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सच है जुड़ा है महिलाओं का शिक्षा स्तर और जन्मदर, लेकिन भारत में मामला जरा हटकर

भारत के आंकड़े भी साफ बताते है कि महिलाओं में शिक्षा के स्तर के बढ़ने के साथ फर्टिलिटी रेट में कमी आई है.

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की नई जनसंख्या नीति (Population Control Bill) के मसौदे पर देश भर में चर्चा हो रही है. इस विवाद में सिर्फ हेल्थ प्रोफेशनल्स और जनसंख्या विशेषज्ञ ही नहीं राजनेता भी कूद पड़े हैं. इस बहस में हस्तक्षेप करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक ऐसा बयान दिया है, जो बहस के राजनीतिक-सांप्रदायिक चरित्र से अलग एक नीतिगत प्रश्न खड़ा करता है.

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उन्होंने कहा है कि सिर्फ कानून बनाने से जनसंख्या में कमी नहीं लाई जा सकती. जनसंख्या नियंत्रण के लिए जरूरी है महिलाओं का शिक्षित होना. जिस महिलाओं में शिक्षा दर अच्छा है वहां पर प्रजनन दर में कमी देखी गई है.

किसी भी देश और समाज में जनसंख्या वृद्धि दर और महिला शिक्षा के बीच अंतर्संबंध पर कई शोध हुए हैं. जुंगो किम ने अपने शोध फीमेल एजुकेशन एंड इट्स इम्पेक्ट ऑन फर्टीलिटी में बताया है कि महिलाओं की शिक्षा और प्रजनन दर में जटिल संबंध है. औरत जैसे-जैसे शिक्षित होती है, वे गर्भ निरोधक उपाय (कॉन्ट्रासेप्टिव ) के प्रयोग को लेकर जागरूक हो जाती है. वे बच्चों की अच्छी एजुकेशन और परवरिश में ज्यादा खर्च करने की तरफ सोच पाती है, यानी बच्चों के मानव पूंजी ( ह्यूमन कैपिटल) पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा. बच्चा बड़ा होकर कमाएगा और परिवार की मदद करेगा, जैसी सोच भी इससे कमजोर होती है.

तीसरा मुख्य कारण ये पाया कि शिक्षित महिलाएं सुरक्षित तरीके से प्रजनन करने लगी जिसके कारण शिशु मृत्यु दर में कमी आई. इसके साथ ही कुछ शोध इस निष्कर्ष पर भी पहुंचे कि शिक्षित महिलाएं नौकरी करने लगी जिसकी वजह से वे कम बच्चे पैदा करने लगी.

शिशु मृत्यु दर का जनसंख्या वृद्धि दर से सीधा संबंध है. जिस भी देश या समाज में बच्चों के बड़े होने से पहले मर जाने की आशंका ज्यादा होती है, वहां प्रजनन दर ज्यादा होती है. इसलिए हिंसा और विद्रोह आदि से प्रभावित देशों, या कमजोर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देशों में प्रजनन दर हमेशा ज्यादा होती है. परिवारों को लगता है कि पता नहीं पैदा होने वाले बच्चों में से कितने बचेंगे.

यूरोपियन यूनियन डेमोग्राफिक सिनेरियो ने अपनी रिपोर्ट में ये माना है कि महिला शिक्षा और स्वस्थ प्रजनन से बर्थ रेट में कमी देखी गई है.

वहीं, ईरान में 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद शोधकर्ताओं ने 384 पति-पत्नियों से उनके प्रजनन और परिवार नियोजन व्यवहार से संबंधित सवाल किए. शोध में पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में (जहां कम शिक्षित परिवार थे) परिवार का आकार बड़ा था, जबकि शहरी क्षेत्रों में परिवार का आकार छोटा था. शबा एम. शेख और टॉम लूनी का दक्षिण एशिया की महिलाओं पर किया गया शोध भी ये बताता है कि शिक्षित महिलाओं में प्रजनन दर कम है.

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एक अन्य कारण ये है कि शिक्षित महिलाओं में बच्चा पैदा करने या परिवार का आकार तय करने के बारे में फैसला लेने की क्षमता बढ़ जाती है. लेकिन क्या ये बात भारतीय संदर्भ में भी सही है? क्या भारतीय परिवारों में कितने बच्चे करने हैं, नहीं करने है, परिवार का साइज कितना हो जैसे मुद्दों पर शिक्षित महिलाएं भी फैसला कर पाती हैं?

