मयूर विहार के पास यमुना की रेंज में रहने वाले ओम प्रकाश और उनके परिवार को ऊंचे स्थानों पर ले जाना पड़ा, क्योंकि जुलाई 2023 में, यमुना नदी (Yamuna) ऊफान पर थी जिससे दिल्ली में चार दशकों में सबसे भीषण बाढ़ (Delhi Floods) आई.
एक सब्जी बेचने वाले, प्रकाश को लगभग तीन महीने तक अपना कामकाज छोड़ना पड़ा क्योंकि वह अपनी पत्नी गायत्री देवी और 16 साल के बेटे कुमार के साथ दिल्ली के हाईवे पर एक अस्थायी तम्बू में चले गए.
कुछ महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट को छोड़कर, उनका ज्यादातर सामान बाढ़ में बह गया, जिससे उनका कुल मिलाकर 30,000 रुपए का नुकसान हुआ.
ओम प्रकाश ने अफसोस जताते हुए क्विंट हिंदी से कहा
"जब बाढ़ आई, तो हमने अपने कपड़े, बर्तन, मेरे बेटे की किताबें और हमारे गद्दे सब बह गया....उसके बाद हमारे पास पहनने के लिए कोई कपड़े नहीं थे. एक साल हो गया है और मैं नुकसान की भरपाई नहीं कर पाया हूं."
ओम प्रकाश ने कहा, "हम या तो बाढ़ से पीड़ित हैं या नदी के दूषित होते पानी से. लेकिन हमारी सबसे कम परवाह की जाती है."
यमुना नदी प्रदूषित होती जा रही है - लेकिन इस पर ध्यान केवल तभी जाता है जब आम आदमी पार्टी (AAP) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच राजनीतिक जुबानी जंग छिड़ जाती है या जब छठ पूजा के दौरान जहरीली गैस फैलती है, जिससे फोम की सतह से नदी ढक जाती है.
जैसा कि दिल्ली में 25 मई को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान है, क्विंट ने नदी के किनारे स्थित पांच क्षेत्रों का दौरा किया ताकि ये पता लगाया जा सके कि मतदाता क्या उम्मीद कर रहे हैं.
पूर्वी दिल्ली में मुकाबला AAP के कुलदीप कुमार और बीजेपी के हर्ष मल्होत्रा के बीच है, वहीं दो बार के बीजेपी सांसद मनोज तिवारी उत्तर पूर्वी दिल्ली से अपनी सीट बरकरार रखना चाह रहे हैं.
'नदी खत्म होते जा रही है... लेकिन किसी को परवाह नहीं'
"सब पार्टी एक जैसी है. वो बड़े, बड़े वादे करते हैं, और उसको तोड़ते हैं. तो वोट करने का क्या फायदा? हमारी जिंदगी बदल नहीं रही है."
क्विंट हिंदी ने जिन निवासियों से बात की, उन्होंने एक स्वर में यही बातें कही. सीवेज, घरेलू और औद्योगिक कचरे के कारण इसका पानी जहरीला और पीना के लिए सही नहीं है, देश में दिल्ली में यमुना नदी का 22 किलोमीटर का हिस्सा सबसे ज्यादा प्रदूषित है.
अध्ययनों से पता चलता है कि हालांकि ये विस्तार नदी की पूरी लंबाई का केवल दो प्रतिशत है, लेकिन यह कुल प्रदूषण भार का 75 प्रतिशत से अधिक है.
यह न केवल दिल्ली के लिए पानी का मुख्य स्रोत है, बल्कि खेती करने वाले और मछली पकड़ने वाले समुदाय पीढ़ियों से नदी के किनारे रहते आए हैं. कभी बाढ़ क्षेत्र के किसान 67 वर्षीय खिमन सिंह ने यमुना के पास बिताए अपने बचपन के दिनों को याद किया.
पूर्वोत्तर दिल्ली के ओल्ड गढ़ी मांडू गांव के निवासी खिमन सिंह ने क्विंट हिंदी से कहा, "जब हम छोटे थे तो नदी में तैरते थे. पानी इतना साफ होता था कि हम न सिर्फ नहाते थे, बल्कि बिना फिल्टर किए उसे पीते भी थे."
सिंह ने कहा कि, साफ नीला पानी, जिसमें, कोई भी अंदर सिक्क गिरा दे तो वो भी दिख जाएगा लेकिन ये नदी अब जहरीले झाग से ढक गई है.
