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‘जेल दोजख का ट्रेलर है’-जमानत पर छूटे UAPA आरोपी ने तोड़ी चुप्पी

जमानत के बाद पहले इंटरव्यू में फैजान ने बताया कि उसे कैसे गिरफ्तार किया गया और 3 महीने तिहाड़ जेल में कैसे बिताए

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जेल दोजख का ट्रेलर है... आप अपने परिवार से बात नहीं कर पा रहे... पता नहीं क्या होगा आपके साथ हर दिन... दोजख में भी यही होना है... कोई साथ नहीं होगा.

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सिम कार्ड बेचने वाला 35 साल का मोहम्मद फैजान खान यूएपीए का ऐसा अकेला आरोपी है जिसे एफआईआर 59 के तहत कानूनी आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट से रेगुलर बेल मिली है. यहां साफ कर देना जरूरी है कि जामिया की स्टूडेंट सफूरा जरगर को भी बेल मिली है लेकिन मामले की मेरिट के आधार पर नहीं. सफूरा को मानवीय आधार पर बेल दी गई है, चूंकि वह प्रेग्नेंट हैं. दूसरी तरफ फैजान को मेरिट के आधार पर बेल दी गई है.

यह मामला फरवरी 2020 की साम्प्रदायिक हिंसा की सबसे अहम एफआईआर का है. क्योंकि इसमें ‘अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे के दौरान कथित तौर पर भारत को बदनाम करने के लिए रची गई बड़ी साजिश’ की जांच की गई है. जैसा कि चार्जशीट में बताया गया है, इसमें फैजान की भूमिका यह थी कि उसने उसी एफआईआर के दूसरे यूएपीए आरोपी और जामिया स्टूडेंट आसिफ इकबाल तन्हा को एक सिम कार्ड बेचा था. इस नंबर का महत्व यह बताया गया कि कथित तौर पर इसी का इस्तेमाल करके जामिया कोऑर्डिनेशन कमिटी की मीडिया टीम ने वॉट्सऐप ग्रुप पर ‘साजिश और हिंसा की प्लानिंग की’.

तिहाड़ से निकलने के बाद अपने पहले इंटरव्यू में फैजान ने क्विंट को बताया कि उसकी गिरफ्तारी किन हालात में हुई और 90 दिन उसने जेल में कैसे बिताए. इस पूरे वाकये ने उसकी जिंदगी किस तरह हमेशा के लिए बदल दी है.

दिल्ली आया था परिवार का गुजारा चलाने के लिए, पैसे कमाने के लिए

फैजान की शादी नहीं हुई है- उसकी दो छोटी बहनें और एक छोटा भाई है. 2017 में वह दिल्ली आया था ताकि अपने परिवार का गुजारा चला सके. वह पैसे कमा सके. “2019 में दिल का दौरा पड़ने से मेरे वालिद का इंतेकाल हो गया. इससे पहले उन्हें लकवा मार गया था. वह बीमार ही रहा करते थे और पिछले 20-25 साल से एक भी दिन काम पर नहीं गए थे. ऐसे हालात में परिवार पालने की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई. मुझे सिर्फ इसी बात की फिक्र थी कि कैसे पैसे कमाऊं और सबकी देखभाल करूं. इसीलिए मैंने शादी भी नहीं की.” यह सब बताते हुए फैजान की निगाहें झुकी रहीं. वह आंख से आंख मिलाने से बचता रहा.

जब दिल्ली पुलिस फैजान को तलाशते हुए आई तब वह दिल्ली के बाटला हाउस में रहता था. वह जामिया नगर के गोल्डन कम्युनिकेशन में एक मोबाइल सेल्समैन के तौर पर काम करता था. उसके एक महीने की तनख्वाह 14 हजार रुपये थी.

