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"मुझे 12 घंटे बाद पता चला", दिल्ली अग्निकांड में 12 दिन की बेटी खोने वाले पिता का अंतहीन दर्द

Delhi hospital fire: दिल्ली के विवेक विहार में बच्चों के हॉस्पिटल में लगी आग से सात नवजात शिशुओं की मौत हो गई.

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"हमने उसका नाम भी नहीं रखा था... कल उसे दफनाने से पहले मैंने उसे 'फातिमा' नाम दिया था."

गम में डुबे अंजार चौधरी ने यह बात कही. उन्होंने शनिवार, 25 मई को पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार में बच्चों के हॉस्पिटल में लगी आग में अपनी 12 दिन की बेटी को खो दिया था.

पूर्वी दिल्ली के कांति नगर के रहने वाले अंजार चौधरी उसी जले हुए हॉस्पिटल के बाहर, पुलिस घेरे के ठीक सामने खड़े थे, जब वो हमें मिले. वह सीधे कब्रिस्तान से आ रहे थे जहां वह अपने मृत बच्ची को दफनाने गए थे.

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फातिमा चौधरी अंजार की तीसरी संतान थी.

शहर की चिलचिलाती गर्मी से बेपरवाह, सफेद कुर्ता पहने 40 वर्षीय अंजार उस जले हॉस्पिटल के बाहर खड़े होकर बार-बार न्याय की मांग कर रहे थे. विवेक विहार में बेबी केयर न्यू बोर्न हॉस्पिटल के नाम से चलने वाली दो मंजिला प्राइवेट फैसिलिटी में आग लगने से कम से कम सात नवजात शिशुओं की मौत हो गई.

जांच के दौरान, पुलिस को गंभीर अनियमितताएं मिलीं. हॉस्पिटल का लाइसेंस इस साल मार्च में ही समाप्त हो गया था, ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर अयोग्य था, अस्पताल में कोई आग बुझाने वाला यंत्र नहीं लगाया गया था, इत्यादि.

अब तक हॉस्पिटल के मालिक डॉ. नवीन खिची और ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर डॉ. आकाश को गिरफ्तार किया जा चुका है. भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 336 (मानव जीवन को खतरे में डालने के लिए लापरवाही से काम करना), 304 ए (लापरवाही से मौत का कारण बनना), 34 (सामान्य इरादा) और 308 (गैर इरादतन हत्या करने का प्रयास) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है.

'आग के बारे में 12 घंटे बाद पता चला'

हॉस्पिटल से लगभग 200 मीटर की दूरी पर रहने वाले एक प्रत्यक्षदर्शी रवि वर्मा ने द क्विंट को बताया, "अगर वे मासूम बच्चों को अपने साथ ले गए होते, तो इस हादसे से बचा जा सकता था."

क्विंट ने जिन अन्य स्थानीय निवासियों से बात की, उन्होंने आरोप लगाया कि इमारत में आग लगने के बाद हॉस्पिटल के कर्मचारी भाग गए. यह हॉस्पिटल घरों के बीच कसकर घिरा हुआ है.

"चुनाव के लिए वोटिंग अभी समाप्त हुई थी. जब मैंने पहली बार शोर सुना तो मुझे लगा कि कोई जश्न मना रहा है. लेकिन जब आवाज तेज हो गई तो मैं बाहर गया और मैंने देखा कि इमारत आग की लपटों में घिरी हुई थी."
रवि वर्मा, प्रत्यक्षदर्शी

पुलिस ने अपने बयान में कहा कि उन्हें 25 मई को रात 11.29 बजे आग लगने की सूचना मिली और वह तुरंत फायर ब्रिगेड के साथ घटनास्थल पर पहुंच गई.

पुलिस ने कहा कि आग लगने का संभावित कारण शॉर्ट सर्किट है. हालांकि, स्थानीय लोगों का आरोप है कि क्लिनिक 'बिना पर्याप्त सुरक्षा के बड़े सिलेंडरों से छोटे सिलेंडरों में अवैध रूप से ऑक्सीजन भर रहा था और उन्हें आसपास के अन्य केंद्रों में स्पलाई कर रहा था', जो आग लगने की वजह हो सकता था. पुलिस ने बताया कि मामले की जांच जारी है.