हालांकि नदी उनकी दुकान से 400 मीटर की दूरी पर स्थित है, लेकिन वहां नदी की बदबू आती है. उन्होंने चिल्लाकर कहा कि, "देखो, हमें हर दिन इसी के साथ रहना है."
सिंह ने बताया कि दूषित पानी के पास रहने से उनके इलाके में मच्छरों की संख्या बढ़ जाती है,
क्विंट हिंदी की मुलाकात इसके बाद उत्तरी दिल्ली में सिग्नेचर ब्रिज के नीचे वजीराबाद बैराज के पास एक मछुआरे रामभरन कश्यप से हुई.
मेरा पूरा परिवार मछुआरा समुदाय से है. उस समय, हम 6-7 प्रकार की मछलियां पकड़ पाते थे. औसतन, हम लगभग 20 किलोग्राम मछलियां पकड़ते थे और उन्हें बेचते थे. अब, हमें मुश्किल से 4 किलोग्राम मछलियां मिलती हैं, इसलिए स्वाभाविक रूप से हमारी कमाई बहुत कम हो गई है.रामभरन कश्यप, मछुआरा
क्विंट हिंदी से बातचीत में रामभरन ने आगे कहा कि, "मेरे हाथों को देखो, यह खराब पानी की के कारण हुआ है. हम अक्सर बीमार पड़ जाते हैं. कभी-कभी जब हम लंबे समय तक पानी के अंदर रहते हैं तो हमारी त्वचा जल जाती है. हम दिन में 4-5 घंटे नदी के अंदर रहते हैं. नदी मर रही है - और यह हमें भी मार रही है."
'क्या यही सबका साथ, सबका विकास है?'
दिल्ली में आई बाढ़ के कारण 2023 में राष्ट्रीय राजधानी में लगभग 27,000 लोगों को खतरों से भरे इलाकों से निकाला गया और विस्थापन हुआ. ये जिनेवा स्थित आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र का आंकड़ा है.
बाढ़ ने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और दिल्ली पर शासन करने वाली AAP के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू कर दिया. एक तरफ, दिल्ली सरकार ने हथिनी कुंड बैराज से "केवल दिल्ली की ओर" पानी छोड़ने के लिए पड़ोसी राज्य हरियाणा (बीजेपी शासित) को दोषी ठहराया - दूसरी ओर, बीचेपी ने पलटवार करते हुए दिल्ली सरकार पर यमुना से प्रभावी ढंग से गाद न निकालने का आरोप लगाया.
क्विंट हिंदी से स्थानीय निवासियों ने कहा कि वे इस राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच फंस गए हैं.
ओम प्रकाश ने कहा, "दोनों पार्टियां नदी की स्थिति के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराती हैं और इस वजह से हम फंस गए हैं. राजनीति के कारण हमें बहुत नुकसान हुआ है."
यमुना खादर क्षेत्र में पली-बढ़ी 45 साल की "माला" के लिए सवाल उनके क्षेत्र में सालों से पानी और बिजली कनेक्शन की कमी का है. उन्होंने कहा कि, "यहां पानी का कोई कनेक्शन नहीं है, हम टैंकरों और पंपों पर निर्भर हैं... हम बिजली कनेक्शन पाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं. यह समस्या वर्षों से है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ है."
"वे कहते हैं कि हम बाढ़ क्षेत्र या 'जोन ओ' क्षेत्र (जहां निर्माण पर प्रतिबंध है) में रहते हैं. वे कहते हैं कि एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) और दिल्ली सरकार के नियमों के कारण हमें नए कनेक्शन नहीं मिल सकते हैं. दिन-ब-दिन हमारी स्थिति बदतर हो रही है."ओल्ड गढ़ी मांडू गांव में रहने वाले खिमन सिंह
खिमन सिंह दिल्ली के लिए सरकार के मास्टर प्लान 2041 का जिक्र कर रहे थे, जिसमें कहा गया है कि 'जोन ओ' में यमुना के 22 किलोमीटर लंबे हिस्से के साथ पूरा बाढ़ क्षेत्र शामिल है. इस क्षेत्र के अंतर्गत कुल 76 अनधिकृत कॉलोनियां आती हैं - और इस क्षेत्र में किसी भी नए निर्माण की अनुमति नहीं है.
लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या यह उनके लिए एक चुनावी मुद्दा होगा, तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया: "बिल्कुल नहीं. हमारी रहने की स्थिति खराब हो सकती है, लेकिन (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदीजी ने कुल मिलाकर देश के लिए अच्छा काम किया है."
मार्च 2023 से, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), जो बीजेपी शासित केंद्र सरकार के अंतर्गत आता है, एक रिवरफ्रंट परियोजना के लिए रास्ता बनाने के लिए बेला एस्टेट (राजघाट के पास) जैसे क्षेत्रों में यमुना बाढ़ के मैदानों में डिमॉनिशन अभियान चला रहा है.
रिवरफ्रंट परियोजना का लक्ष्य बाढ़ के मैदानों को "मनोरंजक" गतिविधियों और पार्कों के लिए विकसित करके "सौंदर्यीकरण" और "कायाकल्प" करना है.
क्विंट हिंदी से बात करते हुए, बेला एस्टेट में बाढ़ के मैदान पर 46 वर्षीय रणधीर का एक खेत था, उन्होंने कहा:
"उन्होंने हमारे घरों को यह कहते हुए ध्वस्त कर दिया कि वे यमुना को एक स्वच्छ, हरित नदी बनाना चाहते थे. बीजेपी सरकार और पीएम मोदी सबका साथ, सबका विकास के बारे में बात कर रहे हैं. क्या पार्क बनाने के नाम पर हमारे घरों को ध्वस्त करना 'विकास' है? क्या 'विकास' के लिए ये हमारे अपने घरों और आजीविका को लूटना नहीं हुआ?"
'किसी पर भरोसा नहीं कर सकते... हमें भूला दिया गया है'
पूर्वोत्तर दिल्ली के न्यू उस्मानपुर गांव में नदी के किनारे रहने वाले लोगों के लिए, क्या यमुना नदी कोई मुद्दा है?
82 वर्षीय योगेश ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा. ऐसा क्यों होगा? हम अगले प्रधानमंत्री के लिए मतदान कर रहे हैं... सांसद अकेले इस मुद्दे को हल नहीं कर सकते. यह राज्य और केंद्र दोनों के बीच एक सामूहिक प्रयास है."
योगेश बाढ़ क्षेत्र का एक किसान था, जो अब अपने परिवार के साथ नदी से एक किलोमीटर दूर रहता है.
लेकिन, बेला एस्टेट के शिक्षक कमल के लिए, यमुना नदी का प्रदूषण और उनके समुदाय का विस्थापन महत्वपूर्ण मुद्दा है जिनके आधार पर वह 25 मई को अपना वोट डालेंगे.
उन्होंने कहा कि, "राम मंदिर और धर्म के नाम पर दिल्ली के लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है. वास्तव में, इस तरह के मुद्दों (नदी) को और अधिक उठाया जाना चाहिए, भले ही यह राष्ट्रीय चुनाव हो क्योंकि हम एक पार्टी को मंदिर बनाने के लिए नहीं, बल्कि हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए चुनते हैं. जब तक लोगों को इसका एहसास नहीं होगा, वास्तविक प्रगति नहीं होगी."
कमल, रणधीर और बेला एस्टेट के कई अन्य निवासियों ने द क्विंट को बताया कि वे दोनों पक्षों के प्रति अपनी नाराजगी दिखाने के लिए नोटा का विकल्प चुनने की योजना बना रहे हैं.
उन्होंने पूछा, "हमने पिछले साल पीएम मोदी, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, एलजी विनय कुमार सक्सेना को कई पत्र भेजे (जिनकी कॉपी क्विंट हिंदी ने देखी), लेकिन हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. इसलिए, अब जब बीजेपी, AAP या कांग्रेस नेता संपर्क करते हैं हमें, तो हम उन्हें वोट क्यों दें?"
हालांकि, क्विंट हिंदी के साथ बातचीत में शामिल कई लोगों ने कहा कि वे 25 मई को वोट देने के लिए बाहर निकलेंगे, "यह जानते हुए भी कि हमारे जीवन में कोई बदलाव नहीं होगा."
ओम प्रकाश ने कहा, "केवल गरीब ही यहां रहते हैं, लेकिन हम और कहां जा सकते हैं? हमारे पास पैसा या नौकरी नहीं है. अगर हम बाहर जाते हैं, तो हमें किराया देना होगा. ऐसे ही जीना और मरना बेहतर है."
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