“गोल्डन कम्युनिकेशंस एक मोबाइल स्टोर है जहां फोन, सिम कार्ड और मोबाइल एसेसरीज मिलती हैं. मैं एयरटेल के लिए काम करता था और उन लोगों ने मुझे इस स्टोर में काम करने के लिए भेजा. इससे पहले मैं कैलाश कॉलोनी के एक स्टोर में काम करता था. हमें हफ्ते के सात दिन, करीब नौ घंटे रोजाना काम करना पड़ता था. हमें अपने टारगेट पूरे करने होते थे. अगर हम अपने टारगेट पूरे नहीं कर पाए तो हमारे सीनियर हमें धमकाते थे कि हमारी नौकरी चली जाएगी. जैसे हमारा टारगेट यह होता था कि एक तय समय के अंदर हम कितने सारे नंबर एक्टिवेट कर सकते हैं.”

फैजान कहता है कि उसने सह आरोपी और जामिया स्टूडेंट आसिफ इकबाल तन्हा को सिम कार्ड नहीं बेचा. वह बताता है, “अब उन टारगेट्स को पूरा करने के लिए अक्सर हम स्टोर से निकलकर मार्केट में घूमते हैं, ताकि नंबर एक्टिवेट किए जा सकें. अगर किसी वजह से टारगेट पूरे नहीं हुए तो हम खुद कुछ नंबर्स को एक्टिवेट कर देते हैं. जिस नंबर की बात यहां हो रही है, उसे हमने अपने स्टाफ मेंबर्स के बीच एक्टिवेट कर दिया होगा. हालांकि इसका यह मतलब नहीं कि मैंने वह नंबर किसी को दिया. मुझे नहीं पता कि वह नंबर कहां गया. वह बहुत दिनों तक दुकान में था. जब मैंने स्टाफ के दूसरे लोगों से पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें भी नहीं पता कि वो दुकान से कब चला गया.”

दिल्ली पुलिस मार्च में फैजान को ढूंढते हुए आई क्योंकि डॉक्युमेंट्स में एक ऑल्टरनेट नंबर फैजान का लिखा था. वह लाचारी से इस रिपोर्टर की तरफ देखते हुए पूछता है, “अगर मेरा इरादा कुछ गलत करने का होता तो क्या मैं अपना नंबर वहां लिखता?”

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कुछ गलत होने वाला है, इसका पहला संकेत

एफआईआर 59 में फैजान का जिक्र उस कॉल के जरिए आया जो उसे उसके बॉस ने मार्च में की थी. इस बारे में उसने बताया, ''लॉकडाउन के एक दिन पहले 21 मार्च को मैं पीलीभीत (उत्तर प्रदेश), अपने घर चला गया था. वहां मेरे बॉस ने मुझे फोन किया और इस नंबर के बारे में पूछा. मुझे एकाएक कुछ याद नहीं आया. हम रोजाना कितने ही नंबरों को एक्टिवेट करते हैं. उन्होंने मुझे दिल्ली पुलिस के एक सीनियर अफसर का नंबर दिया और मुझसे कहा कि उनसे बात कर लूं. मैंने ऐसा ही किया. वह दोपहर का समय था और इसलिए मैंने अफसर को गुड आफ्टरनून कहा और उन्हें बताया कि मेरा नाम फैजान है. उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं कहां हूं और मैं कब तक लौटकर आऊंगा. चूंकि लॉकडाउन की वजह से सब कुछ बंद था, इसलिए मैंने कहा कि मैं जून में लौटूंगा. अफसर ने मुझसे कहा कि कोई बात नहीं, आराम से आना.”

लॉकडाउन में ढिलाई होने के बाद फैजान दिल्ली के लिए निकला. उसने सोचा था कि वह काम पर, बाटला हाउस के अपने एक कमरे के घर पर लौटेगा और सिम कार्ड की गलतफहमी को दूर कर देगा.

