इस हफ्ते दिल्ली पुलिस ने फरवरी में नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में सात चार्जशीट दाखिल की हैं. जहां पहली चार चार्जशीट में एंटी-CAA प्रदर्शनकारियों और मुस्लिम समुदाय के कथित दंगाइयों पर फोकस रहा है, बाकी की दो चार्जशीट में हिंदू समुदाय की तरफ से हुई कथित हिंसा का जिक्र है.
चार्जशीटों के इन दो सेट में कुछ अहम अंतर हैं, जो जांच के तरीके का अनुमान देता है.
'मुस्लिम उकसावा' vs 'हिंदू बदला'
चार्जशीटों को देखकर लगता है कि मुख्य नैरेटिव ये था कि मुस्लिमों और एंटी-CAA प्रदर्शनकारियों की तरफ से उकसावा और स्थानीय हिंदुओं की ओर से बदला.
उदाहरण के तौर पर आकिल अहमद (FIR नंबर 36) और मुशर्रफ के मर्डर (FIR नंबर 38) से संबंधित चार्जशीट पर पुलिस के नोट का ये अंश देखिए:
"घटना की दोनों जगहों पर CCTV कैमरा नहीं थे. सूत्रों की जानकारी के मुताबिक, ये पता चला कि 24 फरवरी को दंगों के बाद, जिसमें मुस्लिम भीड़ ने बड़े स्तर पर दंगा किया और हिंदू समुदाय के जानमाल का काफी नुकसान हुआ था. इसके बाद कुछ हिंदू 25 और 26 फरवरी 2020 को साथ मिल गए. इस ग्रुप की पहचान की गई और कुछ सदस्यों को पकड़ा भी गया. पूछताछ के दौरान, ये पता चला कि 25 और 26 फरवरी 2020 को एक 'Whatsapp' ग्रुप बनाया गया था. इस ग्रुप में 125 लोग थे. इस Whatsapp ग्रुप में कई लोग 'साइलेंट' थे. इसके बाद चश्मदीदों की पहचान की गई और जांच हुई. मौखिक सबूतों के आधार पर और Whatsapp ग्रुप की चैट से आरोपियों की पहचान की गई."
कार मैकेनिक और पेंटर आकिल अहमद को भागीरथी विहार में एक भीड़ ने जल बोर्ड पुलिया के पास मार दिया था. वहीं ऑटो ड्राइवर मुशर्रफ को पीट-पीटकर मार डाला गया था और उसका शव भागीरथी विहार सी ब्लॉक के नाले में फेंक दिया था.
आकिल अहमद की हत्या मामले में 10 लोग और मुशर्रफ के मर्डर में 9 लोग गिरफ्तार हुए हैं.
पुलिस के वर्जन में दोनों हत्याओं को इस तरह दिखाया गया है कि ये पिछले दिन मुस्लिम भीड़ के दंगे पर हिंदू समुदाय की प्रतिक्रिया लगे.
दिल्ली हिंसा के कई मामलों को संभाल रहे वरिष्ठ वकील महमूद प्राचा कहते हैं, "लेकिन ये कैसे मुमकिन है? जो मारे गए हैं, उनमें बड़ी संख्या में मुस्लिम हैं. प्रार्थना की जो जगहें तोड़ी गई हैं, वो मुस्लिमों की हैं. तो कोई ये कैसे कह सकता है कि हिंसा मुस्लिमों ने की थी."
साजिश का एंगल
एंटी-CAA प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दाखिल हुईं चार्जशीटों में एक अहम बात साजिश का एंगल है. उदाहरण के लिए, जाफराबाद रोड की ब्लॉकिंग और नए मुस्तफाबाद में राजधानी स्कूल के करीब हिंसा के आरोपियों पर पहले से हुई साजिश का आरोप है.
वहीं, दूसरी तरफ की चार्जशीटों में ये एंगल एकदम गायब है.
गौर करने वाली बात ये है कि हिंदू समुदाय के लोगों से संबंधित दोनों चार्जशीट WhatsApp ग्रुप के बनने पर फोकस करती हैं. हमने FIR नंबर 36 और 38 में ऐसे ग्रुप बनने के बारे में देखा. ऐसा ही कुछ FIR नंबर 35 और 37 में दाखिल हुई चार्जशीट में भी देखा जा सकता है. ये FIR आमिर अली और हाशिम अली नाम के भाईयों की हत्या से संबंधित है. इसमें पुलिस के नोट का ये अंश देखिए:
"इन मामलों की जांच के दौरान, ये पाया गया कि दंगों के चरम पर होने के दौरान 25 और 26 फरवरी की रात में एक Whatsapp ग्रुप बनाया गया, जिसमें 125 सदस्य थे. इस ग्रुप के दो एक्टिव सदस्यों को लोकेट किया गया और जांच में शामिल किया गया. जांच के दौरान इनके मोबाइल फोन स्कैन किए गए और ये ग्रुप भी पहचाना गया. जांच में ये भी पता चला कि ग्रुप के कुछ सदस्य सिर्फ मैसेज भेज और रिसीव कर रहे थे और बाकी कुछ दंगों में शामिल थे."
पुलिस ने दावा किया है कि इस ग्रुप के कुछ मैसेज में 'बदला' और 'प्रतिशोध' अहम बिंदु थे.
पुलिस ने कहा कि हाशिम अली मामले में 9 लोग और आमिर अली मामले में 11 लोग गिरफ्तार किए गए हैं.
हालांकि जाफराबाद केस में एक WhatsApp मैसेज का इस्तेमाल साजिश का आरोप लगाने के लिए हुआ है. कहा जा रहा है कि ये मैसेज आरोपी के फोन से मिला है और इसमें स्थानीय औरतों को घरों की सुरक्षा करने के तरीके बताए गए हैं.
महमूद प्राचा का कहना है कि इससे पता चलता है जांच एक-तरफा है. उन्होंने कहा, "यहां अकेली साजिश गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस की है. उन्होंने हिंसा की और मुस्लिमों पर हमला किया." प्राचा UAPA की आरोपी गुलफिशा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
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