"कितना खूबसूरत बच्चा था मेरा, जालिमों ने सर में गोली मारी, शादी के लिए रिश्ता ढूंढ रहे थे. अब उसकी लाश ढूंढ रहे हैं. 27 को दम तोड़ा है, दो दीन बीत चुके है लेकिन अब तक हमारे बच्चे की लाश हमको नहीं मिली. पोस्ट मॉर्टम में उसका नंबर नहीं आया है." ये बोलते हुए 49 साल के साबिर चुप हो जाते हैं. उनके आंसू दो दिन से रोते-रोते अब सूख गए हैं. दिल्ली में हुई हिंसा में साबिर के 24 साल के बेटे सलमान की गोली लगने से मौत हो गई थी.
25 फरवरी को शिव विहार इलाके में हुई हिंसा के दौरान सलमान को गोली लगी थी. किसी अनजान शख्स ने सलमान को दिल्ली के जीटीबी अस्पताल पहुंचाया था. जहां दो दिनों के बाद उसकी मौत हो गई. लेकिन सलमान का शव उसके परिवार को 30 फरवरी को मिला.
दिल्ली के जीटीबी अस्पताल का मुर्दाघर, अकसर सन्नाटा और अजीब सी डरा देने वाली खामोशी समेटे रहता है लेकिन पिछले कुछ दिनों से यहां पर हलचल है. लोगों की भीड़ है. जीटीबी अस्पताल के इस मुर्दाघर ने अपने बनने के बाद से शायद इतनी भीड़ पहली बार देखी होगी.
मौत के बाद भी इंतजार
जीटीबी के बाहर साबिर ही की तरह कई परिवार अपनों की मौत के दर्द में डूबे हैं. लेकिन उनके दर्द की इंतहा और बढ़ जाती है जब अपने रिश्तेदारों की डेड बॉडी लेने के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ रहा है.
‘अब जब मर गया तब भी हमें वो नहीं मिल रहा’
बिजनौर के सहसपुर के रहने वाले साबिर बताते हैं कि सलमान मुस्तफाबाद में सिलाई का काम करता था, वो काम के बाद अपने रूम लौट रहा था, तब ही उसे गोली लगी. उन्होंने कहा, “किसी ने WhatsApp पर सलमान की गोली लगी हुई फोटो भेजी, तब हम लोग उसे ढूंढते हुए जीटीबी अस्पताल पहुंचे. यहां उसे सीटी स्कैन के लिए ले जा रहे थे, हमारा बच्चा दो दिन तक जिंदा रहा लेकिन कभी आंख खोलकर हमें नहीं देखा, कुछ बोल भी नहीं सका. डॉक्टर ने ऑपरेशन नहीं किया, 27 की सुबह उसने आखिरी सांस ली.”
अब जब मर गया तब भी हमें वो नहीं मिल रहा. इतने लोगों की मौत हो गई है कि पोस्ट मॉर्टम में उसका नंबर नहीं आ रहा है. दो दिन से उसके इंतजार में बैठे हैं. एक बार वो मिल जाए तो गांव में जनाजा होगा, उसके दादा के कदमों में दफना देंगे.”साबिर, सलमान के पिता
कागजी कार्रवाई, सरकारी रुकावट और पुलिस का सुस्त रवैया
जीटीबी अस्पताल के मुर्दाघर के बाहर लोगों को कानूनी मदद देने के लिए काम कर रहे वकील फरहान अजीमी कहते हैं कि लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
“पूरा सिस्टम बहुत धीमा है.यहां हेल्प डेस्क नहीं है जो लोगों की मदद कर सके, सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं है. एक दिन में 8-10 पोस्टमॉर्टम होंगे तो कैसे काम चलेगा? 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. मरने के बाद भी इंतजार. कभी शव की पहचान की दिक्कत हो रही है तो कभी कहा जाता है अपना इंवेस्टिगेटिव ऑफिसर ढूंढकर लाओ. मरे हुए को कोई अस्पताल पहुंचाकर गया है तो उसे पहुंचाने वाले को कहां से ढूंढकर लाएं? पोस्टमॉर्टम तो वॉर लेवल पर होना चाहिए, जितना जल्दी हो लोगों को बॉडी मिले. पहले तो सरकार दंगे नहीं रोक सकी अब मौत के बाद के दर्द को भी बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ा जा रहा है.”
