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उत्तर प्रदेश ही नहीं, इन राज्यों में भी है इंसेफेलाइटिस का असर

यूपी में इंसेफेलाइटिस से इस साल अबतक हो चुकी हैं 155 मौतें

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उत्तर प्रदेश के गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में संदिग्ध हालात में एक के बाद एक 60 बच्चों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया है. लेकिन उत्तर प्रदेश समेत देश के 14 राज्यों में इस बीमारी का असर है और रोकथाम के बजाय इलाज पर ध्यान देने की वजह से यह बीमारी बरकरार है.

केंद्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनवीबीडीसीपी) निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार समेत 14 राज्यों में इंसेफेलाइटिस का प्रभाव है, लेकिन पश्चिम बंगाल, असम, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इस बीमारी का प्रकोप काफी ज्यादा है. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संत कबीरनगर, देवरिया और मउ समेत 12 जिले इससे प्रभावित हैं.

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गोरखपुर समेत पूर्वांचल में दिमागी बुखार और जलजनित बीमारी इंटेरो वायरल की रोकथाम के लिये काम कर रहे डॉक्टर आर. एन. सिंह के मुताबिक,

असम और बिहार के कुछ जिलों के हालात गोरखपुर से कम बुरे नहीं हैं. बाकी राज्यों में इंसेफेलाइटिस की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा दबा दिया जाता है इसलिए गोरखपुर समेत पूर्वांचल में इस बीमारी की मौजूदगी की गूंज सबसे ज्यादा सुनाई देती है.

यूपी में इस साल अबतक हो चुकी हैं 155 मौतें

एनवीबीडीसीपी के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की वजह से इस साल अब तक कुल 155 लोगों की मौत हुई है. आंकड़ों की मानें तो यूपी के मुकाबले असम में इस साल जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की वजह से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. असम में इस साल मरने वालों की संख्या 195 तक पहुंच चुकी है. वहीं पश्चिम बंगाल में इस साल अब तक 91 लोग मर चुके हैं.

यूपी में  इंसेफेलाइटिस से इस साल अबतक हो चुकी हैं 155 मौतें

असम में भी है दिमागी बुखार का भयंकर प्रकोप

उत्तर प्रदेश में साल 2010 में इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से 553 मरीजों, 2011 में 606, साल 2012 में 580, साल 2013 में 656, साल 2014 में 661, साल 2015 में 521 और साल 2016 में 694 रोगियों की मौत हुई थी. वहीं असम में इन सालों में क्रमश: 157, 363, 329, 406, 525, 395 तथा 279 मरीजों की मौत हुई थी. इस साल यह तादाद 195 तक पहुंच चुकी है.

इलाज से ज्यादा, बचाव जरूरी

डॉक्टर सिंह ने कहा कि दरअसल, सरकारों को पता ही नहीं है कि उन्हें करना क्या है. शासकीय और सामाजिक प्रयासों से टीकाकरण के जरिये जापानी इंसेफेलाइटिस के मामलों में तो कमी लायी जा चुकी है लेकिन जलजनित रोग 'इंटेरो वायरल' को रोकने के लिये कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है. इस समय सबसे ज्यादा मौतें इंटेरो वायरल की वजह से ही हो रही हैं.

जलजनित रोगों को रोकने के लिये केंद्र की पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में बना राष्ट्रीय कार्यक्रम अभी तक प्रभावी तरीके से लागू नहीं हुआ है. सरकार चाहे किसी की भी हो, सबके सब केवल इलाज पर काम कर रहे हैं, जबकि इस बीमारी का कोई इलाज ही नहीं है. यह बीमारी इसलिए बनी हुई है. जब तक इसकी रोकथाम को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक कुछ नहीं होगा.
डॉक्टर आर. एन. सिंह

दिमागी बुखार से बचने के लिए अपनाएं ये उपाय

डाक्टर सिंह ने कहा कि इसकी रोकथाम के लिये 'होलिया मॉडल ऑफ वाटर प्यूरीफिकेशन ' का प्रयोग किया जाना चाहिये. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने भी इस पर मुहर लगाई है. इस प्रक्रिया में पीने के पानी को करीब छह घंटे तक धूप में रखा जाता है, जिससे उसमें हानिकारक विषाणु मर जाते हैं.

पूर्वांचल में ही दिमागी बुखार का प्रकोप फैलने के कारण के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने बताया कि इस इलाके में सबसे ज्यादा अशिक्षा और पिछड़ापन है. लोगों में साफ-सफाई की आदत नहीं है. साथ ही जागरुकता की कमी की वजह से यह इलाका इन संचारी रोगों का गढ़ बना हुआ है.

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तीन दशक में 50 हजार हुए इंसेफेलाइटिस का शिकार

बता दें कि पिछले तीन दशक के दौरान पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस की वजह से 50 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इस साल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में अब तक इस बीमारी से कुल 139 बच्चों की मौत हुई है. पूरे राज्य में यह आंकड़ा 155 तक पहुंच चुका है. पिछले साल 641 और साल 2015 में 491 बच्चों की मौत हुई थी.

(इनपुटः भाषा)

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