. आखिर चुनाव आयोग इसे कैसे स्पष्ट करेगा? 

तीसरी बात, अगर चार निर्वाचन क्षेत्रों के ईवीएम आंकड़े नहीं मिले या नहीं गिने गए, तो नियमों के मुताबिक वीवीपैट की पर्चियों की गिनती होनी चाहिए थी. क्या ऐसा किया गया? अगर नहीं, तो क्यों?

ईवीएम वोटों की गिनती कम पाए जाने पर क्या कहना है? क्या मतदान खत्म होने के बाद ईवीएम के वोट मिटाए गए, जिस कारण कम वोट मिले?

“डाले गए और गिने गए वोटों में अनियमितता ज्यों की त्यों रही है जिसका मतलब है कि व्यवस्था में कुछ कमियां हैं जिन्हें या तो चुनाव आयोग जानने में सक्षम नहीं है या फिर जानना और उन्हें दूर करना नहीं चाहता. वास्तव में यह बहुत जरूरी है कि इस रहस्य को हमेशा के लिए सुलझा लिया जाए.”
जगदीप छोकर, सदस्य, एसोसिएटेड डेमोक्रेटिक रिफॉर्म

2019 लोकसभा चुनाव में डाले गए और गिने गए वोटों के बेमेल रहने से जुड़ी क्विंट की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. अदालत ने भारतीय चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा. यह मामला अब भी लंबित है.

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका के लंबित रहने के बावजूद चुनाव की प्रक्रिया में आंकड़ों के सटीक रहने को सुनिश्चित क्यों नहीं कर पा रहा है आयोग?

क्विंट ने दिल्ली सीईओ के ऑफिस को लिखा है और इस मामले में उनके जवाब पर आगे सवाल पूछे हैं. जैसे ही हमें कोई जवाब मिलता है हम इस आर्टिकल को अपडेट करेंगे.

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