दिल्ली दंगे मामलों में, पुलिस ने 11 जनवरी को, एक गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कथित "उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की साजिश का विचार था सरकार को घुटनों पर लाने के लिए था."
अभियोजन पक्ष की तरफ से SPP अमित प्रसाद ने कहा, "दंगे स्पष्ट रूप से गुप्त तरीके से की गई एक आपराधिक साजिश थे. अपराध के बाद एक निरंतरता है और इसे छिपाने का एक स्पष्ट प्रयास है."
उन्होंने आगे कहा कि सबूतों को ध्यान में रखते हुए साजिश को साबित करना होगा कि दंगे "हिंसा" नहीं थे.
उन्होंने कहा, "हाईकोर्ट ने सराहना की कि ऐसा अचानक नहीं हुआ. 23 विरोध स्थल बनाए गए थे. वो ऑर्गैनिक नहीं थे, लेकिन मस्जिदों के नजदीक में सावधानीपूर्वक योजना बनाई गई थी. लॉजिस्टिक सपोर्ट आदि देने के लिए टीमें थीं. हमने इसका प्रदर्शन किया है."
प्रसाद ने दावा किया कि इसके पीछे मकसद सरकार को घुटनों पर लाना और CAA को वापस लेने का था.
प्रसाद ने ये भी आरोप लगाया कि चार्जशीट एक वेब सीरीज की कहानी और "जांच अधिकारी की कल्पना" की तरह थी.
SPP ने कहा, "ये तर्क दिया गया था कि आईओ सांप्रदायिक है. ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. जांच एजेंसी किसी विशेष व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक राज्य की है. अगर हमें कोई समस्या है तो हमें उसी जांच एजेंसी तक पहुंचना होगा. दिल्ली दंगों के मामले में पहली सजा एक हिंदू को हुई थी."
उन्होंने पूछा, "वो चाहते हैं कि वर्तमान मामले का फैसला वेब सीरीज के आधार पर किया जाए और वो (इसे) ट्रायल ऑफ शिकागो 7 और फैमिली मैन के साथ बराबरी करना चाहते हैं. वो इस मामले की तुलना फैमिली मैन से क्यों करना चाहते हैं?"
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)