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‘सरकार बिना वर्दी वाले जांबाजों को भी सम्‍मानित करे'

रॉ एजेंट रवींद्र कौशिक के घरवालों ने सरकार से की सम्मान देने की अपील.

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पाकिस्‍तान की जेल में साल 2001 में दम तोड़ने वाले रॉ एजेंट रवींद्र कौशिक के परिजनों ने मांग की है कि सरकार को इस तरह के जांबाजों का भी सम्‍मान करना चाहिए.

साल 1975 में 23 साल के रवींद्र कौशिक राजस्थान के श्रीगंगानगर से ग्रेजुएशन करने के बाद भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ में शामिल हो गए थे.

रॉ ने उन्हें ‘स्थानीय जासूस’ बनाने के लिए प्रशिक्षित किया, जिसके बाद उन्हें रवींद्र कौशिक से नबी अहमद बनाकर पाकिस्तान भेज दिया गया. वहां उन्होंने लॉ से ग्रेजुएशन किया, उर्दू सीखी और वहीं शादी करने के बाद पाकिस्तान आर्मी में शामिल हो गए.

रवींद्र कौशिक उर्फ नबी अहमद के बारे में जब पाकिस्तान सरकार को जानकारी मिली, तो साल 1985 में उन्हें जासूसी करने के अपराध के लिए पहले फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन बाद में उनकी सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था.

हालांकि बाद में साल 2001 में पाकिस्तानी जेल में सजा काटने के दौरान ही बीमारी के चलते रवींद्र कौशिक की मौत हो गई थी.

हमें पैसा नहीं चाहिए. हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि सरकार देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान देने वाले खुफिया एजेंट्स को कम से कम सम्मानित तो करे.

आर.एन.कौशिक, रवींद्र कौशिक के भाई

अंग्रेजी अखबार ‘द टेलीग्राफ’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, रवींद्र कौशिक के परिजनों ने कहा है कि अगर सरकार यूनिफॉर्म में मौजूद लोगों को सम्मानित कर सकती है, तो सरकार अंडरकवर एजेंट्स को सम्मानित करने में क्यों हिचकिचाती है?

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