पिता से बगावत और चाचा के खिलाफ हल्ला बोल. तिनका-तिनका जोड़कर पिता की बनाई पार्टी को तोड़ने की कोशिश- ऐसे ही न जाने कितने आरोपों से यूपी सीएम अखिलेश यादव घिरे हुए हैं. कभी पासा पलटता दिखता है, तो कभी अखिलेश कमजोर नजर आते हैं लेकिन फिर तूफान का रुख बदलते हुए अखिलेश की वापसी होती है- जानते हैं मुश्किल वक्त में साये की तरह कौन अखिलेश के साथ हर धूप-छांव में खड़ा होता है. वो और कोई नहीं बल्कि अखिलेश की अर्धांगिनी डिंपल यादव हैं.
साल 2012 में डिंपल ने ही अखिलेश को पार्टी और परिवार में हो रही साजिश के बारे में बताया था. वक्त के साथ वो अखिलेश की ताकत बनती गई और आज भी ये सिलसिला बदस्तूर जारी है. डिंपल ने पार्टी और परिवार की कलह में शालीनता से अखिलेश का साथ दिया. सही रास्ता दिखाया, गलत लोगों की पहचान करवाई और इसके साथ ही प्रदेश की जनता के बीच अखिलेश को दिल-अजीज भी बनाया.
परदे के पीछे से अखिलेश के लिए खड़ा किया जन आंदोलन
बतौर पत्नी डिंपल ने न सिर्फ घर संभाला, यादव परिवार में अनबन पर पानी डालती रहीं बल्कि सोशल मीडिया का मोर्चा भी संभाला. फेसबुक और ट्विटर के जरिए अखिलेश को समाजवाद का नया चेहरा बनाया, अखिलेश के लिए लोगों में सहानुभूति पैदा की. परिवार और पार्टी में मचे घमासान के बीच डिंपल ने पूरी संजीदगी के साथ ऐसी सोशल मीडिया कैंपेनिंग की, जिससे सिर्फ पार्टी कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की जनता के लिए अखिलेश नेताजी के बराबर हो गए.
अखिलेश का फेसबुक और ट्विटर अकाउंट डिंपल ही संभालती हैं, वो खुद उनके ट्विटर और फेसबुक पोस्ट पर नजर रखती हैं ताकि किसी भी तरह की चूक न हो- सूत्र
एक टीवी इंटरव्यू में सीएम अखिलेश ने भी कहा था कि डिंपल ही वो शख्स हैं, जिनसे उन्हें मुश्किलों से लड़ने की ताकत मिलती है.
समाजवादी फाइट पर डिंपल ने डाला पानी!
अक्टूबर महीने में पहली बार समाजवादी पार्टी में अखिलेश के खिलाफ की जा रही साजिश खुलकर सामने आई. बकौल अखिलेश, ‘अंकल’ अमर सिंह ने उन्हें सीएम पद से हटाने की साजिश रची और चाचा शिवपाल ने भी बाहरी लोगों के कहने पर अपने ही भतीजे के खिलाफ बगावत कर दी.
डिंपल ने इस नाजुक घड़ी में भी बड़ी समझदारी से काम लिया. पार्टी कार्यकर्ता बताते हैं कि जनसभाओं और छोटी मुलाकातों में डिंपल ने कभी भी अमर सिंह और शिवपाल के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा, उनके चेहरे पर कभी शिकन नहीं दिखी. शायद यही वजह रही कि यादव परिवार की फाइट को घर में बढ़ावा नहीं मिला, अखिलेश को पूरा मौका मिला पिता को समझाने और अपने खिलाफ हो रही साजिशों का खुलासा करने का. अगर डिंपल ने मतभेदों पर रिएक्ट किया होता तो शायद नेताजी इसे हजम नहीं कर पाते.
कहते हैं कि, 2012 में जब अखिलेश को पहली बार पार्टी में उनके खिलाफ हो रही साजिश के बारे में डिंपल ने बताया तो अखिलेश को विश्वास नहीं हुआ, मुस्कुराते हुए उन्होंने वो बात टाल दी, लेकिन फिर वक्त के साथ अखिलेश को एहसास हुआ कि सच में ऐसा हो रहा है. रोजाना ऑफिस खत्म करने के बाद अखिलेश नेताजी के घर जाकर उनके साथ वक्त बिताने लगे. सूत्रों की मानें तो, “जब साधना और मुलायम के छोटे भाई शिवपाल मुलायम के घर से अखिलेश के लिए मुसीबतें खड़ी करने में कामयाब होने लगे, तब ही अखिलेश ने कुछ महीने पहले ही पिता के बराबर वाले आवास में शिफ्ट कर लिया.”
पिछले तीन महीनों में जिस तरह से मुलायम परिवार में घमासान मचा, उससे साबित हो गया कि डिंपल का डर सही था.
मुलायम का भी दिल जीता
मुलायम सिंह यादव हमेशा से डिंपल की राह में रोड़ा बनते आए. पहले बात शादी की, डिंपल और अखिलेश की शादी का प्रस्ताव जब नेताजी के पास गया तो उन्होंने आपत्ति जताई, ठाकुर परिवार में रिश्ता करने का इरादा नेताजी नहीं रखते थे, लेकिन फिर ‘अंकल’ अमर सिंह के समझाने पर नेताजी मान गए. 1999 में शादी हुई और क्रिसमस पर डिंपल और अखिलेश हनीमून प्लान कर रहे थे, लेकिन तभी कन्नौज सीट पर उपचुनाव की घोषणा हो गई और नेताजी ने सीट पर जीत की जिम्मेदारी अखिलेश को दे दी.
साल 2009 के उप-चुनाव में जब अखिलेश कन्नौज सीट से इलेक्शन लड़ने की वजह से फिरोजाबाद सीट छोड़ रहे थे, तब अखिलेश ने फिरोजाबाद सीट से पत्नी डिंपल को इलेक्शन लड़ाने के लिए सुझाव दिया. उस वक्त पिता मुलायम ने बहू के राजनीति में उतरने और चुनाव लड़ने का विरोध किया था.
“राजनीति में दस्तक दे रही डिंपल उस दौरान पांच मिनट भी किसी रैली को संबोधित नहीं कर सकती थीं. ऐसे वक्त में फिरोजाबाद के समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं के कहने के बावजूद भी मुलायम ने अपनी बहू का समर्थन नहीं किया. यही वजह रही की डिंपल कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर से चुनाव हार गईं और समाजवादी पार्टी को फिरोजाबाद सीट गंवानी पड़ी थी.”
राजनीति में महिलाओं के आने के पक्षधर नहीं थे मुलायम
साल 2010 में जब कांग्रेस संसद में महिला आरक्षण को लेकर संशोधित बिल पास कराना चाहती थी. उस दौरान भी मुलायम ने महिलाओं के राजनीति में आने का विरोध किया था.
“बड़े घरों की महिलाएं जब राजनीति में आएंगी तो लोग सीटियां बजाएंगे. यकीन मानिए...बड़े घरों की बहू-बेटियां चुनाव जीतकर संसद या विधानसभा तक पहुंच तो सकती हैं लेकिन इससे कोई फायदा नहीं होगा.”
लेकिन फिर भी समाजवादी पार्टी, यादव परिवार के लिए डिंपल का नजरिया नहीं बदला. आर्मी परिवार में पली-बढ़ीं डिंपल पूरे यादव परिवार को एकसाथ लेकर चलने में विश्वास रखती हैं. यही वजह है कि नेताजी की नजरों में डिंपल का कद बढ़ा है और पार्टी और परिवार टूटने से बचती आई है.
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