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दिल्ली हिंसा के 4 महीने: पीड़ितों को केजरीवाल सरकार से मुआवजा नहीं

दिल्ली हिंसा के चार महीने बाद, मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं पीड़ित

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24 फरवरी, रात 3.30 बजे, सीलमपुर (उत्तर पूर्वी दिल्ली)

मुझे पड़ोस के घर से चीखने की आवाज सुनाई दी। यह सीलमपुर में शुरुआती तनाव की बेचैन चुप्पी को तोड़ रही थी. कुछ लोग छत पर चढ़े हुए थे और घर के अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे. मैं अपने पड़ोसी के घर की तरफ उसे और उसकी बच्ची को बचने के लिए भागा. मैंने देखा कि छत के दरवाजे पर दो नकाबपोश आदमी खड़े थे. मैं बिना सोचे समझे उनसे भिड़ गया. तभी बंदूक की गोली का धमाका हुआ.”

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सैफुद्दीन* को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सांप्रदायिक दंगों की पहली रात को पैर में गोली लगी थी. इन दंगों में 53 लोगों की जानें गई थीं. सैफुद्दीन अपने सात लोगों के परिवार का अकेला कमाऊ सदस्य है और लकवाग्रस्त होकर बिस्तर पर पड़ा है. उसकी कोई कमाई नहीं है और न ही उसे सरकार की तरफ से कोई मुआवजा मिला है.

“दिल्ली हिंसा को करीब चार महीने गुजर गए हैं. पर मुझे सरकार से एक पाई तक नहीं मिली. कुछ एनजीओज ने मदद की इसीलिए लॉकडाउन में हमारा गुजारा हो पाया. लेकिन मैं कितने दिनों तक उनके सहारे रह सकता हूं?”
सैफुद्दीन ने क्विंट को बताया

लॉकडाउन बढ़ाया गया और सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिला, इसने 40 साल के सैफुद्दीन की जिंदगी को और मुश्किल बनाया है. अभी उसकी जांघों की दो सर्जरी बाकी हैं. दुखद यह है कि इस विपदा का सामना करना वाला सैफुद्दीन अकेला नहीं हैं.

पीड़ितों की तरफ से दिल्ली हाई कोर्ट में कई वकीलों ने याचिकाएं दायर की हैं, ताकि उन्हें जल्द से जल्द मुआवजा दिलाया जा सके. उनमें से कइयों ने क्विंट को बताया कि ऐसे करीब 100 पीड़ित हैं जिन्हें दंगों के दौरान हुए नुकसान के लिए कोई मुआवजा नहीं मिला.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हिंसा के दो दिन बाद मुआवजे योजना की घोषणा की थी. उसमें कहा गया था कि मकान की भारी या पूरी क्षति होने और घर के सामान के नुकसान की स्थिति में प्रति परिवार को 25,000 रुपए की तत्काल राहत दी जाएगी.

इस फौरी मदद के बाद नुकसान का आंका जाएगा और इसके हिसाब से मुआवजा दिया जाएगा.

हालांकि क्विंट से करावल नगर के एसडीएम एन. के. पाटिल ने कहा:

“राहत की शुरुआती राशि सिर्फ उन लोगों को दी जानी थी जिनके घर जलाए गए थे. शुरुआत से हम यही करते आ रहे हैं.”

वैसे दंगों के बाद कई पीड़ित डरकर दिल्ली छोड़कर चले गए थे और लॉकडाउन के समय लौटे थे. कई तो अब भी वापस नहीं लौटे हैं. मार्च के दूसरे पखवाड़े में दिल्ली वापस लौटने वाले दो पीड़ित एसडीएम कार्यालय में मुआवजे का फॉर्म नहीं जमा कर पाए. एसडीएम कार्यालय ही ऐसे दावों का आकलन और उसे प्रोसेस कर रहा है.

24 साल की नेहा शिव विहार में रहती है. जिस दिन हिंसा शुरू हुई, इसके ठीक एक दिन पहले वह उत्तर प्रदेश में अपने किसी रिश्तेदार की शादी में गई थी. जब उसे दिल्ली के दंगों के बारे में पता चला तो वह और उसका परिवार वहीं रुके रहे. इसके बाद 24 मार्च को वापस लौटे. यहां आकर उन्होंने देखा कि उनके घर में तोड़फोड़ और लूटपाट हुई है.

“मेरे करीब 2 लाख रुपए चले गए. एफआईआर कराने के लिए मुझे लॉकडाउन के बीच पुलिस स्टेशन के करीब चार चक्कर लगाने पड़े. इसके बाद भी एसडीएम ऑफिस ने मेरा फॉर्म नहीं लिया और यह कहा कि मेरी शिकायत दूसरी एफआईआर के साथ जोड़ दी गई है.”

शिव विहार में ही रहने मोहसिन का कहना है कि उसके वालिद की बेकरी पूरी तरह से जला दी गई. “हम लोग डर के मारे शहर छोड़कर चले गए और दस दिन बाद लौटे. हम इतने घबराए हुए हैं कि रात को ईदगाह कैंप में जाकर सोते हैं.”

सरकारी दफ्तरों के फेरे बनाम राहत के लिए लंबा इंतजार

लॉकडाउन ने दावे दायर करने की प्रक्रिया को लंबा बनाया. लेकिन लॉकडाउन में राहत और सरकारी दफ्तरों के काम करने का बावजूद एडीएम कार्यालय बंद पड़ा है.

दिल्ली सरकार ने राहत की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए जो ऑनलाइन पोर्टल बनाया था, उसने शुरुआत में ही काम करना बंद कर दिया था और लॉकडाउन के दौरान भी वह चल नहीं रहा था. लोग शिकायत करने और एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशनों में धक्के खा रहे थे, लेकिन पुलिस की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई.

