“जामिया में किसी से मिलना अपने आप में गैर कानूनी नहीं है. जामिया में जाना अपने आप में गैर कानूनी नहीं है. व्हॉट्सऐप ग्रुप पर चैट करना अपने आप में गैर कानूनी नहीं है.”
ये शब्द सीनियर वकील त्रिदीप पैस के हैं जोकि जमानत याचिका पर एक्टिविस्ट उमर खालिद की पैरवी कर रहे हैं. यह जमानत गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) एक्ट (यूएपीए) के तहत दायर दिल्ली दंगों के षड्यंत्र मामले में मांगी जा रही है. यह मामला एफआईआर 59 में दर्ज है.
इस खास मामले के आरोपियों की पूरी लिस्ट यहां छापी जा रही है. इस मामले में दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि दिल्ली दंगों के ‘षडयंत्र’ की तैयारी 23 फरवरी 2020 को शुरू हो गई थी.
हालांकि मुख्य चार्जशीट सितंबर 2020 में दायर की गई थी लेकिन इस मामले में ट्रायल शुरू होना अभी बाकी है.
एक आरोपी के वकील ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट से कहा, “ट्रायल अभी शुरू नहीं हुए क्योंकि सभी दस्तावेजों की छानबीन अब भी की जा रही है.”
सोमवार 21 फरवरी को ह्यूमन राइट्स वॉच ने एक बयान में कहा है कि “दंगों की पुलिसिया जांच पूर्वाग्रहों से भरी हुई है. इसमें गलतियां हैं, देरी है, उचित सबूतों की कमी है, और उसमें सही प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया है.” एनजीओ ने अथॉरिटीज़ से कहा कि “राजनीति से प्रेरित आरोपों को खारिज करें और 18 एक्टिविस्ट्स को रिहा करें.”
लेकिन दो साल बाद दिल्ली दंगों का मामला कहां तक पहुंचा है? आरोपी कितने लंबे समय से जेल में बंद हैं? क्या इनमें से किसी को जमानत पर रिहा किया गया है?
उमर खालिद
एक्टिविस्ट और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व स्टूडेंट उमर खालिद को इस मामले में 14 सितंबर 2020 को गिरफ्तार किया गया. अभी हाल ही में, 18 फरवरी को उमर को अदालत के सामने हथकड़ी लगाकर पेश किया गया, हालांकि इस अदालती आदेश में कहा गया था कि ऐसा नहीं किया जाएगा. जब उमर के वकील ने दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई के खिलाफ अदालत का रुख किया (क्योंकि उसने अदालती आदेश की अनदेखी की थी) तो एडिशनल सेशंस जज अमिताभ रावत ने जांच के आदेश दिए.
इसके बाद जज ने टिप्पणी की, “इस बात को दोहराने की जरूरत नहीं है कि एक अंडर-ट्रायल कैदी पूरी कार्यवाही के दौरान अदालत की हिरासत में रहता है. उसे बेड़ियों/हथकड़ी लगाने जैसा कोई भी कदम तभी लिया जा सकता है जब न्यायालय अनुरोध या आवेदन पर अनुमति देता है. इस अदालत ने इस आरोपी या इस मामले के किसी भी आरोपी के लिए ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया."
इस बीच द हिंदू की खबर के मुताबिक, एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने ‘मिसकम्यूनिकेशन’ को इसकी वजह बताया है.
उमर की जमानत याचिका को जुलाई 2021 में दायर किया गया था. इसमें उमर के वकील ने तर्क दिया है कि इस मामले में दायर चार्ज शीट में उमर के खिलाफ रैंडम आरोप लगाए गए हैं, जिनका कोई आधार नहीं है. पैस का कहना है कि वह “पूरी तरह से प्रॉसीक्यूशन की कल्पना” पर आधारित है.
34 वर्षीय उमर की जिंदगी जेल में कैसे कट रही है? उसने अपने एकांतवास के बारे में लिखा है, यह भी कि वह कोविड-19 महामारी में लोगों की मदद करना चाहता है और जेल में रहते हुए अक्सर वह “बेबस होकर सोचा करता है कि घर में सब कैसे होंगे.”
खालिद सैफी
दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार 16 फरवरी को यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के फाउंडर खालिद सैफी की जमानत याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा है. वह 2020 के दिल्ली दंगों के मामले में आरोपी है.