''इमारत के सामने सड़क की दूसरी ओर ऑक्सीजन के बड़े-बड़े सिलेंडर पड़े थे. एक सिलेंडर उड़कर सड़क पर गिर गया. जिससे एक कार से बाल-बाल बचा, जिसमें चार लोग सवार थे."
रवि वर्मा, प्रत्यक्षदर्शी
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    फोटो- PTI

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    फोटो- PTI

घटना के एक दिन बाद, दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने प्रेस से कहा, "ऑक्सीजन सिलेंडर की रिफिलिंग के आरोपों की जांच की जा रही है कि क्या उनके पास लाइसेंस था या नहीं और क्या इसमें नर्सिंग होम के मालिक शामिल थे."

इस बीच, नवजात शिशुओं के माता-पिता ने दावा किया कि अस्पताल ने उन्हें घटना के बारे में सूचित नहीं किया. अंजार ने द क्विंट को बताया कि उन्हें आग के बारे में "12 घंटे बाद" पता चला और तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

आग में अपनी 17 दिन की बेटी को खोने वाले पिता राजकुमार ने कहा, "किसी ने मुझे नहीं बताया. मैं लगातार अस्पताल को फोन कर रहा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. जब मैं अगली सुबह अपना बकाया चुकाने के लिए यहां पहुंचा, तो मुझे एहसास हुआ कि एक दुर्घटना हुई है."

अंजार और राजकुमार दोनों को नर्सिंग होम द्वारा इस अस्पताल में भेजा गया था. नर्सिंग होम में उनके बच्चों का जन्म इस महीने की शुरुआत में हुआ था. अंजार की बेटी फातिमा ने गंदा पानी निगल लिया था, वहीं राजकुमार की बेटी को बुखार और सांस लेने में तकलीफ थी.

'कोई आपातकालीन निकास नहीं, स्थानीय लोगों ने बच्चों को बचाने के लिए खिड़कियां तोड़ दीं'

जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि अस्पताल में न तो कोई आग बुझाने के यंत्र लगाए गए थे और न ही आपातकालीन निकास द्वार था.

स्थानीय लोगों में बीजेपी के पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह शंटी भी शामिल हैं जिन्होंने शिशुओं को बचाने में मदद की. उन्होंने दावा किया कि अस्पताल ने कई नियमों का उल्लंघन किया है.

शंटी ने द क्विंट को बताया, "विवेक विहार में मकान कम से कम 300 मीटर में फैले हुए हैं और दो निकास हैं. यह सुविधा 140 मीटर के क्षेत्र में बनाई गई थी और इसमें एक संकीर्ण निकास था, लगभग 5 फीट चौड़ा. इसके अलावा, एक घुमावदार सीढ़ी पहली मंजिल तक जाती है. कोई कैसे अंदर घुस सकता था?"

पड़ोस के स्थानीय लोगों ने दावा किया कि वे इमारत के पीछे की ओर गए, सीढ़ी लाए और पहली मंजिल पर कांच की खिड़की तोड़ दी, इसी खिड़की से वे नर्सरी की ओर गए.

शंटी कहते है, "आग की धधक बहुत अधिक थी. हमने गीले तौलिये को अपने चेहरे पर बांध लिया और बच्चों को बचाने के लिए अंदर चले गए."

रवि वर्मा उस भयावह मंजर का जिक्र करते हुए कहते हैं, "जब हमने बच्चों को निकाला तब वो तड़प रहे थे."

पुलिस ने कहा कि 12 नवजातों को फायर ब्रिगेड स्टाफ की मदद से नर्सिंग स्टेशन से बचाया गया और उन्हें दूसरे अस्पताल में ट्रांसफर कर दिया गया. सात नवजात शिशुओं को अस्पताल पहुंचने पर मृत घोषित कर दिया गया और उन्हें पोस्टमॉर्टम के लिए गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल भेजा गया.
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"अगर अस्पताल के कर्मचारी बच्चों के साथ बाहर आते तो सबको बचा लिया जाता"

जीटीबी अस्पताल के मुर्दाघर में राजकुमार अपने नवजात बच्चे के शव को लेने के लिए नौ घंटे से अधिक समय से तपती धूप में खड़े थे.

