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कलिता,नताशा और तन्हा, ‘बिना सबूत’ 1 साल जेल में रहने के बाद रिहा

दिल्ली हाईकोर्ट ने इन तीनों को जमानत देते हुए कहा था कि विरोध प्रदर्शन आतंकी गतिविधि नहीं हैं.

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भारत
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आखिरकार नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा जेल से बाहर आ गए हैं. 15 जून को दिल्ली हाईकोर्ट ने इन्हें जमानत दी थी लेकिन अभी तक रिहाई नहीं हो सकी थी. दिल्ली पुलिस ने पते के वैरिफिकेशन को लेकर समय मांगा था. अब तीनों की रिहाई हो चुकी है. इससे पहले हाईकोर्ट ने जमानत देते वक्त ये साफ किया था कि पहली नजर में, UAPA की धारा 15, 17 या 18 के तहत कोई भी अपराध तीनों के खिलाफ वर्तमान मामले में रिकॉर्ड की गई सामग्री के आधार पर नहीं बनता है. कोर्ट ने कई तथ्यों को ध्यान में रखते हुए माना कि विरोध जताना कोई आतंकी गतिविधि नहीं है.

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नताशा,देवांगना,आसिफ कौन हैं?

तन्हा जामिया मिल्लिया इस्लामिया से स्नातक का छात्र है. उसे मई 2020 में यूएपीए के तहत दिल्ली हिंसा के मामले में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह लगातार हिरासत में है. नरवाल और कलिता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर हैं, जो पिंजरा तोड़ आंदोलन से जुड़ीं हुईं हैं. वे मई 2020 से जेल में हैं.

मामला क्या है?

यह मामला दिल्ली पुलिस की ओर से उस कथित साजिश की जांच से संबंधित है, जिसके कारण फरवरी 2020 में दिल्ली में भयानक हिंसा भड़क उठी थी. पुलिस के अनुसार, तीनों आरोपियों ने अभूतपूर्व पैमाने पर अन्य आरोपियों के साथ मिलकर ऐसा व्यवधान पैदा करने की साजिश रची, जिससे कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ी जा सके.

कोर्ट ने और क्या-क्या कहा था?

अपने फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट ने ये भी कहा था कि विरोध करने के संवैधानिक अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच की रेखाओं को धुंधला कर दिया गया है:

हम यह कहने के लिए विवश हैं, कि ऐसा दिखता है कि असंतोष को दबाने की अपनी चिंता में और इस डर में कि मामला हाथ से निकल सकता है, स्टेट ने संवैधानिक रूप से अधिकृत 'विरोध का अधिकार' और 'आतंकवादी गतिविधि' के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है . अगर इस तरह के धुंधलापन बढ़ता है, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.

ऐसे तो UAPA जैसे कानून के मकसद कमजोर होते हैं- कोर्ट

अदालत ने कहा था कि इस तरह के आरोप बिना किसी आधार के यूएपीए जैसे कानून की मंशा और उद्देश्य को कमजोर करते हैं:

हमारी नजर में, चार्जशीट में दर्ज आरोपों को पढ़ने पर किसी स्पेसिफिकि, पार्टिकुलराइज्ड, फैक्चुअल आरोपों की कमी है. ऐसे में UAPA के सेक्शन 15, 17 या 18 जैसी अत्यंत गंभीर धाराओं और दंडात्मक प्रावधानों को लोगों पर लगाना, एक ऐसे कानून के मकसद को कमजोर कर देगा, जो हमारे देश के अस्तित्व पर आने वाले खतरों से निपटने के लिए बनाया गया है.

अब जाकर तीनों रिहा हो चुके हैं.

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