“पीलीभीत से दिल्ली का सफर नौ घंटे का है. मैंने घर पर किसी को नहीं बताया था कि दिल्ली पुलिस का कोई अफसर मुझसे मिलना चाहता है. मुझे लगता था कि मुझे कुछ नहीं होगा. कम से कम मुझे इस बात का भरोसा था कि मैं बेगुनाह, बेकसूर हूं. मैं उस सफर को कभी नहीं भूलूंगा. मेरे मन में शको शुबहा था. मुझे नहीं पता था कि क्या मैं जेल जाऊंगा, या कभी अपने घरवालों से मिल पाऊंगा.” थोड़ी थोड़ी देर में फैजान बोलते बोलते रुक जाता है. “मुझे याद आ रहा था कि अपनी बहनों, भाई और अम्मी को मैंने किस तरह अलविदा कहा था.”

जैसा कि फैजान ने पुलिस अफसर को बताया, वह 22 जून 2020 को दिल्ली पहुंचा और एक दिन बाद उसने उन्हें फोन किया.

फैजान कहता है, “मैंने 23 जून को उन्हें फोन किया और उनसे पूछा कि मुझे क्या करना चाहिए. उन्होंने मुझसे कहा कि वे मुझे फोन करेंगे और मुझे लोधी रोड के पुलिस स्पेशल सेल जाना होगा. मैं जानता था कि मैंने कुछ नहीं किया. मेरे पास हर बात का जवाब था और मुझे लगता था कि वे लोग उसे सुनेंगे और समझेंगे भी.”

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नौकरी से बिना वजह बताए निकाल दिया गया

फैजान पुलिस अफसर के फोन का इंतजार करता रहा. इस बीच उसके मालिक ने उससे दूरी बनानी शुरू कर दी. एक दिन उसे बताया गया कि ‘उसे होल्ड पर रखा गया है’.

“उन्होंने मुझे हटाने से पहले कोई वजह नहीं बताई. उन्होंने सिर्फ यही कहा कि मुझे होल्ड पर रखा गया है. मैंने उनसे कहा कि प्लीज सीनियर्स से बात कीजिए. लेकिन वापस आकर भी उन्होंने वही दोहराया. इसका मतलब यह था कि जिस कंपनी के साथ मैं 2017 से काम कर रहा था, उसने मुझे बाहर कर दिया था.” उसे देखकर पता चल रहा था कि उसके साथ कितना बड़ा धोखा हुआ था.

बिना नौकरी के फैजान दिल्ली में नहीं रह सकता था. दिन गुजर रहे थे और सीनियर पुलिस अफसर ने उसे फोन नहीं किया था. पर घर लौटने की बजाय फैजान ने खुद उन्हें फोन किया. उसने बताया, “मैंने खुद पुलिस अफसर को फोन किया और कहा कि मेरे पास अब काम नहीं है, और दिल्ली जैसे महंगे शहर में मैं नहीं रह सकता.”

उसे 2 जुलाई को लोधी रोड के दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल आने को कहा गया. वह वहां पहुंचा और वहां उसने अपना नाम, पता, और मोबाइल नंबर दे दिया. उसे उस दिन चले जाने और पूछताछ के लिए अगले दिन आने को कहा गया. अब तक फैजान को कोई अंदाजा नहीं था कि मामला आखिर है क्या.

उसने कहा, “वे मुझसे पूछते रहे कि मैंने किसे नंबर दिया था लेकिन चूंकि मैंने किसी को नंबर दिया ही नहीं था, मैं इस सवाल का जवाब कैसे दे सकता था. वे लोग खीझ गए और मुझे परेशान करने लगे. तब कहीं जाकर मुझे समझ में आया कि माजरा क्या है... ” फिर फैजान को 25 जुलाई के बाद रोजाना बुलाया गया और आखिर 29 जुलाई को उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

फैजान बताता है, “वे लोग मुझे सुबह 11 बजे बुला लेते और रात आठ तक बिठाकर रखते. मुझसे पूछते कुछ नहीं, सिर्फ बिठाकर रखते. लेकिन 29 जुलाई को उन्होंने मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज की.” उसका वॉलेट, मोबाइल फोन ले लिए गए. अब तक वो उसे नहीं मिले हैं.

