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Electoral Bonds पर SBI ने मांगा समय, राहुल बोले-"भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश"

Electoral Bonds: भारतीय स्टेट बैंक ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट से क्यों समय मांगा है?

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भारत
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भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) के बारे में जानकारी देने की समय सीमा 30 जून तक बढ़ाने का अनुरोध किया है. अब बैंक के सुप्रीम कोर्ट से अधिक समय मांगे जाने के बाद विपक्ष ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है और आरोप लगाया कि बीजेपी लेनदेन को छिपाने के लिए हमारे देश के सबसे बड़े बैंक को ढाल के रूप में उपयोग कर रही है. चलिए जानते हैं कि SBI ने क्यों सुप्रीम कोर्ट से समय मांगा है और अन्य नेताओं के क्या रिएक्शन हैं?

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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने एक ऐतिहासिक फैसले में इलेक्ट्रोरल बॉन्ड स्कीम को रद्द कर दिया था और SBI को 6 मार्च तक चुनाव आयोग (EC) को जानकारी देने को कहा था.

सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद चुनावी बांड स्कीम को इस आधार पर समाप्त कर दिया कि यह नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि चुनावी बांड योजना असंवैधानिक और मनमानी है और इससे राजनीतिक दलों और दानदाताओं के बीच दान के बदले लाभ की भावना हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने SBI को आदेश दिया था कि वह इन बॉन्डों को जारी करना बंद कर दे और इस माध्यम से किए गए दान का विवरण चुनाव आयोग को दे. इसके बाद चुनाव आयोग से कहा गया कि वह इस जानकारी को 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे.

SBI ने सुप्रीम कोर्ट से क्या कहा?

SBI ने इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 4 मार्च को रिट याचिका डाली, जिसमें बैंक ने कोर्ट में कहा कि वह अदालत के निर्देशों का "पूरी तरह से पालन करने करना चाहता है लेकिन डेटा को डिकोड करना और इसके लिए तय की गई समय सीमा के साथ कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां हैं."

बीबीसी के अनुसार, बैंक ने इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान छुपाने के लिए किए गए उपायों का हवाला दिया. एसबीआई ने कहा "इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान छुपाने के लिए कड़े उपायों का पालन हुआ है. अब इसके डोनर और उन्होंने कितने का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा है, इस जानकारी को मैच करना एक मुश्किल प्रोसेस है. इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदारों की पहचान को गोपनीय रखने के लिए बैंक ने बॉन्ड कि बिक्री और इसे भुनाने के लिए एक विस्तृत प्रकिया तैयार की है, जो बैंक की देशभर की 29 अधिकृत ब्रांच में फॉलो की जाती है.”

“हर पॉलिटिकल पार्टी को 29 अधिकृत शाखाओं में से किसी में एक में अकाउंट बनाए रखना जरूरी था. केवल इसी अकाउंट में उस पार्टी को मिले इलेक्टोरल बॉन्ड जमा किये जा सकते थे और भुनाये जा सकते थे.

बैंक ने कहा कि हर जगह से जानकारी प्राप्त करना और एक जगह की जानकारी को दूसरे जगह से मिलाने की प्रक्रिया एक समय लेने वाली प्रक्रिया होगी. जानकारियां अगल-अलग जगहों पर स्टोर की गई हैं. ऐसे में उन्होंने कोर्ट से और वक्त की मांग की.

"भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश"

राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए चुनावी बॉन्ड के विवरण का खुलासा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अधिक समय मांगे जाने के बाद विपक्ष ने सत्तारूढ़ बीजेपी और SBI पर निशाना साधा है.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एसबीआई के समय मांगे जाने पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने लिखा-

"मोदी सरकार चुनावी बांड के माध्यम से अपने संदिग्ध लेनदेन को छिपाने के लिए हमारे देश के सबसे बड़े बैंक को ढाल के रूप में उपयोग कर रही है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड की मोदी सरकार की 'काला धन रूपांतरण' योजना को "असंवैधानिक", "आरटीआई का उल्लंघन" और "अवैध" करार देते हुए रद्द कर दिया था और एसबीआई को 6 मार्च तक दाता विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहा था लेकिन बीजेपी चाहती है कि इसे लोकसभा चुनाव के बाद किया जाए. इस लोकसभा का कार्यकाल 16 जून को खत्म होगा और एसबीआई 30 जून तक डेटा साझा करना चाहता है."

इसको लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी 4 मार्च को ट्वीट कर बीजेपी सरकार पर निशाना साधा था. उन्होंने लिखा- "नरेंद्र मोदी ने ‘चंदे के धंधे’ को छिपाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉण्ड का सच जानना देशवासियों का हक है, तब SBI क्यों चाहता है कि चुनाव से पहले यह जानकारी सार्वजनिक न हो पाए?

एक क्लिक पर निकाली जा सकने वाली जानकारी के लिए 30 जून तक का समय मांगना बताता है कि दाल में कुछ काला नहीं है, पूरी दाल ही काली है."

राहुल गांधी ने आगे कहा- "देश की हर स्वतंत्र संस्था ‘मोडानी परिवार’ बन कर उनके भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने में लगी है. चुनाव से पहले मोदी के ‘असली चेहरे’ को छिपाने का यह ‘अंतिम प्रयास’ है."

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