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पुलिस प्रताड़ना पर HC में जॉर्ज फ्लॉयड का जिक्र- 'कोइ उनके आखिरी शब्द न दोहराए'

जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद दुनिया के कई देशों में #BlackLivesMatter प्रदर्शन शुरू हुए थे.

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दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस कस्टडी में प्रताड़ना को लेकर एक अहम टिप्पणी दी है. पुलिस ने अमेरिका के चर्चित जॉर्ज फ्लॉयड (George Floyd) मामले का जिक्र करते हुए कहा, "किसी को भी जॉर्ज पेरी फ्लायड, जूनियर जैसे दुखद अंतिम शब्दों को दोहराने की जरूरत नहीं है - 'मैं सांस नहीं ले सकता'."

अश्वेत अमेरिकी नागरिक, जॉर्ज फ्लॉयड की मई 2020 में मौत हो गई थी. फ्लॉयड की गर्दन पर एक पुलिस अफसर ने पैर रखा था, जिसका वीडियो काफी वायरल हुआ था. जॉर्ज फ्लॉयड के आखिरी शब्द थे- 'I can't breathe.' फ्लॉयड की मौत के बाद अमेरिका में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद दुनिया के कई देशों में #BlackLivesMatter प्रदर्शन शुरू हुए थे.

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जस्टिस नजमी वजीरी दिल्ली पुलिस की कस्टडी में दो लोगों के उत्पीड़न का मामले पर सुनवाई कर रहे थे. दिल्ली के तुर्कमान गेट चांदनी महल पुलिस स्टेशन के अधिकारियों के खिलाफ जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्होंने जॉर्ज फ्लॉयड का जिक्र किया.

"कानून लोगों को पुलिस हिरासत में या पूछताछ के दौरान पीटने की इजाजत नहीं देता है. याचिकाकर्ता और उसके सहयोगी पर पुलिस का हमला सवाल खड़े करता है. नागरिकों के अधिकारों के उल्लंघन या कानून-प्रवर्तन द्वारा किसी भी तरह की लापरवाही या के बारे में कोई भी सतर्क नहीं हो सकता है, जिससे दुर्भाग्यपूर्ण घटना या त्रासदी हो सकती है. किसी को भी जॉर्ज पेरी फ्लायड, जूनियर जैसे दुखद अंतिम शब्दों को दोहराने की जरूरत नहीं है - 'मैं सांस नहीं ले सकता'."
जस्टिस नजमी वजीरी

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मोहम्मद अरीब उमर और उमैर सिद्दीकी ने दायर याचिकाओं में कहा कि उन्हें 25 जनवरी को दिल्ली पुलिस ने बेरहमी से पीटा था, और पुलिस की ज्यादतियों के खिलाफ उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

जस्टिस वजीरी ने जारी आदेश में पुलिस की इस दलील को खारिज कर दिया कि "तुरंत पूर्व घटना" हुई थी, जिसके कारण उमर और सिद्दीकी के खिलाफ "कड़ी कार्रवाई" की गई थी. पुलिस ने 27 अक्टूबर को हुई सुनवाई में कहा था कि उन्होंने थाने के बाहर निजी पार्टियों के बीच हाथापाई को खत्म करने के लिए ही कार्रवाई की थी.

कोर्ट ने कहा कि नए सिरे से जांच की जरूरत है, क्योंकि तस्वीरों और एक वीडियो में दो लोगों को "वर्दी और नागरिक पोशाक में पुलिसकर्मियों की एक टुकड़ी द्वारा" बार-बार हमला करते हुए दिखाया गया है.
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कोर्ट ने आगे कहा, "हिंसक धक्का-मुक्की और हमले उसी क्षण शुरू हो जाते हैं, जब वो पुलिस स्टेशन के परिसर में प्रवेश करते हैं. जब वो परिसर में गए तो दोनों नागरिक हिंसक नहीं थे. वो संभवत ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि वो पुलिसकर्मियों द्वारा घिरे हुए थे. याचिकाकर्ता या उसके शुभचिंतक द्वारा किसी पुलिसकर्मी पर कोई अभद्रता या हमला करते नहीं देखा गया है."

ये देखते हुए कि दिल्ली पुलिस का हमला संदिग्ध था, कोर्ट ने कहा कि कानून लोगों को पूछताछ के दौरान भी पुलिस हिरासत में पीटने की अनुमति नहीं देता है.

कोर्ट ने डीसीपी (विजिलेंस) को जांच करने और चार हफ्ते के अंदर दोनों लोगों को सुनने करने का आदेश दिया.

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