सीनियर वकील रेबेका जॉन यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के फाउंडर खालिद सैफी की पैरवी कर रही हैं. बुधवार 16 फरवरी को दिल्ली की अदालत में उसकी जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान रेबेका ने कहा,
“प्रॉसीक्यूशन इस नेरेटिव को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश क्यों कर रहा है? इस नेरेटिव को एक समुदाय पर मत थोपिए."रेबेका
उन्होंने यह भी कहा कि व्हाट्सएप चैट में मैसेजेज़ को चुन-चुनकर पढ़ा जा रहा था. प्रॉसीक्यूशन उन मैसेजेज़ को अतिरिक्त अर्थ दे रहा है, और इन मैसेजेज़ पर पूरे मामले को आधारित कर रहा है.
“साज़िश चुपचाप रची जाती हैं लेकिन साज़िशें चुप नहीं रहतीं. साज़िश के लिए भी पुख्ता सबूत दिखाने पड़ते हैं.'रेबेका जॉन, खालिद सैफी की वकील
इस बीच सितंबर 2020 की एक जमानत अर्जी में कहा गया है कि खालिद को "हिरासत में क्रूर यातना" का सामना करना पड़ा है. द क्विंट ने भी खबर दी थी कि जब 26 फरवरी 2020 को खालिद को पहली बार पुलिस ने उठाया था तो पुलिस स्टेशन ले जाते समय उसके शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था लेकिन आठ घंटे बाद जब उसे कड़कड़डूमा अदालत ले जाया गया तो पार्किंग लॉट में उसके शरीर पर गंभीर चोटों के निशान देखे गए थे. हालांकि पुलिस ने प्रताड़ना के इन आरोपों से इनकार किया है.
शरजील इमाम
“गिरफ्तारी पहले की गई, कृत्य बाद में. गिरफ्तारी पहले की गई, दंगा बाद में हुआ, ” शरजील इमाम के वकील तनवीर अहमद मीर ने 11 फरवरी को शरजील की जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान अदालत से कहा.
शरजील इमाम को जनवरी 2020 में हिरासत में लिया गया था. उसी साल फरवरी में दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे.
तनवीर ने यह भी कहा कि प्रॉसीक्यूटर को यह बताना चाहिए कि “एक समय सीमा के भीतर किया गया एग्रीमेंट, क्या हिंसा भड़काने वाला एग्रीमेंट था” और पूछा कि शरजील ने किसकी हत्या की साजिश रची थी?
20 दिसंबर 2020 को शरजील के वकील अहमद इब्राहीम ने न्यूजक्लिक को बताया था कि जब शरजील जेल में कोविड पॉजिटिव हुआ तो उसे इस बात का खौफ नहीं था कि अपने परिवार से मिले बिना उसकी मौत हो जाएगी.
अहमद ने शरजील के हवाले से बताया था, “उसे इस बात डर था कि मैं आतंकवादी नहीं हूं, मैं यह साबित नहीं कर पाऊंगा.”
25 जनवरी को एडीशनल सेशंस जज अमिताभ रावत ने शरजील की जमानत की अर्जी को ठुकरा दिया और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए (देशद्रोह), 153ए (धर्म के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना), 153बी (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक बयान), 505 (लोक हानि करने वाला बयान) और यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा) के तहत आरोप तय किए हैं.
सितंबर 2021 में दिल्ली पुलिस ने कहा था कि शरजील इमाम ने अपने कथित भड़काऊ भाषणों में से एक "अस-सलामु अलैकुम" के साथ शुरू किया था, जिसका मतलब यह था कि वह एक खास समुदाय को संबोधित कर रहा था.
इसी सिलसिले में सह आरोपी खालिद सैफी ने बाद में एक अदालत से कहा था: “मैं जब भी लोगों से मिलता था, उन्हें सलाम करता था. लेकिन क्या मुझे अब ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह गैर कानूनी है."
गुलफिशा फातिमा
पिछले साल अक्टूबर में 28 साल की एक्टिविस्ट गुलफिशा फातिमा के साथ एकजुटता दिखाते हुए देश भर में कई प्रेस कांफ्रेंस की गईं. इसमें सीधी सी मांग की गई- गुलफिशा और उसकी सह आरोपी को रिहा किया जाए.
गुलफिशा की रिहाई की मांग करने वाले संगठनों ने उसके खिलाफ मामले पर दुख जताया और कहा, "यह आज हमारे देश की दुखद सच्चाई की झलक है, कि यह ऐसे पल है जब नौजवान लड़कियों ने एक आजाद और इंसाफ पसंद दुनिया का ख्वाब देखा था.”
गुलफिशा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से उर्दू में मास्टर्स किया, वह एमबीए ग्रैजुएट है और रेडियो जॉकी रही है. उस पर चार मामले दर्ज थे, लेकिन उसे एफआईआर 59 को छोड़कर बाकी सभी में जमानत दे दी गई है.