जब कमाई का कोई जरिया नहीं बचा और प्रतिष्ठा भी दांव पर लग गई तब नेहा और मोहसिन के परिवार ने दिल्ली हाई कोर्ट में गुहार लगाई.

22 जून को दिल्ली हाई कोर्ट ने एसडीएम कार्यालय को आदेश दिए कि मुआवजे की कार्रवाई दोबारा शुरू की जाए और ऑनलाइन पोर्टल को रीबूट किया जाए जहां शिकायतों को स्वीकार किया जाता है और पीड़ित अपने फॉर्म का स्टेटस जान सकते हैं. अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं के फॉर्म्स को एफआईआर की कॉपी के बिना भी मंजूर किया जाए.

एडवोकेट राजशेखर राव ने इस मामले की पैरवी की और एडवोकेट आंचल टिकमानी ने याचिका दायर की.

इस मामले के लिस्ट होने से दो दिन पहले, जब याचिका की कॉपी पुलिस आयुक्त और एसडीएम के पास भेजी गई तो करावल नगर पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर ने नेहा को कई बार कॉल किया और उससे कहा कि उसकी एफआईआर तुरंत दर्ज की जाएगी. उनसे नेहा से कहा, ‘आपकी पहुंच इतनी ऊपर तक कैसे है?’

हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद 24 जून को जब याचिकाकर्ता एसडीएम कार्यालय गए तो उन्हें गेट के बाहर एक हस्तलिखित नोटिस मिला. उस पर लिखा था- “यहां डीसी ऑफिस कॉम्प्लैक्स में कोई भी किसी प्रकार की पब्लिक डीलिंग कोरोना वायरस के कारण नहीं हो पा रही है. यहां इस परिसर में अगले आदेश तक कोई भी डीलिंग का काम नहीं होगा.”

याचिकाकर्ताओं ने एसडीएम को कई बार फोन किया और उनसे अनुरोध किया. इसके बाद वह 29 जून को उनसे मिलने को तैयार हुए. लेकिन फिर भी उनके फॉर्म्स नहीं लिए गए. एसडीएम ने कहा कि इसकी वजह यह है कि एफआईआर में विसंगतियां हैं. इसके बावजूद कि अदालत ने अपने आदेश में साफ कहा था कि अनुग्रह राशि को तुरंत प्रोसेस करने के लिए किसी एफआईआर की जरूरत नहीं है.

याचिकाकर्ताओं को एक बार फिर हाई कोर्ट जाना पड़ेगा. जब इस मामले को लिस्ट किया गया, उसके पहले आधी रात, यानी 3 जुलाई को ऑनलाइन पोर्टल ने काम करना शुरू कर दिया. अब पोर्टल पर नए फॉर्म फाइल किए जा सकते हैं लेकिन एफआईआर की कॉपी को अपलोड करने या लंबित मुआवजे के फॉर्म का स्टेटस ट्रैक करने का कोई तरीका नहीं है.

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इस योजना के अंतर्गत मुआवजे का आकलन करने के लिए एफआई की कॉपी होना जरूरी है. पीड़ितों को पूरा यकीन है कि एफआईआर न होने के कारण उनका फॉर्म रद्द कर दिया जाएगा.

वह कहती हें, “वैसे एसडीएम करावल नगर ने जो सूची प्रकाशित की थी, वह काफी दिलचस्प है. उस सूची में आवासीय इकाइयों के पूरी तरह से क्षतिग्रस्त होने का कोई मामला नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि करावल नगर के ज्यादातर मकान पूरी तरह से आग के हवाले कर दिए गए थे। दंगों के एक हफ्ते बाद भी गलियों से धुआं निकल रहा था।”पर 50,000 रुपए की राशि आंकी गई.”

वह कहती हें, “वैसे एसडीएम करावल नगर ने जो सूची प्रकाशित की थी, वह काफी दिलचस्प है। उस सूची में आवासीय इकाइयों के पूरी तरह से क्षतिग्रस्त होने का कोई मामला नहीं है. जबकि सच्चाई यह है कि करावल नगर के ज्यादातर मकान पूरी तरह से आग के हवाले कर दिए गए थे. दंगों के एक हफ्ते बाद भी गलियों से धुआं निकल रहा था.”

“एसडीएम का कहना है कि वह अपने ऑफिस में इतने सारे लोगों को देखकर डर गए. उन्हें संक्रमण होने का खतरा था. लेकिन अब जब ऑनलाइन पोर्टल्स काम कर रहे हैं तो वह बहुत आसानी से किसी एक ऑफिसर को भेजकर नुकसान का आकलन कर सकते हैं और पीड़ितों को डिजिटली पैसा दे सकते हैं. मेरे ख्याल से मसला, इरादे का है.”
मिशिका सिंह, एडवोकेट

एसडीएम पाटिल ने क्विंट से कहा, “फॉर्म फाइल करने और मूल्यांकन की प्रक्रिया पूरे तरीके से शुरू हो गई है. हम लॉकडाउन के दौरान ऑफिस कैसे खोल सकते थे?” लेकिन जब उनसे पूछा गया कि लॉकडाउन खत्म होने के बावजूद उनका दफ्तर क्यों नहीं खुला तो उन्होंने कहा, “अब यह कार्रवाई शुरू हो गई है. मुझे सिर्फ इतना ही कहना है.”

क्विंट ने दिल्ली सरकार से कई बार संपर्क करने की कोशिश की ताकि यह पता लगाया जा सके कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगा पीड़ितों को तत्काल सहायता देने में देरी क्यों हुई. लेकिन हमें अब तक कोई जवाब नहीं मिला है. जब वे जवाब देंगे तब खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.

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