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सावन-भादो से ओला-उबर तक-मंदी के पीछे ये हैं अब तक के सरकारी तर्क

देश में इस वक्त ऑटो सेक्टर सबसे बड़े मंदी के दौर से गुजर रहा है

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मंदी के कारण लोग परेशान हैं, इंडस्ट्रियां परेशान हैं, बेरोजगारी बढ़ रही है. मनमोहन सिंह कह रहे हैं कि सरकार मंदी का सामना तब कर सकती है जब वो माने कि मंदी है, लेकिन सरकार है कि मानती नहीं.. सरकार का एक धड़ा कहता है कि मंदी है ही नहीं, तो दूसरा कह रहा है कि मंदी है भी तो हम जिम्मेदार नहीं. ये वाला धड़ा मंदी के लिए एक से एक वजह बता रहा है.... यहां हम इनकी बताई सारी वजहें एक जगह बता रहे हैं.

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ऑटो सेक्टर में मंदी के लिए ओला-उबर जिम्मेदार!

देश में इस वक्त ऑटो सेक्टर सबसे बड़े मंदी के दौर से गुजर रहा है. पिछले महीने देश में 21 सालों में सबसे कम कार बिकी. घरेलू बाजार में इस महीने कारों की बिक्री में 41 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है. ऐसे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण दलील दे रही हैं कि मिलेनियल आजकल गाड़ी खरीदने की जगह ओला-उबर को तवज्जो दे रहे हैं.

ज्यादातर लोगों की सोच में बदलाव आया है जो अब मासिक किस्तों में एक कार खरीदने की जगह ओला और उबर जैसे टैक्सी सेवा का लाभ लेना पसंद करते हैं और यह आटो सेक्टर में मंदी के कई कारणों में से एक है.
निर्मला सीतारमण, वित्तमंत्री

ऑटो सेक्टर में मंदी को ओला-उबर से जोड़ने वाले वित्त मंत्री के इस बयान की विपक्ष से लेकर इंडस्ट्रलिस्ट तक आलोचना कर रहे हैं. देश के सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी के एक टॉप अधिकारी ने कहा, भारत में कार खरीदने को लेकर विचारधारा में अभी भी कोई बदलाव नहीं आया है और लोग अपनी आकांक्षा के तहत कार की खरीदते हैं.

गाड़ियां कम बिक रहीं क्योंकि ट्रांसपोर्ट सिस्टम सुधरा

परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ऑटो सेक्टर में आर्थिक मंदी पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की 'ओला-उबर' थ्योरी को और आगे बढ़ा दिया. गडकरी ने कहा, ‘हम पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम में लगातार सुधार कर रहे हैं. नई नई तकनीक लेकर आ रहे हैं. ऑटो सेक्टर पर इसका भी असर होता है.’

नितिन गडकरी ने निर्मला सीतारमण का बचाव करते हुए कहा कि वित्त मंत्री के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया. उन्होंने कहा कि ऑटो सेक्टर में मंदी की एक नहीं कई वजह हैं, जिसमें से ओला-उबर का बढ़ना भी एक वजह है.

‘सावन-भादो में तो मंदी रहती ही है’

बिहार के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी की आर्थिक मंदी पर अलग ही थ्योरी है. सुशील मोदी का कहना है कि हर साल सावन-भादो में मंदी रहती है, लेकिन इस बार मंदी का ज्यादा शोर मचाकर कुछ लोग चुनावी हार की खीझ निकाल रहे हैं. सुशील मोदी ने ये भी कहा, "बिहार में मंदी का खास असर नहीं है, इसलिए वाहनों की बिक्री नहीं घटी.’’

सुशील कुमार का ये बयान ऐसे समय में आया है, जब देश में मंदी की जबरदस्त मार है. पहली तिमाही में GDP ग्रोथ घटकर 5 फीसदी के स्‍तर पर आ गई. ऑटो सेक्टर में 2 लाख नौकरियां जा चुकी हैं. अगले क्वार्टर में दस लाख नौकरियां जा सकती हैं.

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मंदी का 'आइंस्टीन' लॉजिक

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी मंदी पर एकदम नया लॉजिक दिया है. गोयल ने कहा, ‘अगर आइंस्टीन ने आंकड़ों और गणित की चिंता की होती तो वो कभी भी ग्रैविटी (गुरुत्वाकर्षण) के नियम की खोज नहीं कर पाते.’ गोयल के इस बयान की सोशल मीडिया पर खूब मजाक उड़ा है. देखते ही देखते ट्विटर पर न्यूटन और आइंस्टीन ट्रेंड करने लगे.

दरअसल, गुरुत्वाकर्षण की खोज न्यूटन (1642-1727) ने की थी. वहीं, आइंस्टीन (1879-1955) ने थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी की खोज की थी. बाद में गोयल ने सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने बयान एक खास संदर्भ में दिया था लेकिन कुछ लोगों ने उसे संदर्भ से हटा दिया, एक लाइन पकड़कर शरारती नैरेटिव बनाने लगे.

मंदी तो है ही नहीं!

केंद्रीय मंत्री ही नहीं, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पीछे नहीं है. हमारे पीएम को देश में मंदी दिखती ही नहीं. हाल ही में उन्होंने अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर उपलब्धियां गिनाते हुए कहा था, "जिस तेजी से देश आगे जा रहा है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है.’’

विकास हमारी प्राथमिकता और प्रतिबद्धता है. हमने 100 दिनों में लोगों के कल्याण के लिए फैसले लिए हैं. यह महज शुरुआत है, 5 साल बाकी हैं. जिस तेजी से देश आगे जा रहा है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है.
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

बता दें, मोदी के 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगातार पांच साल तक 9 फीसदी की ग्रोथ रेट हासिल करनी होगी. साथ ही निवेश को जीडीपी के 38 फीसदी पर पहुंचाना होगा. Ernst & Young (EY) ने ‘इकनॉमी वॉच’ के ताजा एडिशन में यह बात कही.

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