दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईंबाबा (Ex Prof Saibaba) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ा झटका लगा है. SC ने माओवादियों से जुड़े मामले में जीएन साईंबाबा और अन्य को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के आदेश को निलंबित कर दिया है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी की जेल से रिहाई पर भी रोक लगा दी है.
बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपियों को नोटिस जारी किया है. 8 दिसंबर को इस मामले में अगली सुनवाई होगी.
क्यों निलंबित हुआ हाई कोर्ट का फैसला?
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने मामले में सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है. बार एंड बेंच के मुताबिक शीर्ष अदालत ने कहा कि, "हमारी राय है कि सीआरपीसी के 390 के तहत पावर का इस्तेमाल करने और हाईकोर्ट के आदेश को निलंबित करने के लिए यह एक उपयुक्त केस है. आरोपी के मेडिकल ग्राउंड को हाईकोर्ट ने पहले ही खारिज किया था. इस तरह, हाईकोर्ट का आदेश निलंबित किया जाता है."
इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि, "हम केवल यह कह रहे हैं कि फैसला निलंबित है लेकिन आप जमानत की अर्जी दाखिल कर सकते हैं."
सुप्रीम कोर्ट ने साईंबाबा की उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने मेडिकल आधार पर जेल की जगह घर में नजरबंद करने की मांग की थी. इस पर अदालत ने कहा, “आरोपी की जमानत याचिका को हाई कोर्ट ने 2020 में भी मेडिकल आधार पर भी खारिज कर दिया था.”
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई. उन्होंने तर्क दिया,
"अर्बन नक्सल द्वारा हाउस अरेस्ट की मांग का चलन है. लेकिन वो घर से सबकुछ कर सकते हैं. फोन से भी सबकुछ हो सकता है. ऐसे में हाउस अरेस्ट कभी भी एक विकल्प नहीं हो सकता है."
हाईकोर्ट ने मेरिट के आधार पर मामले पर विचार नहीं किया: SC
बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने मेरिट के आधार पर मामले पर विचार नहीं किया. वहीं गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) की धारा 45 के तहत केंद्र सरकार की मंजूरी के अभाव में आरोपी को बरी कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि,
"कोर्ट की राय है कि आक्षेपित फैसले के संबंध में विस्तृत जांच की आवश्यकता है क्योंकि हाई कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ कथित अपराध की गंभीरता और मामले की मेरिट पर विचार नहीं किया है."
कोर्ट ने आगे कहा कि इसमें शामिल अपराध बहुत गंभीर प्रकृति के हैं और आरोपियों को सबूतों की विस्तृत समीक्षा के बाद दोषी ठहराया गया था.
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था?
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने शुक्रवार, 14 अक्टूबर को पूर्व प्रो. साईंबाबा को निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया था. साथ ही उन्हें तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश सुनाया था. 90 फीसदी शारीरिक दिव्यांगता के कारण व्हीलचेयर पर निर्भर प्रोफेसर साईंबाबा वर्तमान में नागपुर केंद्रीय जेल में बंद हैं.
इस मामले में कोर्ट ने कहा था कि, बेंच ने आज कानूनी कार्रवाई में उचित प्रक्रिया का पालन करने के महत्व पर जोर दिया, और फैसला सुनाया कि UAPA के तहत कार्रवाई के लिए जरूरी मंजूरी का अभाव था और ऐसे में निचली अदालत के सामने कार्रवाई "अमान्य" थी.
मामले की टाइमलाइन
2013 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पुलिस ने माओवाद से जुड़े महेश तिर्की, पी. नरोटे और हेम मिश्रा को गिरफ्तार किया.
तीनों से पूछताछ के बाद पुलिस प्रोफेसर जीएन साईंबाबा के खिलाफ कोर्ट गई.
माओवाद से कनेक्शन के आरोप में 9 मई 2014 को दिल्ली आवास से साईंबाबा को गिरफ्तार किया गया.
2015 में साईंबाबा के खिलाफ UAPA के तहत केस दर्ज कर कार्यवाही शुरू की गई.
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली कोर्ट ने 2017 में साईंबाबा और पांच अन्य को आरोपियों को UAPA और भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराया.
साईंबाबा और चार अन्य को आजीवन कारावास की सजा और एक को दस साल की कैद की सजा सुनाई गई थी.
गढ़चिरौली कोर्ट के फैसले के खिलाफ साईंबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की.
14 अक्टूबर 2022 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने साईंबाबा को बरी कर दिया.
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