'बेटे के सामने पिता को मार दिया'
मुर्दाघर के सामने सड़क के उस पार दो-तीन लोग एक घायल लड़के को घेर कर खड़े थे. ये लड़का सुलेमान भी हिंसा में घायल हुआ था. पूछने पर मालूम हुआ कि सुलेमान अपने भाई अजहरुद्दीन के साथ आए हैं. अजहरुद्दीन पिछले 4 दिनों से अपने पिता यूसुफ, 45 की डेड बॉडी के लिए इंतजार कर रहे हैं. दरअसल, यूसुफ का नाम अस्पताल में किसी ने शान मोहम्मद लिखवा दिया था, हालांकि परिवार ने शिनाख्त कर ली लेकिन फिर भी कागजी कार्रवाई की वजह से उन्हें शव नहीं मिला.
यूसुफ के रिश्तेदार बताते हैं कि यूसुफ और सुलेमान एक साथ काम से लौट रहे थे, बढ़ई का काम करने वाले यूसुफ मुस्तफाबाद के गली नंबर 14 में रहते थे, वे काम करके नोएडा से अपने बेटे के साथ मोटरसाइकिल से लौट रहे थे,जब 24 फरवरी को गोकलपुरी रोड पर भीड़ ने उन्हें रोका.
“लोग चिल्लाए ‘इस मुल्ला को बंद करो’, और उनकी ओर भागे. भीड़ ने उन्हें दाढ़ी की वजह से पहचान लिया था कि वो मुसलमान हैं. लोगों ने लोहे के रॉड से, लाठियों से हमला किया. साथ ही मोटरसाइकिल को भी आग में झोंक दिया.”यूसुफ के रिश्तेदार
लेकिन इन सबके बीच यूसुफ की मौत हो गई और उनके 19 साल के बेटे लेमान को गंभीर चोटें आईं हैं. इस हादसे के बाद सलमान की जब आंख खुली तो वो अस्पताल में था और पिता का कहीं पता नहीं था.
यूसुफ के बेटे अजहरुद्दीन मीडिया से बात नहीं करना चाहते हैं लेकिन वो दबी आवाज में कहतें हैं, “भाई और अब्बू को कई दिनों से ढूंढता रहा हूं, 3 दिन पहले मिले हैं वो भी जिंदा नहीं, अब अब्बू को बॉडी मिल जाए वो ही बड़ी बात होगी. हम बात नहीं कर सकते हैं, आप जाइए."
"टिक-टॉक पर वीडियो बनाने का शौकीन, अब बस यादें रह गई"
“मोनिस टिकटॉक पर खूब सारे वीडियो बनाता था. बहुत स्टाइलिश था. लंबे बाल थे. उसने मुझे फोन कर बताया कि वह यमुना विहार के पास फंसा हुआ है, क्योंकि सांप्रदायिक हिंसा हो रही थी, लेकिन उसने कहा मैं सही-सलामत घर आ जाऊंगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और फिर उसका फोन बंद हो गया.’’इब्राहिम, मोनिस के रिश्तेदार
22 साल का मोनिस मुस्तफाबाद के गुरुनानक सोर वाली गली में काम करता था. 25 फरवरी को दंगे के दौरान गायब हुआ और 28 को उसका शव मिला.
मोनिस के रिश्तेदार इब्राहिम बताते हैं-
25 से उसे अस्पताल, मोहल्ला, कारखाना हर जगह ढूंढ लिया, लेकिन कहीं नहीं मिला. अब मिल भी गया है तो मुर्दाघर से उसकी बॉडी नहीं मिल रही है. कभी पुलिस के इंवेस्टिगेटिव ऑफिसर नहीं आ रहे हैं, तो कभी कुछ. पुलिस के बिना पोस्ट मॉर्टम नहीं हो सकता है.”
मोनिस के पिता अली शेर ने कहा, “पांच दिनों से इंतजार कर रहे थे. मोनिस का शव मंगलवार से मोर्चरी में है. मैंने पहले ही अपने बेटे को खो दिया है, और अब वे हमें इंतजार करवाकर हमारा और इम्तेहान ले रहे हैं.”
मोनिस मुस्तफाबाद में अपने चाचा के साथ रहा करता था और 25 फरवरी को वह अपने परिवार से मिलने समयपुर बादली जा रहा था. फिलहाल 5 दिनों के बाद मोनिस के परिवार को उसका शव मिल चुका है और हरदोई के उसके पैत्रिक गांव में रविवार को भारी पुलिस बल की मौजूदगी में जनाजा हुआ.
बता दें कि दिल्ली हिंसा में अबतक 47 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. अभी भी जीटीबी अस्पताल के बाहर कई लोगों को अपने पिता, बेटे, भाई के शव का इंतजार है. एक तरफ मौत का गम और दूसरी तरफ अपनों को इस दुनिया से रुख्सत करने के बीच का इंतजार किसी जख्म पर बार-बार चोट लगने के दर्द जैसा है.
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