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‘हिंदी थोपे जाने’ के खिलाफ कनिमोझी के साथ आए लोग कौन हैं?

चिदंबरम ने कहा, “कनिमोझी के साथ जो हुआ वो नया नहीं है”

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डीएमके नेता कनिमोझी ने 9 अगस्त को ट्वीट कर आरोप लगाया कि चेन्नई एयरपोर्ट पर हिंदी नहीं बोलने की वजह से CISF के एक अधिकारी ने उनसे पूछा कि क्या आप भारतीय हैं. कनिमोझी ने अपने ट्वीट में पूछा, "मैं जानना चाहूंगी कि हिंदी जानना भारतीय होने के बराबर कब से हो गया है." कनिमोझी के इस ट्वीट के बाद के कई नेता, पत्रकार, इकनॉमिस्ट और आम लोगों ने 'हिंदी थोपे' जाने का विरोध किया.

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CISF ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए कार्रवाई शुरू की है. CISF ने बताया कि उन्होंने मामले की जांच शुरू कर दी है और कहा कि एजेंसी की किसी विशेष भाषा पर जोर देने की पॉलिसी नहीं है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और देश के पूर्व गृह मंत्री चिदंबरम ने कनिमोझी के साथ हुई घटना का जिक्र करते हुए अपने 'अनुभव' साझा किए. चिदंबरम ने कहा, "कनिमोझी के साथ जो हुआ वो नया नहीं है, मैंने भी ऐसे कई कमेंट अफसरों और आम लोगों से सुने हैं, जो मुझे फोन पर हिंदी बोलने के लिए कहते हैं. अगर केंद्र सरकार चाहती है कि हिंदी-अंग्रेजी देश की सरकारी भाषा बने, तो सभी केंद्रीय कर्मचारियों को इन भाषाओं में एक्सपर्ट बनाना चाहिए."

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के डायरेक्टर रथिन रॉय ने इसे 'हिंदी का आधिपत्य' बताते हुए कहा कि वो इसका विरोध करेंगे. रॉय ने ट्विटर पर लिखा, "मुझे चार भाषाएं आती हैं. लेकिन अब अगर किसी अनजान शख्स ने मुझसे हिंदी में बात की तो मैं उसे बाकी तीनों भाषाओं में जवाब दूंगा."

पूर्व सेनाध्यक्ष वेद मलिक ने CISF के ट्वीट पर लिखा कि ये अविश्वसनीय है.

द हिंदू ग्रुप की चेयरपर्सन मालिनी पारसार्थी ने कनिमोझी का समर्थन करते हुए लिखा कि इस बातचीत में हिंदी और भारतीय को मिला देने के संकेत मिलते हैं. पारसार्थी ने लिखा कि दक्षिण की भाषाओं को कम नहीं आंका जा सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार लिज मैथ्यू ने आपबीती बताई. उन्होंने कहा, "2014 में यूपी की एक सांसद से जब उन्होंने फोन नंबर अंग्रेजी में बताने को कहा, तो उनसे पूछा गया था कि क्या वो हिंदुस्तानी हैं?"

द न्यूज मिनट की डिप्टी एडिटर पूजा प्रसन्ना ने बताया कि चेन्नई से मुंबई गए उनके एक दोस्त से कहा गया था कि अगर अंग्रेजी न्यूज चैनल में रहना है तो हिंदी सीखनी पड़ेगी.

डेक्कन हेराल्ड के तमिलनाडु में पत्रकार शिवप्रियन ने ट्विटर पर बताया, "मैंने खुद अनुभव किया है कि लोग ये जानते हुए भी कि आपको हिंदी नहीं आती, आपसे हिंदी में ही बात करते हैं. ज्यादातर लोगों को लगता है कि सभी को हिंदी आती है."

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इन प्रतिक्रियाओं से क्या समझ आता है?

हाल-फिलहाल में नई शिक्षा नीति जारी की गई है. उसमें तीन-भाषा का फॉर्मूला दिया गया है. इसके मुताबिक अब सभी छात्र अपने स्कूलों में इस 'फॉर्मूले' के तहत तीन भाषाएं सीखेंगे. इन तीन भषाओं में से कम से कम दो भारत की नेटिव होनी चाहिए. उदाहरण के लिए, मुंबई में अगर कोई छात्र मराठी और अंग्रेजी सीख रहा है, तो उसे तीसरी भाषा कोई भारतीय पढ़नी होगी.

हालांकि, इस नीति के जरिए देश में हिंदी भाषा को ‘थोपे जाने’ का आरोप लग रहा है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये फॉर्मूला काम नहीं कर पाएगा और अंत में हिंदी ही पढ़ाई जाएगी क्योंकि और भाषाओं के शिक्षक मिलना मुश्किल होगा.  

कनिमोझी के ट्वीट पर कई लोगों ने कहा कि वो ये सब 2021 में तमिलनाडु चुनाव की वजह से कह रही हैं. ये सच है कि दक्षिण के राज्यों में भाषा चुनाव का मुद्दा बनता है, लेकिन जिस तरह हर फील्ड के लोगों ने हिंदी भाषा 'थोपे जाने' का अपना अनुभव साझा किया है और नई शिक्षा नीति को लेकर लोगों के मन में डर है, इस तरह की प्रतिक्रिया आना अहम हो जाता है. इससे समझ आता है कि 'हिंदी और भारतीय एक है के कॉन्सेप्ट' को समाज के हर वर्ग से चुनौती मिल रही है.

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