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दिल्ली से पैदल UP जा रहे मजदूर- ‘यहां नहीं गांव में ही मरना मंजूर’

उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के लिए पैदल ही दिल्ली से निकले प्रवासी मजदूर

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भारत
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एक तरफ जहां केंद्र सरकार और राज्य सरकारें लगातार दावा कर रही हैं कि प्रवासी मजदूरों के लिए उन्होंने हर तैयारी की है. लेकिन दूसरी तरफ जमीनी हालात कुछ और ही कहानी बताते हैं. जहां औरंगाबाद में ट्रेन 16 मजदूरों को रौंदकर निकल जाती है, वहीं दिल्ली में भी कई मजदूर पैदल ही घरों की ओर निकलते हुए नजर आते हैं. शुक्रवार को दिल्ली में कुछ मजदूर पैदल ही उत्तर प्रदेश के लिए निकल पड़े. जब उनसे बात की गई तो सभी सरकारी दावों की पोल खुलती नजर आई.

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न्यूज एजेंसी एएनआई ने ट्विटर पर इन मजदूरों की तस्वीरें शेयर की हैं. साथ ही एजेंसी ने इनसे हुई बातचीत को भी पोस्ट किया है. जिसमें ये मजदूर रौंगटे खड़े कर देने वाली बात कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के लिए पैदल यात्रा शुरू कर चुके इन मजदूरों में से एक ने कहा,

“मुझे उत्तर प्रदेश के लिए चलने वाली किसी भी स्पेशल ट्रेन की जानकारी नहीं है. इतने दिनों बाद मैंने पैदल ही जाने का फैसला इसलिए किया है, क्योंकि मैं दिल्ली में ही नहीं मरना चाहता हूं, मैं अपने गांव जाकर मरना चाहता हूं.”

ये सभी लोग अपने साथ अपने बैग कंधों पर लिए सड़क किनारे पैदल चलते दिखाई दिए. लंबे रास्ते के लिए पानी की बोतल हाथ में लिए ये प्रवासी मजदूर अपने ही हाल में चले जा रहे हैं. सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्यों से ऐसी ही खबरें सामने आ रही हैं, जहां पर मजदूरों की मजबूरी उन्हें ट्रेन की पटरियों पर चलने और बाहर निकलकर पुलिस की लाठियां खाने से भी नहीं रोक पा रही हैं.

लॉकडाउन में बेचैन मजदूर

बता दें कि देश में 24 मार्च से लॉकडाउन है. मार्च के आखिरी हफ्ते में ही प्रवासी मजदूर बेचैन हो गए थे कि अब उनके पास कमाई का कोई साधन नहीं तो वो कैसे शहर में अपना पेट पालेंगे. इसके बाद मजदूर हजारों की संख्या में सड़कों पर भी उतरे, लेकिन सरकारों ने उन्हें रोक लिया. कहा गया कि उन्हें खाना और रहने की सुविधा दी जाएगी. इन तमाम वादों के बीच हर दूसरे दिन भारत के किसी न किसी हिस्से से ऐसी दर्दनाक खबरें सामने आती रहीं. जब मजदूर सैकड़ों किमी की दूरी नंगे पैरों से नापते नजर आए. कई मजदूरों की रास्ते में ही मौत हो गई. जो दिखाता है कि भले ही सरकारें कितने भी बड़े दावे कर रही हो, लेकिन उसके हाथ गरीबों तक अब भी नहीं पहुंच पाए हैं.

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