दो महीने पहले ही तो ईद (Eid) गई थी अब फिर ईद (Eid al Adha 2023) आ गई? साल में ईद कितनी बार आती है, अब इन दोनों ईद में क्या फर्क होता है? कुछ ऐसे ही सवाल आपके मन में भी आते होंगे. चलिए इन सभी सवाल के जवाब आपको देने की कोशिश करते हैं.
दरअसल, दुनिया-भर के मुसलमान (muslims) साल में दो ईद मनाते हैं. एक ईद-उल-फित्र और दूसरा ईद-उल-अजहा. और दोनों ईद में फर्क होता है. ईद का शाब्दिक अर्थ दावत या त्यौहार (feast or festival) है. इस्लाम में त्यौहार इस्लामी कैलेंडर (lunar calendar) पर आधारित होते हैं, जो कि ग्रेगोरियन कैलेंडर Gregorian calendar से लगभग 11 दिन छोटा होता है. जिसे दुनिया में अधिकांश लोग इस्तेमाल करते हैं. इसलिए ही ईद की तारीख हर साल 10-11 दिन पाछे होती रहती है .
ईद-उल-फित्र जिसे कई लोग 'मीठी' ईद के नाम से जानते हैं. इस्लामी कैलेंडर के 10वें महीने /यानी शव्वाल के महीने में मनाई जाती है जोकि रमजान के महीने के ठीक बाद आता है. ईद-उल-अजहा जिसे एशियाई देशों में बकरीद भी बोलते हैं, इस्लामी कैलेंडर के आखरी महीनें दुल-हिज्जा (Dhu-al-Hijjah) के 10वें दिन (अगले 3 दिन तक) मनाई जाती है.
आइये इनमें फर्क जानतें हैं
ईद-उल-फित्र
ईद-उल-फित्र रमजान के महीने में रोजा (व्रत) के बाद मनाया जाता है. इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक इंसान की हर अजीज चीज उसे उसके रब से ज्यादा अजीज नहीं हो सकती इसलिए ही इस्लाम में त्याग की अलग अहमियत मानी गई है. रमजान के पूरे महीने मुसलमान रोजे रखते है और ईबादत करते हैं और हर वो चीज छोड़ने की कोशिश करते है जो इस्लाम में गलत बताई गई हैं. इस्लाम की पवित्र किताब कुरान भी इसी महीने में नाजिल (revealed) हुआ था.
दारुल उलूम नदवतुल उलमा (Darul Uloom Nadwatul Ulama) से मौलवियत और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) से आगे की पढ़ाई करने वाले चौधरी अदनान बताते हैं, "यह (ईद-उल-फित्र) रमजान में ईबादत और रोजे रखने के बाद मुसलमानों को तोहफे में मिली है."
इस ईद में मुसलमान ईद की नमाज पढ़ने, नए कपड़े पहनने, एक दूसरे से गले मिलने के अलावा अपने घरों में तरह-तरह के पकवान बानातें हैं.
क्या 'मीठी' ईद (ईद-उल-फित्र) पर सिर्फ मीठी (Sweet) पकवान ही बनतें हैं ?
ऐसा नहीं है, 'मीठी' ईद पर हर तरह की पकवान बनाए जाते हैं, जैसे- नमकीन पकवान में दही भल्ले, छोले, कचोड़ी. नॉनवेज में बिरयानी, कौरमा, कबाब और हलीम आदी. मीठे में सिवाइयें, शीर कौरमा, फिरनी, कस्टर्ड और शीरमाल जैसे डिश बनाते हैं.
ईद-उल-अजहा (बकरीद)
ईद-उल-अजहा जिसका अनुवाद बलिदान (feast of the sacrifice) का त्यौहार है. यह ईद पैगंबर इब्राहीम के बलिदान की याद में मनाई जाती है. यह ईद दुल-हिज्जा (Dhu-al-Hijjah) के 10वें दिन मनाई जाती है. दुल-हिज्जा के महीनें में ही हज भी होता है. इस महीने की 10, 11 और 12 तारीख को मुसलमान हलाल जानवर की कुर्बानी देते हैं.
