पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों की हड़ताल के बीच एक ऐसा मामला सामने आया है, जो बयां करता है कि क्यों डॉक्टरों को फरिश्ते के रूप में देखा जाता है. शुक्रवार सुबह कोलकाता स्थित चितपुर निवासी 26 साल की पूजा भारती जब प्रसव पीड़ा से जूझ रही थीं तो उनके परिवार की चिंता हड़ताल की वजह से और बढ़ गई. पूजा का दर्द बढ़ने पर उनका परिवार उन्हें आरजी कार मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल ले गया.
शुरुआत में हड़ताल कर रहे जूनियर डॉक्टरों ने पूजा के परिवार से कहा कि वो पूजा को किसी दूसरे हॉस्पिटल में ले जाएं. मगर बाद में दर्द से तड़प रही पूजा को देखकर डॉक्टरों का दिल पसीज गया.
अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पूजा ने इस मामले पर कहा, ''मैं दर्द से तड़प रही थी और सोच रही थी कि मेरी जान चली जाएगी. मगर तभी मेरी मदद के लिए डॉक्टर आगे आए. इसके बाद मेरी जान में जान आई.'' कुछ इंटर्न और दो पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टरों- निरुपमा डे और केया चटर्जी ने पूजा की डिलीवरी कराई.
हम मरीज के परिवार को यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि हम हड़ताल पर हैं और उनको दूसरे अस्पताल जाना चाहिए. मगर जब हमें पता चला कि वह (पूजा) लेबर पेन की लास्ट स्टेज से गुजर रही हैं, तो हमें लगा कि उनको वापस लौटाना अमानवीय होगा.भास्कर दास, इंटर्न डॉक्टर
इस मामले पर डॉक्टर निरूपमा डे ने बताया, ''हम हड़ताल पर थे. मगर हम भी इंसान हैं और सोचते हैं कि इमर्जेंसी वाले मरीजों को ना लौटाएं. एक गर्भवती महिला को दूसरे हॉस्पिटल भेजना जोखिम भरा हो सकता था. हम खुश हैं कि उन्होंने (पूजा ने) एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया है.'' पूजा की डिलीवरी के बाद जूनियर डॉक्टरों ने सड़क हादसे के शिकार एक लड़के का भी इलाज किया.
बता दें कि पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों पर हुए हमले के बाद शुरू हुई हड़ताल शनिवार को भी लगातार पांचवें दिन जारी है. कई राज्यों के डॉक्टर इस हड़ताल का समर्थन कर डॉक्टरों की सुरक्षा का मुद्दा उठा रहे हैं.
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