मीडिया के सामने उसके पिता ने कहा कि जब से उनकी बेटी को कस्टडी में लिया गया है, वह डिप्रेशन में हैं. उन्होंने कहा, “मैं बेहोश भी हो गया. मैं कहीं के लिए निकलता हूं लेकिन और कहीं पहुंच जाता हूं. मुझे याद नहीं है कि मैं कहां हूं. फिर मुझे रुकना और इंतजार करना पड़ता है."
प्रेस कांफ्रेंस को कई महीने बीत चुके हैं लेकिन गुलफिशा क़ैद में है. वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन अगेंस्ट टॉर्चर (ओएमसीटी) के अनुसार, सह-आरोपी खालिद सैफी और इशरत जहां की तरह उसे भी हिरासत में हिंसा का शिकार बनाया गया है.
और बाकियों का क्या?
इस बीच 15 फरवरी को दिल्ली की एक अदालत ने जामिया के स्टूडेंट लीडर मीरान हैदर के वॉयस सैंपल की मांग करने वाली प्रॉसीक्यूशन की याचिका को मंजूर कर लिया और कहा कि यह उसे अपने खिलाफ गवाह नहीं बनाता है. मीरान करीब 700 दिनों से जेल में है जिसकी जमानत की कोई उम्मीद नहीं है.
कांग्रेस पार्टी की पूर्व पार्षद इशरत जहां को इस साल 26 फरवरी की गिरफ्तारी को दो साल पूरे हो जाएंगे.
पिछले साल की शुरुआत में, उनके पति फरहान हाशमी ने बताया था कि वह जेल में महफूज़ महसूस नहीं करती और आरोप लगाया कि "स्टाफ उसके साथ भेदभाव करता है, अक्सर उसके मज़हब का हवाला देता है और कहता है कि वह वह यूएपीए की आरोपी है." जेल में दूसरी कैदी भी उसके साथ बुरा बर्ताव करती हैं.
इसके बाद उसके परिवार ने एक अर्जी दी थी और कड़कड़डूमा के सेशंस जज ने तब इस मामले को संज्ञान में लिया था. उन्होंने कहा था कि इशरत की सुरक्षा के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं. इशरत की बहन ने बताया था कि सुनवाई के दौरान इशरत रो रही थी.
अगस्त 2021 में इशरत ने अपने वकील के जरिए अदालत को बताया था कि प्रॉसीक्यूशन को इशरत की कैद की मियाद को बढ़ाकर “सैडिस्ट प्लेज़र” (किसी को दुखी करके मिलने वाला आनंद) मिल रहा है. चूंकि प्रॉसीक्यूशन का कहना है कि उसकी जमानत की अर्जी गलत प्रावधानों के तहत दायर की गई थी.
26 अप्रैल, 2020 से शिफा उर रहमान हिरासत में हैं. उन्हें किडनी की गंभीर बीमारी है. ओएमसीटी के मुताबिक, उन्हें जेल में मेडिकल केयर देने से भी इनकार कर दिया गया.
सिर्फ पांच लोग जमानत पर रिहा
एफआईआर मे 18 नाम हैं, और सिर्फ पांच को जमानत पर रिहाई मिली है.
सिम कार्ड बेचने वाले और यूएपीए के पहले आरोपी मोहम्मद फैजान खान को 23 अक्टूबर 2020 को रेगुलर बेल मिली. उसने फरवरी में द क्विंट को बताया था:
“जेल दोज़ख का ट्रेलर है... आप अपने परिवार से बात नही कर पा रहे... पता नहीं क्या होगा आपके साथ हर दिन....”
जामिया मिलिया इस्लामिया में एमफिल स्टूडेंट सफूरा ज़रगर को 23 जून 2020 को मानवीय आधार पर जमानत दी गई थी क्योंकि तब वह 24 महीने प्रेग्नेंट थी.
जून 2021 को दिल्ली हाई कोर्ट ने स्टूडेंट एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कलीता और आसिफ इकबाल तनहा को जमानत दी थी, और कहा था:
“हम यह जाहिर करने के लिए मजबूर हैं कि ऐसा लगता है, कि राज्य के दिमाग में, असंतोष को दबाने की चिंता में, विरोध करने के संवैधानिक अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है. अगर यह मानसिकता जोर पकड़ती है, तो यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा.”