पैगंबर इब्राहीम को इसाई (Christianity) और यहूदी (Jews) धर्म में अब्राहम के नाम से जाना जाता हैं.
इस्लामिक इतिहास के मुताबिक, पैगंबर इब्राहीम को उनके बेटा हजरत इस्माइल बहुत अजीज थे, जैसे आपको पहले हम बता चुके हैं कि इस्लाम में त्याग की बड़ी अहमियत मानी गई है और मुसलमान के लिए कोई चीज रब से ज्यादा अजीज नही हो सकती.
इस्लाम के जानकार बतातें हैं एक दिन पैगंबर इब्राहीम ने ख्वाब में देखा के अल्लाह ने उनसे उनकी सबसे अजीज चीज की कुर्बानी मांगी हैं. अल्लाह के हुक्म पर हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने सबसे प्यारे और अजीज बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम को कुर्बान करने का फैसला किया. हजरत इब्राहीम ने अपने बेटे को भी अपने ख्वाब के बारे में बताया और फिर बेटे ने भी अल्लाह के हुक्म के लिए हामी भर दी.
हजरत इब्राहीम ने अपने बेटे पर छुरी चलाने से पहले अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली ताकी बेटे की कुर्बानी के वक्त हाथ ना कांपे और बेटे का प्यार ना बीच में आ जाए.
जैसे ही उन्होंने गर्दन पर छुरी चलानी चाहीं तो छुरी नहीं चली, दोबारा प्रयास किया गया तब छुरी चल गई और कुर्बानी भी हो गई मगर जब आंख पर लगी पट्टी खोलकर देखा तो उनके बेटे की जगह हजरत जिब्रील (फरिश्तें) द्वारा जन्नती दुम्बा (lamb) लाकर लिटा दिया गया था.
दरअसल अल्लाह ताला हजरत इब्राहिम अलैहिस-सलाम का इम्तिहान लेना चाह रहे थे कि क्या अल्लाह का हुक्म वो मानते हैं या नहीं. हजरत इब्राहिम इस इम्तिहान में पास हो गए हो गए और अल्लाह को ये अमल बहुत पसंद आया.
इसी को याद करते हुए दुनियां भर के मुसलमान (जो हलाल जानवर खरीदने की हैसियत रखतें हैं) हर साल हलाल जानवर की कुर्बानी करते हैं. और इसके गोश्त के तीन हिस्से करते हैं एक हिस्सा गरीबों में बांटा जाता है दूसरा रिश्तेदारों-दोस्तों में और एक हिस्सा अपने परिवार के लिए रखतें हैं.
इस्लामिक स्कॉलर चौधरी अदनान बतातें हैं कि पैगंबर मुहम्मद जोकि इस्लाम में आखरी नबी थे, उनसे पहले से ये ईद मनाई जा रही है. पैगंबर मुहम्मद से पहले 'दीन-ए-हनीफ' को मानने वाले लोग इस ईद को पैगंबर इब्राहीम के बलिदान की याद में मानाते थे.
दीन-ए-हनीफ का मतलब "सीधा धर्म" या "सीधा पथ" है. यह शब्द कुरान-ए-करीम में भी प्रयोग हुआ है. पैगंबर मुहम्मद से पुराने नबीयों के धर्म को हनीफ धर्म कहा गया है.
क्या बकरा ईद (ईद-उल-अजहा) पर सिर्फ नॉन-वेज पकवान ही बनतें हैं
ऐसा बिलकुल नहीं है, हां मुख्य पकवान इस ईद के नॉन-वेज होते हैं, लेकिन इस ईद पर भी सभी तरह के पकवान बनाएं जातें हैं.
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