कांग्रेस ने दिल्ली में किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा की घटना पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की है और हिंसा की घटना के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को जिम्मेदार ठहराया है. कांग्रेस का कहना है कि सरकार दिल्ली में होने वाले उपद्रप को रोकने में कामयाब नहीं रही, ये सरकार की नाकामी है.
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा-
किसान आंदोलन की आड़ में हुई हिंसा के लिए सीधे-सीधे गृह मंत्री अमित शाह जिम्मेदार हैं. उन्हें एक पल भी अपने पद पर बने रहने का अधिकार नहीं, उन्हें बर्खास्त किया जाना चाहिए. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ये मांग है. दिल्ली में उपद्रव को रोकने में असफल रहे गृह मंत्री अमित शाह के इशारे पर दिल्ली पुलिस उन उपद्रवियों पर मुकदमा दर्ज करने की बजाय संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं पर मुकदमा दर्ज कर भाजपा सरकार की साजिश को साबित करती है.रणदीप सिंह सुरजेवाला,कांग्रेस प्रवक्ता
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा- 'आजादी के 73 सालों में यह पहला मौका है, जब कोई सरकार लाल किले जैसी राष्ट्रीय धरोहर की सुरक्षा करने में बुरी तरह नाकाम रही. किसानों के नाम पर साज़िश के तहत चंद उपद्रवियों को लाल किले में घुसने दिया गया और दिल्ली पुलिस कुर्सियों पर बैठी आराम फरमाती रही. बीजेपी के करीबी और मोदी-शाह के चेले, दीप सिद्धू की पूरे समय लाल किले में मौजूदगी किसान आंदोलन को बदनाम करने की सुनियोजित साजिश है.'
कांग्रेस ने खड़े किए कई सवाल
सवाल यह है कि जो किसान 63 दिन से शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे, अचानक से ऐसा क्या हुआ, जो वो इतना बिफर गए?
हमारा सीधा सवाल है कि केवल 30 से 40 ट्रैक्टर लेकर उपद्रवी लाल किले में कैसे घुस पाए?
यह किसकी असफलता है? इसका जिम्मेदार कौन है?
लाल किला तो हमारी आजादी का प्रतीक है। किसानों और गरीबों के लिए सर्वमान्य है, तो 500-700 हिंसक तत्व जबरदस्ती लाल किले में कैसे घुस सकते हैं? जो दीप सिद्धू प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ फोटो खिंचवा बैठक साझा करता है, उसे और उसके समर्थकों को लाल किले तक जाने की अनुमति किसने दी?
चाहे परिस्थिति कोई भी हो, मोदी सरकार को यह बताना पड़ेगा कि इतनी आसानी से कोई भी हिंसक समूह लाल किले तक कैसे पहुंच सकता है? लाल किले की प्राचीर पर चढ़कर झंडा कैसे लगा सकता है? क्या यह साफ नहीं दिखा कि पुलिस बैठकर तमाशा देख रही थी और टीवी कैमरों का मुंह लाल किले की प्राचीर की तरफ था?
किसानों के मुताबिक कल तक 178 से अधिक किसान इस आंदोलन में दम तोड़ गए। किसानों को हिंसा ही करनी होती तो वो 63 दिन से हाड़ कंपकपाती सर्दी में दिल्ली की सीमाओं पर लाखों की संख्या में क्यों बैठते?
कल से सारे न्यूज़ चैनलों ने किसान नेताओं और दूसरे लोगों से तो बहुत सारे सवाल पूछे, पर गृहमंत्री, श्री अमित शाह से इन घटनाओं की जिम्मेदारी लेने के लिए क्यों नहीं कहा?
क्या हिंसा का वातावरण बना यह सब किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश नहीं? क्या यह दिल्ली दंगों, शाहीन बाग, सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों, जेएनयू दिल्ली विश्वविद्यालय प्रकरण की पुनरावृत्ति तो नहीं?
क्या मोदी सरकार, श्री अमित शाह और प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं? किसान आंदोलन में अगर जबरन कोई हिंसक तत्व षडयंत्रकारी मनसूबे से घुसे थे, तो गुप्तचर एजेंसियों से लेकर गृह मंत्रालय तक क्या कर रहा था? यह विफलता किसान नेताओं की है या मोदी सरकार और प्रशासन की? क्या इसके लिए गृहमंत्री सीधे जिम्मेदार नहीं?
कल जो हुआ उससे किसको फायदा और किसे नुकसान हुआ? किसानों को मिलते जन समर्थन को विरोध में बदलना कौन चाहता था और ऐसी कोशिश कौन कर रहा था?
सरकार प्रायोजित भड़काऊ बयानों, वीडियो, संदेशों आदि से उत्तेजित होने से पहले देश इन सवालों के उत्तर चाहता है.
बता दें कि 26 जनवरी को किसान प्रदर्शनकारी ट्रैक्टर परेड का तय रूट तोड़ते हुए सेंट्रल दिल्ली और पुरानी दिल्ली जैसे इलाकों में भी घुस आए. आईटीओ पर प्रदर्शनकारी किसानों ने बैरिकेडिंग तोड़ दी. वहीं, कई प्रदर्शनकारी किसान ट्रैक्टर लेकर लाल किले तक पहुंच गए और वहां निशान साहिब का झंडा भी फहराया.
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