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इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता के खिलाफ: चुनाव आयोग

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों की फंडिंग की पारदर्शिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.

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इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा हासिल करने और राजनीतिक दलों की फंडिंग की पारदर्शिता को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. केंद्र सरकार के रुख पर विरोध जताते हुए चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम से राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता पर गंभीर असर पड़ेगा.

आयेाग ने कहा कि ‘फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) 2010’ कानून में बदलाव से राजनीतिक दल बिना जांच वाला विदेशी चंदा हासिल करेंगे, जिससे भारतीय नीतियां विदेशी कंपनियों से प्रभावित हो सकती हैं.

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सुप्रीम कोर्ट में असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की ओर से याचिका दायर कर इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती दी गई है, जिसके तहत राजनीतिक पार्टियों को फंडिंग की जाती है. इस याचिका में कहा गया है कि इस बॉन्ड को बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट ने खरीदा है और पार्टियों को दिया है, ये लोग इसके जरिये नीतिगत फैसले को प्रभावित कर सकते हैं.

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आयोग ने पहले भी जताई थी असहमति

चुनाव आयोग की ओर से दायर हलफनाफे के मुताबिक आयोग ने मई 2017 में फाइनेंस एक्ट के पास होने के तुरंत बाद ही इसपर अपनी असहमति जताई थी. इस फाइनेंस एक्ट ने ही कानून में संशोधन कर इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के लिए आधार तैयार किया था. 26 मई 2017 को कानून मंत्रालय को भेजे गए एक पत्र में चुनाव आयोग ने इस मामले में अपनी असहमति दर्ज की थी.
2017 में पास हुए फाइनेंस एक्ट ने जो कानून संशोधन किया था, उसके तहत राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड से प्राप्त चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को देनी जरूरी नहीं रह गई थी. चुनाव आयोग ने उस समय इस संशोधन को पॉलिटिकल फंडिंग की पारदर्शिता को लेकर 'बहुत ही पीछे जाने वाला कदम' बताया था और तत्काल प्रभाव से इसे रद्द करने की मांग की थी.

चुनाव आयोग ने कहा था कि अगर चंदे के स्रोत को जाहिर नहीं किया जाएगा तो यह पता लगाना नामुमकिन होगा कि चंदा सरकारी और विदेशी स्रोतों से आया है. सरकारी और विदेशी स्रोतों से चंदा लेना लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के सेक्शन 29(B) के तहत गैर कानूनी है.  

बता दें कि चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने पिछले साल इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की थी.कानून में बदलाव से इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए गुमनाम चंदे की मंजूरी मिलती है, जिसे बैंक से 1000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक के मूल्यवर्ग में खरीदा जा सकता है और किसी राजनीतिक पार्टी को दिया जा सकता है. इस बॉन्ड को नकदी में भी एक्सचेंज किया सकता है. इनमें चंदा देने वाले का नाम नहीं आता है, और इनमें टैक्स भी नहीं लगता. सरकार ने दावा किया है कि कानून में बदलाव से पॉलिटिकल फंडिंग साफ-सुथरे होंगे और उनमें पारदर्शिता आएगी.

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 2 अप्रैल को होगी.

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