'दिल्ली 18' की लंबी कैद के बीच आलोचना और विवाद
नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के बीच 23 फरवरी 2020 से दिल्ली में दंगे भड़के थे. उत्तर पूर्वी दिल्ली के कुछ हिस्सों में 53 से ज्यादा लोग मारे गए थे (36 मुसलमान, 15 हिंदू और दो अज्ञात लोग). घरों को तबाह कर दिया गया था, दुकानों में आग लगा दी गई थी और स्कूलों, कारोबारों और मस्जिदों को तोड़ा-फोड़ा गया था.
इस दौरान दंगों में "व्यापक साजिश" के 18 आरोपियों में से 16 लोग (एफआईआर 59) मुस्लिम समुदाय के थे.
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया और दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी खुद की जांच में यह पाया कि पुलिस ने दंगों के दौरान गंभीर मानवाधिकारों का उल्लंघन किया था.
"ये वीडियो दंगों के दौरान रिकॉर्ड किए गए थे और यह देखा गया था कि दिल्ली पुलिस ने मानवाधिकारों का खुले आम उल्लंघन किया था... एमनेस्टी इंटरनेशनल ने देखा था कि दिल्ली में हिंसा के दौरान कई मामलों में पुलिस अधिकारियों का व्यवहार चिंता पैदा करता है: क) उन्होंने वहां मौजूद होने के बावजूद हस्तक्षेप नहीं किया, ख) सिर्फ सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया या उन पर हमला किया और ग) पीड़ितों की शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया.
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
दिल्ली पुलिस ने इस मामले में 17,000 पेज की एक चार्जशीट जमा की, जिसमें आरोपियों के खिलाफ काल्पनिक आरोप हैं, और गैर भरोसेमंद, अनाम गवाहों के जरिए इन आरोपों की पुष्टि की गई है.
26 जून 2020 को एक सार्वजनिक बयान में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय (ओएचसीएचआर) ने संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का हवाला दिया और कहा कि एंटी सीएए प्रदर्शनों पर अधिकारियों की प्रतिक्रिया "भेदभावपूर्ण" थी.
ओएचसीएचआर ने यह भी कहा था कि सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तुरंत रिहाई की जाए जिन्हें "इस समय पर्याप्त सबूतों के बिना मुकदमे से पहले हिरासत में रखा जा रहा है. वह भी सिर्फ उन भाषणों के आधार पर जिनमें उन्होंने सीएए की आलोचना की है. ओएचसीएचआर ने यह भी कहा था:
“इन कार्यकर्ताओं में से कई स्टूडेंट्स को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया गया है क्योंकि उन्होंने सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) की निंदा और विरोध करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल किया, और उन्हें साफ तौर से भारत के नागरिक समाज को एक कड़ा संदेश देने के लिए गिरफ्तार किया गया है कि सरकारी नीतियों की आलोचना बर्दाश्त नहीं की जाएगी."ओएचसीएचआर
इस बीच यह बताना भी जरूरी है कि भले ही दिल्ली पुलिस ने दिल्ली दंगों में 758 एफआईआर दर्ज की थीं लेकिन सिर्फ 92 मामले ही सुनवाई तक पहुंचे हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने भारत के आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विरोध प्रदर्शनों का आयोजन करने लोगों पर गलत तरीके से मुकदमा चलाने के लिए भारतीय अधिकारियों की आलोचना की है.
ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया की डायरेक्टर मीनाक्षी गांगुली का कहना है कि, "भारतीय अधिकारी बीजेपी नेताओं के हिंसा भड़काने और हमलों में पुलिस वालों की मिलीभगत के आरोपों की जांच की बजाय एक्टिविस्ट्स पर निशाना साध रहे हैं, और उन्हें गिरफ्तार कर रहे हैं."
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त, मिशेल बाचेलेट ने इस बात पर चिंता जताई है कि भारत सरकार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ यूएपीए का इस्तेमाल कर रही है. उन्होंने कहा है:
“हाल के महीनों में मानवाधिकार कार्यकर्ता और एक्टिविस्ट्स बहुत दबाव में आ गए हैं, खास तौर से इस साल की शुरुआत में देश में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने की वजह से. कथित तौर पर विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए 1,500 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिनमें से कई पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून के तहत आरोप लगाए गए हैं- यह एक ऐसा कानून जिसकी व्यापक स्तर पर आलोचना की गई है क्योंकि यह मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप नहीं है.
जेल मे 500 दिनों से ज्यादा वक्त गुजार चुके उमर का एक आर्टिकल आउटलुक के जनवरी अंक में छपा था. उमर ने उसमें 20वीं शताब्दी के कवि इकबाल के एक शेर का हवाला दिया था:
“आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना, वो बागों की बहारें, वो सब का चहचहाना....”
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