उसने आगे बताया, “मुझे दिल्ली आते वक्त इसी बात का सबसे ज्यादा डर था... मैं खुद को भरोसा दिला रहा था कि मेरे साथ कुछ बुरा नहीं होगा. लेकिन सब कुछ मेरे काबू, मेरी सोच से बाहर था.” फैजान ने अपने कजिन नावेद को फोन किया. वह नहीं चाहता था कि अपने घर वालों को यह सब बताए क्योंकि वे बहुत डर जाते.

उसने बताया, “मैं जानता था कि मेरे घर वाले बहुत घबरा जाएंगे. इसलिए मैंने नावेद से कहा कि वह उन्हें पूरी ऐहतियात से सारी बातें बताए. इसके बाद भी मेरी अम्मी को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. मेरी बहनें बीमार हो गईं.”

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जेल में ताहिर हुसैन से मुलाकात

फैजान बताता है, “अदालत में जब पहली तारीख पड़ी तो तिहाड़ की वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में एक आदमी मुझसे मिला, लेकिन मैं उसे नहीं पहचानता था. बाद में मुझे पता चला कि उसका नाम ताहिर हुसैन है जिसे दिल्ली दंगों के सिलसिले में पकड़ा गया था.”

ताहिर से पहली मुलाकात को याद करते हुए फैजान कहता है, “उन्होंने मुझसे पूछा, क्या तुम जानते हो कि मैं कौन हूं? मैंने कहा- नहीं. फिर उन्होंने पूछा कि क्या मैं किसी ताहिर हुसैन को जानता हूं. मैंने कहा- नहीं. उन्होंने जवाब दिया, क्या तुम ताहिर हुसैन को नहीं जानते जोकि इतना मशहूर आदमी है. मैं तीसरी बार भी कहा, नहीं. फिर उन्होंने बताया कि वही ताहिर हुसैन हैं. तब तक मैं नहीं जानता था कि इसका क्या मतलब है.” फैजान और ताहिर ही उस दिल्ली दंगा एफआईआर 59 मामले के दो आरोपी थे जिसे तिहाड़ जेल में दायर किया गया था.

फैजान बताता है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कई बॉक्स थे, और उनमें दिखने वाले किसी शख्स को वह नहीं पहचानता था. “जैसे मैं उन्हें नहीं पहचानता था, वे लोग भी मुझे देखकर उलझन में थे. वे लोग भी सोच रहे थे कि मैं कौन हूं.”

फैजान बताता है कि ताहिर हुसैन के साथ उसकी अलग से कोई बात नहीं हुई- सिर्फ दुआ-सलाम हुई. सुनवाई के दौरान वे एक दूसरे के साथ बैठे थे. उसने बताया, “उनके साथ हमेशा दो पर्सनल सिक्योरिटी गार्ड रहते थे, और हम अलग-अलग सेल्स में थे. इसलिए हमारे बीच कोई बातचीत नहीं हुई. दरअसल मैं ज्यादा लोगों से बात नहीं करता था...”

अंदर सिर्फ दुआ करता था और रोता था

जेल के अंदर कैसे रहे, इस पर फैजान कहता है, “अगर आप ज्यादा लोगों से बात करो तो जेल के अंदर लड़ाई होती है और फिर सजा मिलती है. मुझे बताया गया था कि अगर आपकी किसी से लड़ाई होगी तो बेल मिलनी मुश्किल होगी. मैंने वहां सिर्फ एक काम किया, इबादत ही की मैंने अंदर.”

फैजान बताता है, “वहां पर मैंने चार कुरान मुकम्मल किए थे, और पांचवां मेरा कुरान मुकम्मल होने वाला था और फिर मुझे बेल मिल गई थी. वहां एक हिस्सा नमाज के लिए तय है. वहां के इमाम का ट्रांसफर दूसरी जेल में हो गया तो लोग सोच रहे थे कि वहां नमाज कौन करवाएगा. वहां मैं अकेला था जो सारा समय उस जगह पर रहता था जो मस्जिद के लिए तय थी...”