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के साहिबाबाद का रहने वाला राजकुमार माली का काम करते हैं. उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी की सर्जरी हुई थी और वह बेडरेस्ट पर थीं.

राजकुमार कहते हैं, "घटना को लगभग दो दिन हो चुके हैं, मैंने अपनी बच्ची को नहीं देखा है या उसका शव नहीं लिया है."

इस बीच, पेशे से कढ़ाई करने वाले अंजार ने हॉस्पिटल के मालिकों और कर्मचारियों के लिए सख्त सजा की मांग की.

अंजार ने अफसोस जताते हुए कहा, "क्लिनिक में तीन नर्स और कम से कम दो पुरुष सहायक थे. अगर इन पांच लोगों ने हॉस्पिटल से भागते समय दो-तीन नवजात बच्चों को उठाया होता, तो सभी बच्चे बचा लिए गए होते." 

पुलिस ने बताया कि 45 वर्षीय डॉ. नवीन खिची (पीडियाट्रिक मेडिसिन में एमडी) और उनकी पत्नी डॉ. जागृति (डेंटिस्ट हैं) बेबी केयर न्यू बोर्न चाइल्ड हॉस्पिटल चलाते हैं. इस अस्पताल की तीन अन्य शाखाएं हैं – एक पश्चिम दिल्ली, दूसरा गुरुग्राम और तीसरा फरीदाबाद में.

जांच के दौरान पुलिस ने पाया कि ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर डॉ. आकाश (26) के पास बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) की डिग्री है और वह नवजात शिशुओं का इलाज करने के योग्य नहीं हैं.

पुलिस को यह भी पता चला कि दिल्ली सरकार के तहत आने वाले स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) द्वारा नवजात शिशु अस्पताल के लिए जारी लाइसेंस की अवधि इस साल 31 मार्च को समाप्त हो गई थी. पुलिस ने कहा कि एक्सपायर हो चुके लाइसेंस के अनुसार, हॉस्पिटल में केवल पांच बेड की अनुमति थी, लेकिन घटना के समय, 12 नवजात भर्ती थे.

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "2021 से 2024 तक पांच बिस्तरों वाले नर्सिंग होम चलाने के लिए हॉस्पिटल पंजीकृत की गई थी. उन्होंने फरवरी में रिन्यूअल के लिए आवेदन किया था, लेकिन दस्तावेजों के अभाव में उनका आवेदन खारिज कर दिया गया था. उन्हें एक 'डेफिशिएंसी मेमो' भी जारी किया गया था."

"मालिक के खिलाफ बिना रजिस्ट्रेशन के अस्पताल चलाने और औचक निरीक्षण के दौरान अनियमितताओं का पता चलने के लिए दो मामले दर्ज हैं. ये मामले कड़कड़डूमा अदालत और तीस हजारी अदालत में लंबित हैं.
सौरभ भारद्वाज, स्वास्थ्य मंत्री, दिल्ली
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उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव और सचिव को लिखे गए एक पत्र की कॉपी भी सोशल मीडिया एक्स पर शेयर की, जिसमें उन्हें घटना की त्वरित जांच करने और घायलों और मृतकों के परिवारों को मुआवजे में तेजी लाने का निर्देश दिया गया था.

बीजेपी के पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह शंटी कहते हैं, "सबसे पहले तो ये कि अस्पताल को लाइसेंस कैसे मिला? अस्पताल के पास कोई एम्बुलेंस नहीं थी, कोई फायर सिस्टम नहीं था और यह पिछले दो महीनों से बिना लाइसेंस के कैसे चल सकता है?"

जितेंद्र सिंह ने हॉस्पिटल की अन्य सभी शाखाओं को तत्काल बंद करने और मृत नवजात बच्चों के माता-पिता के लिए कम से कम 5 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग की है.

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