देश में कई पार्टियों ने एक बार फिर चुनावों में ईवीएम से छेड़छाड़ का मुद्दा उठाया है. ईवीएम में छेड़छाड़ का मुद्दा खास हैं क्योंकि इससे जनभावनाएं और लोकतांत्रिक अधिकार जुड़े हुए हैं. ऐसे में ईवीएम के विरोध में उठती आवाजों ने आम लोगों में भी ये डर बना दिया है कि क्या सच में ईवीएम से छेड़खानी हो सकती है?
दुनिया के कई देशों ने ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर बैन लगा रखा है. इसमें जर्मनी, नीदरलैंड और अमेरिका जैसे देश भी शामिल हैं.
द हिंदू में लिखे गए बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी के एक लेख के मुताबिक,
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल कई देशों ने शुरू किया था. लेकिन सिक्योरिटी और एक्यूरेसी को लेकर इन मशीनों पर सवाल उठने लगे.
- साल 2006, में ईवीएम का इस्तेमाल करने वाले सबसे पुराने देशों में शामिल नीदरलैंड ने इस पर बैन लगा दिया.
- साल 2009 में जर्मनी की सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम को असंवैधानिक बताते हुए और पारदर्शिता को संवैधानिक अधिकार बताते हुए ईवीएम पर बैन लगा दिया.
- नतीजों को बदले जाने की आशंका को लेकर नीदरलैंड और इटली ने भी ईवीएम पर बैन लगा दिया था.
- वहीं इंग्लैंड और फ्रांस में कभी भी ईवीएम का इस्तेमाल नहीं हुआ है.
- अमेरिका जैसे टेक फ्रेंडली देश के कई राज्यों में भी बिना पेपर ट्रोल वाली ईवीएम मशीन पर बैन है.
देश में इस्तेमाल हो रहे ईवीएम में क्या है खास ?
ईवीएम के समर्थन में तर्क दिया जाता है कि भारत के चुनावों में इस्तेमाल हो रहे EVM’s में इंटरनेट, ब्लूटूथ के जरिए छेड़छाड़ संभव नहीं है. इसको दूसरी मशीनों से अलग रखा जाता है. इन मशीनों में अब VVPAT का भी इंतजाम किया गया है.
बता दें कि ईवीएम पर उठ रहे इन सवालों से पहले भी कई बार देश में ईवीएम पर विवाद हो चुका है. सत्ताधारी बीजेपी के ही वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने साल 2009 में ईवीएम पर सवाल उठाया था. हालांकि, स्वामी तब बीजेपी में नहीं थे और देश में कांग्रेस की सरकार थी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)