फैजान कहता है कि वह बहुत रोने वाले लोगों में से नहीं था, “मैं ऐसा नहीं था कि बात-बात पर रोने लगूं. मुझे अच्छा लगे, इसलिए मेरी दादी बताया करती थीं कि शादियों में जब सब लोग रोया करते थे, तो मैं हंसता था और लोगों से पूछता था कि वे लोग इतने जज्बाती क्यों हैं. लेकिन तब से मैं बहुत बदल गया हूं. मैं बहुत रोया करता हूं.”

दिल्ली हाई कोर्ट ने बेल दी, जिसे दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

फैजान को 23 अक्टूबर को बेल मिल गई थी. उसे यह बात 24 नवंबर को उसके कजिन नावेद ने बताई. कुछ दिन बाद वह तिहाड़ जेल से बाहर निकल गया.

उसकी वकील अजरा रहमान जोकि सीनियर एडवोकेट सलाम खुर्शीद के चैंबर में काम करती हैं, ने कहा कि जब फैजान जेल में था, तो वह उससे बात नहीं कर पाईं.

“मैं फैजान से बात नहीं कर पाई क्योंकि तब वकील लोग आरोपियों से बात नहीं कर पा रहे थे. यह जुलाई की बात है, जब कोविड-19 के मामले खूब बढ़ रहे थे. मैंने उसकी मां, बहन और रिश्तेदारों से बात की. उसकी मां बराबर कहती थीं कि उनका बेटा बेगुनाह है. उनके शौहर गुजर चुके हैं और बड़ा बेटा होने के नाते फैजान ही पूरे परिवार की देखभाल करता है. उसकी बहन ने मुझसे कहा कि वे लोग फैजान को बाहर निकालने के लिए अपना सब कुछ बेच देंगे. पड़ोसी उन्हें परेशान कर रहे थे. रिश्तेदार तरह तरह के सवाल कर रहे थे. लेकिन घर वालों को इसका इल्म नहीं था कि क्या होने वाला है.” फैजान की बेल 28 अगस्त को निचली अदालत ने ठुकरा दी थी लेकिन 23 अक्टूबर को दिल्ली हाई कोर्ट के जज सुरेश कुमार कैत ने उसे बेल दे दी.

लेकिन मामला यहां शांत नहीं हुआ. अजरा ने बताया कि दिल्ली पुलिस ने उस बेल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. हालांकि 23 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की उस याचिका को रद्द कर दिया जिसमें उसने फैजान की बेल रद्द करने की मांग की थी.

दिल्ली हाई कोर्ट की बेल का आदेश इस तरह है- रिकॉर्ड पर, जैसे सीसीटीवी फुटेज, याचिकाकर्ता के वीडियो या चैट से इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है सिवाय इस आरोप के कि उसने दिसंबर 2019 में एक फर्जी आईडी पर सिम कार्ड उपलब्ध कराया था और इसके लिए 200 रुपये की छोटी सी राशि ली थी. यह ऐसे प्रोसीक्यूशन का मामला नहीं है कि उसने कई सिम कार्ड मुहैया कराए और ऐसा बराबर करता रहा. यह उस प्रॉसीक्यूशन का भी मामला नहीं है कि वह किसी चैट ग्रुप का हिस्सा था, या ऐसे किसी ग्रुप का हिस्सा था जिसने मौजूदा मामले में कथित रूप से अपराध करने की साजिश रची थी.

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पर क्या फैजान पहले जैसा रह गया है

तीन महीने जेल में रहने के दौरान फैजान का वजन बहुत कम हो गया. उसने बताया, “ऐसा लगता था कि जैसे शरीर में जान ही नहीं बची.” घर वाले कहीं उसकी यह नाजुक हालत न देख लें, इसलिए वह अपने कजिन नावेद के साथ 20 दिनों तक रहा. “जैसे ही मैं तिहाड़ से बाहर आया, नावेद ने घर पर वीडियो कॉल किया. मैंने उनसे कहा कि फोन डिस्कनेक्ट कर दें. मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था. मैं नहीं चाहता था कि वे लोग मुझे इस हाल में देखें.”

