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दिल्ली दंगा:आसिफ,नताशा,कलिता को जमानत देने के खिलाफ याचिका पर SC में आज सुनवाई

15 जून को देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी.

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भारत
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दिल्ली दंगे के एक मामले में पिंजड़ा तोड़ की नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और जामिया के छात्र आसिफ तन्हा को जमानत देने के दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के फैसले के खिलाफ दिल्ली पुलिस की ओर से दायर याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी.

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बता दें कि 15 जून को दिल्ली हाईकोर्ट ने इन तीनों को जमानत दी थी, जिसके बाद 17 जून को तीनों जेल से रिहा हुए.

अब जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच 22 जुलाई को मामले की सुनवाई करने वाली है. इससे पहले जून में पुलिस ने नॉर्थ ईस्ट दिल्ली हिंसा के आरोपी कलिता, नरवाल और तन्हा को जमानत देने के हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

शीर्ष अदालत ने तब दिल्ली दंगों के मामले में तीनों छात्र एक्टिविस्ट को दी गई जमानत को रद्द करने से इनकार कर दिया था, लेकिन ये भी कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला UAPA के किसी और मामले में नजीर नहीं बन सकता है.

बता दें कि गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून यानी 'UAPA' के तहत नताशा नरवाल, आसिफ तन्हा और देवांगना कलिता दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद थे. 5 जून को दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जे भंभानी की बेंच ने कहा कि पहली नजर में UAPA की धारा 15, 17 या 18 के तहत कोई भी अपराध तीनों के खिलाफ वर्तमान मामले में रिकॉर्ड की गई सामग्री के आधार पर नहीं बनता है.

अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा,

“हमारे सामने कोई भी ऐसा विशेष आरोप या सबूत नहीं आया है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि याचिकाकर्ताओं ने हिंसा के लिए उकसाया हो, आतंकवादी घटना को अंजाम दिया हो या फिर उसकी साजिश रची हो, जिससे कि UAPA लगे.”

दिल्ली पुलिस ने जमानत के फैसले पर हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए कहा है कि उच्च न्यायालय ने "न केवल एक मिनी-ट्रायल किया, बल्कि विकृत निष्कर्ष भी दर्ज किए हैं जो रिकॉर्ड के विपरीत हैं" और जमानत याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए लगभग केेस का फैसला सुना दिया. दिल्ली हाई कोर्ट ने 15 जून को तीन छात्र कार्यकर्ताओं को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि "असहमति को दबाने की चिंता में राज्य ने विरोध करने के अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है" और अगर इस तरह की मानसिकता को बल मिलता है, तो यह एक " लोकतंत्र के लिए दुखद दिन" होगा.

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