मान लीजिए किसी कपल को पहली बेटी हुई है, और वो महिला दूसरा बच्चा नहीं करना चाहती है तो क्या परिवार या पति उसके इस फैसले को मानेंगे? क्योंकि भारतीय समाज में माना जाता है कि वंश चलाने के लिए एक बेटा होना तो बहुत जरूरी है. साथ ही परिवार की विरासत और जायदाद भी बेटे को ही जाए, ऐसी लोक और धार्मिक मान्यताएं हैं.

एक आंकड़ा इस बारे में इकट्ठा किया जाना चाहिए कि ऐसे कितने परिवार हैं, जिनकी पहली संतान लड़की है और उसके बाद उन्होंने बच्चा नहीं किया. ये आंकड़ा हमारे देश की सामाजिक सच्चाई के संदर्भ में जनसंख्या वृद्धि दर के सवाल को समझने में मदद करेगा. क्योंकि इस सवाल को समझे बगैर अगर जनसंख्या वृद्धि दर को रोकने की कोई नीति बनी और उसमें सख्ती का पहलू रहा तो आखिरकार ये कन्या भ्रूण हत्या को ही बढ़ावा देगा.
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मिसाल के तौर पर अगर किसी कपल का पहला बच्चा लड़की है और दो के बाद बच्चा पैदा न करने का प्रलोभन या दबाव है, तो ये संभव है कि वह दूसरे बच्चे के तौर पर एक लड़का चाहेगा और इसके लिए सारे उपाय करेगा. हालांकि ये बात पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती और इसके लिए तथ्य जुटाए जाने की जरूरत है.
सेंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 22 प्रदेशों (जिनका डेटा उपलब्ध हुआ) में से 13 प्रदेशों की जनसंख्या घट रही है. इन प्रदेशों में प्रजनन दर, रिप्लेसमेंट रेट (यानी जब जनसंख्या न घटती है, न बढ़ती है) से नीचे आ गई है. रिप्लेसमेंट रेट 2.1 है, लेकिन भारत जैसे देशों के मामले में इसे 2.2 माना जाता है क्योंकि यहां शिशु मृत्यु दर ज्यादा है. दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में प्रजनन दर सबसे कम 1.5 है, उसके बाद केरल और तमिलनाडु जैसे राज्य आते है जिनकी फर्टीलिटी रेट 1.6 है जबकि सबसे ज्यादा फर्टीलिटी रेट बिहार और असम जैसे राज्यों की है जो कि 3.2 है.
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अगर पिछले सालों का आंकड़ा देखा जाए तो 1950 में भारत में फर्टिलिटी रेट 5.9 थी, यानी एक महिला लगभग 6 बच्चों को जन्म दे रही थी, 1971 में ये 5.2 पर आई और अब 2018 में घटकर 2.2 पर आ गई. यानी भारत में जनसंख्या विकास दर बिना किसी सख्ती के अपने आप नियंत्रित हो रही है.

जब महिलाओं में एजुकेशन की बात आई तो देखा गया कि शिक्षित महिलाओं में टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 और अशिक्षित महिलाओं में 3 है.

इस रिपोर्ट में ये भी सामने आया कि ग्रामीण क्षेत्रों में फर्टिलिटी रेट ज्यादा है. भारत के आंकड़े भी साफ बताते है कि महिलाओं में शिक्षा के स्तर के बढ़ने के साथ फर्टिलिटी रेट में कमी आई है.

कुल मिलाकर, जो तथ्य या शोध सामने आए हैं, उससे ये निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अगर महिलाएं शिक्षित हों, वे कॉन्ट्रासेप्टिव उपायों के प्रति जागरूक हो और स्वास्थ्य सेवाएं इतनी दुरुस्त हों कि बच्चों के बचपन में ही मर जाने की आशंका कम हो (यानि इंफेंट और चाइल्ड मोर्टेलिटी रेट कम हो) तो जनसंख्या वृद्धि दर अपने आप कम हो जाएगी.

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