सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक अहम फैसले में माना है कि विवाह के 'अपरिवर्तनीय टूटने' (यानी कि जिन शादियों के बेहतर होने की उम्मीद नहीं हो) के आधार पर तलाक की प्रक्रिया पूरी हो सकती है. इसके अलवा आपसी सहमति से तलाक के लिए 6 महीने के इंतजार को भी खत्म किया जा सकता है.
पांच जजों की बेंच ने कहा है कि कोर्ट इस मुद्दे को पारिवारिक अदालत में भेजे बिना आर्टिकल 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग कर सकती है.
"हमने माना है कि इस कोर्ट के लिए यह मुमकिन है कि जिन शादियों में सुलह की गुंजाइश नहीं दिखती, ऐसे मामलों में शादी को भंग किया जा सकता है. यह पब्लिक पॉलिसी के विशिष्ट या मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करेगा."सुप्रीम कोर्ट
ये फैसला अहम क्यों है? इससे पहले शादी के बंधन में बंधे जोड़ों को ऐसे मामलों को पारिवारिक अदालतों में ले जाना पड़ता था, जहां आपसी सहमति से तलाक के लिए 6-18 महीने इंतजार करना पड़ता था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के नियम के मुताबिक तलाक हो सकता है.
क्या है पूरा मामला? सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13-बी के तहत निर्धारित किए जरूरी समय का इंतजार करने के फैमिली कोर्ट के जाने की बजाय, दोनों पक्षों के बीच सहमति से विवाह को भंग करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की विशेष शक्तियों के उपयोग के संबंध में आया है. हालांकि, सुनवाई के दौरान बेंच ने इस मुद्दे पर विचार करने का फैसला लिया कि क्या विवाहों को 'अपरिवर्तनीय टूटने के आधा'र पर भंग किया जा सकता है.
बेंच ने पिछले साल सितंबर में कहा था, "हम मानते हैं कि एक और सवाल जिस पर विचार करने की जरूरत होगी, वह यह होगा कि क्या भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत शक्ति किसी भी तरह से ऐसी स्थिति में बाधित है, जहां कोर्ट की राय में विवाह का एक अपरिवर्तनीय टूटने का मामला है, लेकिन एक पक्ष इसपर सहमत नहीं हो रहा है."
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