रीना मित्रा 1983 बैच की मध्य प्रदेश कैडर की आईपीएस अधिकारी हैं. रीना के पास सीबीआई में पांच साल तक काम करने का अनुभव है. इन तमाम अनुभवों के बावजूद रीना मित्रा पिछले चार बार से देश की पहली महिला सीबीआई निदेशक बनते-बनते रह गईं.
रीना का कहना है कि हर बार की तरह इस बार भी चयन प्रक्रिया में हुई एक दिन की देरी की वजह से उनका नाम आखिरी लिस्ट में आने से रह गया. इस तरह वो रेस से बाहर हो गईं.
मध्य प्रदेश के विजिलेंस ब्यूरो में लम्बे समय तक काम कर चुकी रीना ने कई भ्रष्टाचार के मामलों को हैंडल किया है. इसके अलावा वो वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो को भी संभाल चुकी हैं. रीना गृह मंत्रालय में आंतरिक सुरक्षा मामलों की विशेष सचिव के पद पर कार्यरत थीं. पिछले हफ्ते ही वे अपने पद से रिटायर हुई हैं.
'द टेलीग्राफ' को दिए इंटरव्यू में रीना ने सीबीआई निदेशक न चुने जाने के मामले पर पहली बार जवाब दिया. इसका सार-संक्षेप नीचे दिया जा रहा है.
महिला होने का एहसास बचपन से
मजबूत बने रहें. एक बेहतर दुनिया के लिए लड़ते रहें, लेकिन इसके लिये अपना दिल छोटा न करें और न ही हौसला छोड़ें भले ही जल्द कोई परिणाम न निकल रहा हो. मैं जानती हूं मैं ऐसा ही करूंगी.रीना मित्रा
बचपन की समस्याओं का जिक्र करते हुए रीना ने बताया कि किस तरह उनके भाइयों ने उनकी पढ़ाई के लिए पिता से लड़कर मदद की. इतना ही नहीं, जब वो पश्चिम बंगाल की पहली महिला आईपीएस चुनी गईं, तब भी लोगों ने उनका मजाक उड़ाया.
लोगों ने कमेंट करते हुए कहा, "मिल तो गया, कर लेगी क्या?” इतना ही नहीं, लोगों ने उनकी काबिलियत को हमेशा कम कर के आंका, चाहे वो उनके शादी का मामला हो या मां बनने का वक्त.
इन सभी बाधाओं से लड़ते हुए रीना मित्रा ने कभी हार नहीं मानी और सभी समस्याओं का जमकर सामना किया. अपने 35 साल के लम्बे कार्यकाल में रीना ने कई केसों को सुलझाया और लोगों को न्याय भी दिलवाया.
अनुभव के बावजूद लिंगभेद की शिकार
रीना ने कहा, ''मेरी बातों से जूनियर पदाधिकारियों को बिलकुल निराश होने की जरूरत नहीं है. खासकर अगर आप महिला पदाधिकारी हैं, तो आपको ऐसे कई चैलेंज मिलेंगे. लेकिन इनसे आपको घबराने की कोई जरूरत नहीं है. महिला होने के कारण पुरुष प्रधान समाज में आपको लिंगभेद का सामना करने के लिए अधिक कोशिश करनी होगी.''
हालंकि रीना 5 साल तक सीबीआई के साथ काम कर चुकी थीं, लेकिन इस ताजा अनुभव के बारे में उन्होंने कहा कि सेलेक्शन का सारा क्राइटेरिया को पूरा करने के बाद ही योग्यता के आधार पर ये मौका मिलता है और वे उन सभी पैरामीटर को पूरा करती थीं.
रीना ने बताया, ''नियम के मुताबिक मेरा सेलेक्शन लगभग तय था. मैं सबसे उपयुक्त सीनियर पदाधिकारी भी थी. लेकिन एक दिन की अनावश्यक देरी की वजह से मुझे इस रेस से बाहर कर दिया गया. अंततः मैं ये सोचने को बाध्य हो गई कि क्या ये वाकई मेरे प्रोफेशनल करियर की आखिरी शीशे की छत थी, जिसका मैं सामना कर रही थी?''
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