Delhi HC: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार 12 दिसंबर को केरल की रहने वाली एक महिला को अपनी बेटी को फांसी से बचाने के लिए पश्चिम एशियाई देश यमन जाने की अनुमति दे दी. केरल की इस लड़की पर यमन में वहां के एक नागरिक की हत्या का आरोप है, जिसके चलते इसे मौत की सजा सुनाई गई है. अपनी बेटी को बचाने के लिए लड़की की मां पीड़ित परिवार के साथ ब्लड मनी के बारे में बातचीत करने यमन जाना चाहती हैं.
ब्लड मनी का मतलब अपराधियों या उनके परिजनों द्वारा हत्या के शिकार हुए व्यक्ति के परिवार को दिए जाने वाले मुआवजे से है.
खुद के रिस्क पर यात्रा, सरकार जिम्मेदार नहीं
जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने केंद्र सरकार को अपने 2017 के नोटिफिकेशन में ढील देने का निर्देश दिया है. दरअसल, इस नोटिफिकेशन के तहत किसी भारतीय पासपोर्ट धारकों को यमन की यात्रा करने से रोक लगा दी गई थी.
याचिकाकर्ता प्रेमा कुमारी से एक हलफनामा (Affidavit) दाखिल करने को कहा है, जिसमें दर्ज कराया गया है कि अपनी बेटी की रिहाई के लिए बातचीत करने के लिए वह किसी दूसरे व्यक्ति के साथ यमन की यात्रा करेगीं और किसी प्रकार के जोखिम के लिए भारत सरकार या संबंधित राज्य सरकार इसके प्रति जिम्मेदार नहीं होगी.
हाईकोर्ट ने केंद्र की इस दलील पर भी ध्यान दिया कि भारत के यमन के साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं और उसने वहां अपना दूतावास बंद कर दिया है. वर्तमान परिदृश्य में यमन के साथ इंडिया का कोई अंतरराष्ट्रीय संधि भी लागू नहीं है.
हाईकोर्ट निमिषा प्रिया की मां प्रेमा कुमारी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने अपनी बेटी को बचाने के लिए ब्लड मनी का भुगतान करने के बारे में पीड़ित परिवार से बातचीत करने के लिए उनकी और तीन अन्य लोगों की यमन यात्रा की मांग की थीं.
क्या है पूरा मामला?
यमन के सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर को पश्चिम एशियाई देश में नर्स के रूप में काम करने वाली निमिषा प्रिया की सजा के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया और प्रिया को तलाल अब्दो महदी की हत्या का दोषी ठहराया .
दरअसल, प्रिया पर यह आरोप था कि उसका पासपोर्ट तलाल अब्दो महदी कब्जे में था, जिसे पाने के लिये उसने अब्दो को बेहोश करने वाला इंजेक्शन दिया ताकि वह अपना पासपोर्ट ले सके. लेकिन इंजेक्शन की मात्रा अधिक होने से तलाल अब्दो की मृत्यु जुलाई 2017 में हो गई.
अदालत किन शर्तों पर राजी हुई?
प्रिया की मां ने इस साल की शुरुआत में हाईकोर्ट का रुख किया और भारतीय नागरिकों के लिए यात्रा प्रतिबंध के बावजूद यमन जाने की अनुमति मांगी और अपनी बेटी को बचाने के लिए ब्लड मनी पर बातचीत की.
सुनवाई के दौरान, केंद्र के वकील ने अदालत को सूचित किया कि सरकार ने 26 सितंबर, 2017 को एक अधिसूचना जारी की थी जिसमें कहा गया था कि कोई भी भारतीय पासपोर्ट धारक अशांत देश की यात्रा नहीं कर सकता है.
अदालत ने कहा कि अधिसूचना का खंड 3 सरकार को विशिष्ट और आवश्यक कारणों से अपने प्रावधानों में ढील देने की शक्ति देता है, जिसके लिए आवेदक के स्पष्ट अनुरोध पर केंद्र सरकार द्वारा सीमित समय दिया जा सकता है, जो अपने खुद के रिस्क पर यात्रा करेगा. भारत सरकार के प्रति किसी प्रकार के दायित्व के बिना.
'अपने जोखिम पर यात्रा करने के लिए तैयार'
अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि अपनी बेटी को फांसी से बचाने की आखिरी कोशिश करने वाली मां के प्रति केंद्र की ओर से इतनी अनिच्छा क्यों होनी चहिए. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील सुभाष चंद्रन केआर ने अदालत को बताया कि जो दूसरा व्यक्ति मां के साथ यात्रा करेगा, उसके पास यमन का वैध वीजा है और वह 24 साल से अधिक समय से वहां काम कर रहा है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वे अपने जोखिम पर यात्रा करने के लिए तैयार हैं.
हलफनामे को ध्यान में रखते हुए, यह अदालत भारत संघ को याचिकाकर्ता के लिए 2017 की अधिसूचना में ढील देने का निर्देश देती है, जिसमें उसने इस आशय का हलफनामा दायर किया था कि वह बेटी की रिहाई के लिए बातचीत करने के उद्देश्य से दूसरे व्यक्ति के साथ यमन की यात्रा करेगी. भारत सरकार या संबंधित राज्य सरकार के प्रति किसी भी दायित्व के बिना अपने व्यक्तिगत जोखिम और जिम्मेदारी पर.दिल्ली हाईकोर्ट
अदालत ने याचिकाकर्ता को यात्रा और वापसी की तारीख बताते हुए एक हलफनामा दाखिल करने को कहा और याचिका का निपटारा कर दिया.
याचिकाकर्ता के वकील ने क्या कहा?
प्रिया की मां के वकील ने हाईकोर्ट को सूचित किया था कि यमन के सर्वोच्च न्यायालय, जिसने 13 नवंबर को उसकी अपील खारिज कर दी थी और मौत की सजा को बरकरार रखा था. कोर्ट ने उसे ब्लड मनी का भुगतान करने के बाद पीड़ित के परिवार से माफी हासिल करके फांसी से बचने का आखिरी विकल्प दिया था.
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि यमन के सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रिया की अपील खारिज करने के बारे में परिवार को सूचित करने वाला एक पत्र 1 दिसंबर को प्राप्त हुआ था और उसकी फांसी कभी भी हो सकती है.
'सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल' ने पिछले साल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और केंद्र को निर्देश देने की मांग की थी. वह निमिषा प्रिया की जान बचाने के लिए ब्लड मनी का भुगतान करके उसकी जान बचाने के लिए राजनयिक हस्तक्षेप के साथ-साथ पीड़िता के परिवार से बातचीत की अनुमती देने की गुहार लगाई थी.
याचिका में आरोप लगाया गया कि तलाल अब्दो महदी ने यह दिखाने के लिए जाली दस्तावेज बनाए कि वह और प्रिया शादीशुदा हैं और उन्होंने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और उसे प्रताड़ित किया.
हाईकोर्ट ने पहले केंद्र को प्रिया की जान बचाने के लिए ब्लड मनी के भुगतान पर बातचीत करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था, लेकिन उसे उसकी सजा के खिलाफ कानूनी उपाय अपनाने को कहा था.
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