गोमती रिवर फ्रंट घोटाला मामले में यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ सकती हैं. इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. ईडी ने इस मामले में ताबड़तोड़ छापेमारी करना शुरू कर दिया है. देश के चार राज्यों में छापेमारी हुई है.
इन अधिकारियों के ठिकानों पर हुई छापेमारी
ईडी ने गोमती रिवर फ्रंट घोटाला मामले में यूपी, हरियाणा, राजस्थान और राजधानी दिल्ली में छापेमारी की है. इसमें सिंचाई विभाग के कुछ पूर्व अधिकारियों और गैमन इंडिया के अधिकारियों के कई ठिकानों को खंगाला गया है. नोएडा के भी कुछ ठिकानों पर छापेमारी की गई है. राजस्थान के भिवाड़ी और हरियाणा के गुरुग्राम में भी ईडी के अधिकारियों ने छापेमारी की है.
क्योंकि मामला अखिलेश यादव सरकार के दौर का है, इसलिए इस मामले में भी अखिलेश यादव पर ईडी शिकंजा कस सकती है. फिलहाल ईडी पूरे घोटाले में करोड़ों रुपये की हेरा-फेरी का पता लगाने में जुटी है, सबूत हाथ लगते ही बड़ी कार्रवाई हो सकती है
नप सकते हैं कई इंजीनियर
गोमती रिवर फ्रंट घोटाला मामले में कई इंजीनियरों की संपत्ति की जांच चल रही है. ईडी सभी के खातों की जांच कर रही है. ईडी की तरफ से इस घोटाले से जुड़े सभी अधिकारियों और इंजीनियरों से उनकी संपत्ति, फ्लैट, जमीन आदि का ब्यौरा मांगा गया था. अब इसके बाद यह छापेमारी इन सभी अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ा सकती है. अब ईडी ने खुद मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज कर सभी की संपत्ति की जांच करना शुरू कर दिया है.
क्या हैं आरोप?
लखनऊ में बने गोमती रिवर फ्रंट ने निर्माण में घोटाले के गंभीर आरोप हैं. इसमें करोड़ों रुपये की हेरा-फेरी के आरोप लगाए गए हैं. ये निर्माण कार्य तब हुआ था जब अखिलेश यादव यूपी की सत्ता संभाल रहे थे. इसके बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी सत्ता में आई और योगी सरकार ने इसकी जांच के लिए एक कमिटी गठित कर दी. इसके बाद ईडी ने मामले में केस दर्ज किया और जांच आगे बढ़ाई.
इससे पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के दौर में हुए एक और घोटाले में ईडी ने केस दर्ज किया था. अवैध खनन पट्टों के आवंटन मामले में सीबीआई और ईडी ने अखिलेश को समन भी जारी किया है
इतने करोड़ हुए थे खर्च
गोमती रिवर फ्रंट परियोजना के लिए कुल 1513 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया था. जिसमें से 1437 करोड़ रुपये का बजट निकाल भी दिया गया. लेकिन इस परियोजना का कार्य लगभग आधा ही पूरा किया गया. पूरी परियोजना के लिए आवंटित लगभग 95 फीसदी रकम को निकाल दिया गया. जिसमें सीधे बड़े घोटाले के आरोप लगाए गए. जिसके बाद अब भारतीय एजेंसियां मामले की जांच में जुटी हैं.
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