उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के देवबंद (Deoband) में जमीयत-उलेमा-ए-हिंद (Jamiat ulema-e-hind) की बैठक में कई अहम प्रस्ताव पारित किए गए. ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) और मथुरा ईदगाह (Mathura Idgah) के संबंध में प्रस्ताव पास हो गया है. इसके साथ ही कॉमन सिविल कोड का प्रस्ताव भी शामिल है. जमीयत सम्मेलन के दूसरे दिन महमूद असद मदनी ने मुसलमानों से सब्र और हौसला रखने की अपील भी की है.
'जो हमें पाकिस्तान भेजने की बात करते हैं, वो खुद चले जाएं'
रविवार को बैठक में मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि ये मुल्क हमारा है और हम इसे बचाएंगे. किसी को अगर हमारा मजहब बर्दाश्त नहीं है तो कहीं और चले जाओ. हमको मौका मिला था पाकिस्तान जाने का, लेकिन हम नहीं गए. बात-बात पर पाकिस्तान भेजने वाले खुद पाकिस्तान चले जाएं.
मदनी ने मुसलमानों से सब्र और हौसला बनाए रखने की अपील की है. उन्होंने कहा,
"परेशान होने की जरुरत नहीं है, हौसला रखने की जरूरत है. 10 साल से सब्र ही कर रहे हैं. हमारे वजूद पर सवाल खड़े हो रहे है. हम अल्पसंख्यक नहीं हैं, हम इस मुल्क के दूसरे बहुसंख्यक हैं."मौलाना महमूद मदनी
ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह के संबंध में प्रस्ताव
वाराणसी से आए हाफिज उबेदुल्ला ने ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह पर प्रस्ताव रखा. उन्होंने कहा, "वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह और दीगर मस्जिदों के खिलाफ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं, जिससे देश में अमन शांति को नुकसान पहुंचा है." इसके साथ ही उन्होंने कहा कि,
"खुद सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद फैसले में पूजा स्थल कानून 1991 एक्ट 42 को संविधान के मूल ढांचे की असली आत्मा बताया है. इसमें यह संदेश मौजूद है कि सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुर्दों को उखाड़ने से बचना चाहिए. तभी संविधान का अनुपालन करने की शपथों और वचनों का पालन होगा, नहीं तो यह संविधान के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात होगा."
जमीयत की ओर से पारित प्रस्ताव में कहा गया है:
जमीअत उलेमा-ए-हिंद प्राचीन इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा कर के देश में अमन व शांति को खराब करने वाली शक्तियों और उनको समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों के रवैये से अपनी गहरी नाराजगी जाहिर करती है.
बनारस और मथुरा की निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली है और ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट 1991’ की स्पष्ट अवहेलना हुई है.
निचली अदालतों ने बाबरी मस्जिद के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की भी अनदेखी की है जिस में अन्य इबादतगाहों की स्थिति की सुरक्षा के लिए इस अधिनियम का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है.
सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुर्दों को उखाडने से बचना चाहिए.
पैगंबर साहब के अपमान के बारे में प्रस्ताव
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने पैगंबर मोहम्मद के अपमान को लेकर भी प्रस्ताव पास किया है. बैठक में कहा गया कि पैगंबर मोहम्मद (PBUH) के नाम पर घृणित बयानों, लेखों और नारों की एक श्रृंखला फैलाई जा रही है. यह सोची-समझी साजिश का नतीजा है.
जमीयत ने सरकार से मांग कि है कि जल्द ऐसा कानून बनाए जिससे मौजूदा कानून-व्यवस्था की अराजकता खत्म हो. इस तरह के शर्मनाक अनैतिक कृत्यों पर अंकुश लगे और सभी धर्मों के महापुरुषों का सम्मान हो.
इस संबंध में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने ईशनिंदा करने वालों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी निर्देशों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है. जमीयत ने उम्मीद जताई है कि सुप्रीम कोर्ट जल्द ही इस संबंध में अपने निर्देशों को दोहराएगा और भारत सरकार को सचेत करेगा.
कॉमन सिविल कोड के खिलाफ प्रस्ताव पास
देवबंद में जमीयत सम्मेलन के आखिरी दिन प्रोफेसर मौलाना ने कॉमन सिविल कोड पर प्रस्ताव रखा. उन्होंने कहा- शादी, तलाक जैसी चीजें मजहबी हिस्सा है. जमीयत ने साफतौर पर कहा कि कॉमन सिविल कोड किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं होगा. इसे लागू करना संविधान का उल्लंघन होगा. इस्लामी कायदे-कानून में किसी तरह की दखलंदाजी मंजूर नहीं होगी.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद का ये सम्मेलन स्पष्ट कर देना चाहता है कि कोई मुसलमान इस्लामी कायदे कानून में किसी भी दखल को स्वीकार नहीं करता है.
बैठक में सरकार से मांग की गई है कि भारत के संविधान को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा के संबंध में एक स्पष्ट निर्देश जारी किया जाए. यदि कोई सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की गलती करती है, तो मुस्लिम और अन्य वर्ग इस अन्याय को स्वीकार नहीं करेंगी और इसके खिलाफ संवैधानिक सीमाओं के अंदर रह कर हर संभव उपाय करेगी.
इस्लामी शिक्षा को लेकर प्रस्ताव
जमीयत की बैठक में इस्लामी शिक्षा के बारे में फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करने और इस्लाम धर्म छोड़ने की रोक थाम पर भी चर्चा हुई. जमीयत की ओर से कहा गया है कि हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि इस्लामी शिक्षा के बारे में गलत धारणाओं को दूर करने का प्रयास करें.
बैठक में कहा गया कि,
इस्लामी शिक्षाओं के बारे में गलत धारणाओं को दूर करने के लिए एक अभियान चलाने की जरूरत है.
सोशल मीडिया पर ऐसे संदेश पोस्ट करें जो इस्लाम के गुणों और मुसलमानों के सही पक्ष को सामने लाएं.
नई शिक्षा पाने वालों को उचित सामग्री उपलब्ध कराएं. सीरत-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विषय पर इस्लामी क्विज कराएं.
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