वाराणसी के घाट एक बार फिर रोशनी से जगमगा रहे हैं. देव दीपावली के मौके पर लाखों दीयों से वाराणसी के घाटों को सजाया गया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी पहुंचे और उन्होंने इस पर्व में हिस्सा लिया और पहला दीया खुद अपने हाथों से जलाया. दीवाली के त्योहार के ठीक 15 दिनों बाद कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर देव दीपावली मनाई जाती है. इस मौके पर वाराणसी में देश-विदेश से लोग आते हैं. देखिए इस बार कैसे जगमगा रहा है काशी.
क्या है काशी की अद्भुत देव दीपावली
देव दीपावली, असल दीपावली के पंद्रह दिन बाद दोबारा मनाई जाने वाली वो दीपावली है जो कार्तिक पूर्णिमा की रात वाराणसी को जगमगाती है. हालांकि इससे जुड़ा गंगा महोत्सव पांच दिन तक चलता है. सात किलोमीटर के इलाके में फैले बनारस के 87 घाट दीयों से सजाये जाते हैं. शाम होते ही टिमटिमाते दीयों की रोशनी हौले-हौले उठती गंगा की लहरों पर पड़ती है तो नजारा अद्भुत होता है. इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटकों की भीड़ उमड़ती है.
यूं तो घाटों को कार्तिक पूर्णिमा पर दीयों से सजाने की परंपरा पुरानी है लेकिन साल 1989 में पूरे पंचगंगा घाट पर एक साथ दीये जलाये गये. मगर पैसों की कमी के चलते ये देव दीपावली दो साल में ही बन्द हो गयी. 1993 में फिर इसकी शुरूआत हुई और उसके बाद यह सिलसिला घाट दर घाट बढ़ता चला गया.
देव दीपावली की पौराणिक कथाएं
वाराणसी विश्व का एकमात्र स्थल है, जहां दो-दो बार दीपावली मनाई जाती है. शास्त्रों के मुताबिक इस दिन तीनों लोकों पर राज करने वाले त्रिपुरासुर दैत्य का भगवान शिव ने वध किया था. इससे हर्षित देवताओं ने दीये जलाकर अपनी खुशी का इजहार किया था. माना जाता है कि इस दिन देवता स्वर्ग से उतर कर शिव की नगरी काशी में गंगा तट पर दीपावली मनाने आते हैं. इस दिन गंगा स्नान और दान का भी महत्व है. कार्तिक पूर्णिमा की सुबह गंगा स्नान के लिए वाराणसी तीर्थ यात्रियों से पूरी तरह पट जाता है. इस दिन गंगा के किनारे बने रविदास घाट से लेकर राजघाट के आखिरी छोर तक लाखों दिये जलाकर मां गंगा की पूजा की जाती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)