बेल मिलने का कोई जश्न नहीं मनाया गया. फैजान पूरी रात रोता रहा. “मैंने आपसे सच कहा है. मैं वह पुराना वाला फैजान नहीं रह गया था.”

अगले 20 दिनों तक फैजान ने तीन समय का खाना तो खाया, लेकिन घर से बाहर नहीं निकला. “मैं बहुत डरा हुआ था. ऐसा लगता था कि सबकी नजरें मुझ पर हैं और मैं सोचता था कि शायद सभी लोग जानते हैं कि मुझ पर क्या इल्जाम लगाए गए हैं.”

“13 नवंबर को मैं घर लौटा- उसी नौ घंटे के सफर के लिए चला...इस बार मैं एकदम बदला हुआ इंसान था. ऐसा इंसान जो कभी दिल्ली नहीं लौटना चाहता...ऐसा इंसान जो अपना सारा समय अपने घर वालों के साथ बिताना चाहता है... जो फिर कभी भी किसी चीज को हल्के में नहीं लेगा....”

सब लोगों ने उसे देखा, कुछ फुसफुसाए भी. उसके घर वाले रोने लगे, उसके साथ लोगों की भीड़ थी जिसमें आस-पास के लोग, पड़ोसी और रिश्तेदार थे. “बाद में भी लोग आते रहे, और मुझसे पूछते रहे कि क्या हुआ था. मैं बार-बार वही सब बताता रहा. आखिर मैं बहुत थक गया. एक दोस्त के निकाह में गया तो वहां भी लोग वही सब पूछने लगे. मैं निकाह छोड़कर वापस आ गया... छोटे शहरों में सभी को सब कुछ पता चल जाता है.”

“सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि मेरे चाचा ने हमसे रिश्ता तोड़ दिया. अब्बू के गुजरने के बाद मुझे लगता था कि कोई है जिस पर मैं भरोसा कर सकता हूं. वह मेरे चाचा थे. लेकिन तीन महीने जब मैं जेल में था, तो वह एक बार भी मेरे भाई-बहनों या अपनी भाभी यानी मेरी अम्मी का हाल-चाल पूछने नहीं आए. वे मेरे आने के बाद भी मुझसे मिलने नहीं आए. इस हादसे ने मेरी आंखें खोल दीं.” फैजान की बात से पता चलता है कि उसका दिल टूट गया है.

लेकिन उसके दोस्त पहले जैसे ही हैं. फैजान दिल्ली लौटना नहीं चाहता, और वहीं रहकर काम करना चाहता है. इसलिए उसके दोस्तों ने उसे कुछ पैसे उधार दिए हैं ताकि वह अपना कुछ काम धंधा शुरू कर सके, और घर वालों के करीब रह सके. “उन सभी ने मेरी मदद की है इसी वजह से मैं महिलाओं के कपड़ों की एक दुकान शुरू कर पाया. इसे शुरू हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ है....”

वह अपने परिवार की देखभाल करने की कोशिश कर रहा है लेकिन कहता है कि माजी (अतीत) उसका पीछा नहीं छोड़ रहा. “मैं अपनी दूसरी छोटी बहन का निकाह करना चाहता हूं. लेकिन जैसे ही लोगों को पता चलता है कि मैं तीन महीने जेल में बिताकर आया हूं, लोग बात आगे ही नहीं बढ़ाते.”, फैजान शर्मिंदा होकर कहता है.

“मैं नए सिरे से जिंदगी शुरू करने की कोशिश कर रहा हूं... मैं यह सोचना नहीं चाहता कि यह सब मेरे साथ क्यों हुआ. न मैं, न मेरा परिवार. बिना किसी सबूत के, कोई किसी के साथ ऐसा सलूक कैसे कर सकता है? क्या यह सब मेरे साथ, मेरी पहचान की वजह से हुआ? मैं नहीं जानता...”

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