उमर खालिद (Umar Khalid) की जमानत अर्जी पर सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में सुनवाई हुई. उत्तर पूर्वी दिल्ली हिंसा मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी. उमर खालिद सितंबर 2020 से जेल में बंद हैं.
बता दें, त्रिदिप पॉयस ने खालिद की ओर से दलीलें शुरू कीं. पॉयस ने कहा कि उसके खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं, वे आतंक फैलाने वाले कतई नहीं हैं. खालिद के खिलाफ पुलिस ने UAPA, देशद्रोह और दंगा फसाद के लिए लोगों को भड़काने के आरोप हैं. आरोपों का घटनाक्रम के साथ कोई तालमेल नहीं है. खालिद दंगा फसाद की किसी भी घटना में मौजूद नहीं था.
वहीं, उमर खालिद ने कहा कि मुझ पर चस्पा किए गए सारे आरोप बाद में गढ़े गए हैं. मेरा फोन और चैट सभी अपने कब्जे में करके पुलिस ने कहानी बुनी है. मेरे कहे को पुलिस ने इस कदर बढ़ा चढ़ाकर बताया कि मैं इतने लंबे समय से सलाखों के पीछे हूं.
उमर खालिद ने कहा कि जिन लोगों ने प्रदर्शन और भड़काने की योजना बनाई और अमल किया वो न तो आरोपी बनाए गए और न ही उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ. वे तो खुलेआम घूम रहे हैं. खालिद ने सरजिल इमाम से भी किसी तरह का रिश्ता या सांठगांठ होने से इनकार किया.
दरअसल, पिछले दिनों दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान माना कि अमरावती में खालिद की ओर से दिया गया भाषण अनुचित था. न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने कहा था कि सरकार की आलोचना करने की अनुमति है, लेकिन इसके लिए लक्ष्मण रेखा पार नहीं किया जाना चाहिए. पीठ ने सवाल किया था कि खालिद की ओर से अमरावती में दिए गए भाषण में इंकलाब और क्रांतिकारी शब्दों का क्या मतलब था?
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