राम जेठमलानी बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से भारत आए थे. यहां उन्होंने कानून के क्षेत्र में वो मुकाम हासिल किया, जिसकी ख्वाहिश हर वकील को होती है. रविवार को 95 साल की उम्र में कानून के सबसे बड़े जानकारों में शामिल जेठमलानी का निधन हो गया.
कराची में शुरू की थी वकालत...
गुलाम भारत के सिंध प्रांत में जेठमलानी ने अपनी वकालत शुरू की थी. उन्होंने कराची में मशहूर पाकिस्तानी वकील और राजनेता ए के बरोही के साथ मिलकर लॉ फर्म भी बनाई.
बरोही भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त भी रहे. पाकिस्तान के एटॉर्नी जनरल भी बने. उन्हें जिया उल हक का करीबी माना जाता था. उस वक्त की पाकिस्तानी सरकार में वे कानून मंत्री थे.
फरवरी 1948 में जब दंगों की स्थिति बदतर हो गई, तो ए के बरोही ने राम जेठमलानी को पाकिस्तान छोड़ने की सलाह दी. इसे जेठमलानी ने मान लिया और वे भारत आ गए.
सिर्फ 17 साल में खत्म की थी कानूनी पढ़ाई
अविभाजित भारत में सिंध प्रांत के शिकारपुर में 14 सितंबर 1923 को पैदा हुए राम जेठमलानी शुरू से ही लिखने-पढ़ने में तेज थे. उन्हें स्कूल में डबल प्रोमोशन मिले. मतलब एक साल में ही कई क्लास पास कीं.
13 साल के होते-होत जेठमलानी मैट्रिक पास कर चुके थे. 17 साल की उम्र तक वे एससी शाहनी लॉ कॉलेज, कराची से कानून की डिग्री ले चुके थे. उनका कॉलेज बॉम्बे यूनिवर्सिटी के तहत आता था.
जेठमलानी ने जब वकालत की पढ़ाई पूरी की, तब भारत में वकील बनने की न्यूनतम उम्र सीमा 21 साल थी. लेकिन जेठमलानी के लिए खास प्रावधान किया गया और वे महज 18 साल की उम्र में वकील बन गए. जेठमलानी ने सिंध में जस्टिस गोडफ्रे डेविस की अदालत में अपना पहला केस लड़ा था.
ठीक इसी वक्त उनकी पहली शादी दुर्गा से हुई. 1947 में बंटवारे के वक्त 24 साल के जेठमलानी ने रत्ना साहनी से दूसरी शादी की.
नानावटी केस से राम जेठमलानी को पहचान मिली. इसमें उनके साथ यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ भी थे. यही वाय वी चंद्रचूड़ बाद में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने.
जेठमलानी को कई लोग आम बोलचाल की भाषा में स्मगलर्स का वकील भी कहते थे. तब भी जेठमलानी का कहना रहता था कि वे केस लड़कर अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं.
राजनीति में जेठमलानी
जेठमलानी ने उल्हासनगर से जनसंघ और शिवसेना के समर्थन से अपना पहला चुनाव निर्दलीय लड़ा था. इसमें उन्हें हार मिली थी.
1975-77 में इमरजेंसी के दौरान वे बार एसोसिएशन के अध्यक्ष थे. इंदिरा गांधी ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी निकाला था. लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने 300 वकीलों के विरोध के बाद इसे खारिज कर दिया. इस मामले में राम जेठमलानी के वकील थे मशहूर संविधान विशेषज्ञ ननी पालकीवाला.
1977 में राम जेठमलानी ने कांग्रेस कैंडिडेट सुनील दत्त को मुंबई नॉर्थ-वेस्ट से चुनाव हराया. 1980 में दोबारा उन्होंने सुनील दत्त को ही मात दी.पर 1985 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सुनील दत्त, जेठमलानी को हराने में कामयाब रहे. 1988 में वे राज्यसभा सांसद चुने गए.
1996 में जब बीजेपी सरकार 10 दिन के लिए सत्ता में आई तो उन्हें कानून मंत्री बनाया गया. 1998 की वाजपेयी सरकार में जेठमलानी को शहरी विकास मंत्रालय दिया गया. पर बाद में उन्हें दोबारा कानून मंत्री बना दिया गया.
इस दौरान राम जेठमलानी का मुख्य न्यायाधीश आदर्श सेन आनंद और अटॉर्नी जनरल सोली सोरबजी के साथ विवाद हो गया. इसके चलते वाजपेयी ने उनसे मंत्रालय वापस छोड़ने को कह दिया.
वाजपेयी से उनके खुलेतौर पर विवाद रहे. 2004 में उन्होंने लखनऊ से वाजपेयी के खिलाफ चुनाव भी लड़ा, हालांकि वे हार गए. इस चुनाव में वे निर्दलीय थे, लेकिन कांग्रेस ने कैंडिडेट खड़ा न करके उन्हें समर्थन दिया था. बाद में जेठमलानी वापस बीजेपी में आ गए.
बीजेपी से निष्कासन और पार्टी पर मानहानि का मुकदमा
2012 में उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी को लेटर लिखा. इसमें उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी की चुप्पी पर सवाल उठाए. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि वे अपनी अनदेखी से आहत थे.
इस लेटर के बाद उन्हें बीजेपी से निकाल दिया गया. राम जेठमलानी ने बीजेपी पर 50 लाख की मानहानि का मुकदमा कर दिया. जेठमलानी के मुताबिक, पार्टी ने यह कहकर उनका अपमान किया था कि ‘वे बीजेपी में रहने के लिए योग्य आदमी नहीं हैं.’
जेठमलानी ने अपने वकालत के करियर में कई हाई प्रोफाइल केसों में पैरवी की. इनमें हर्षद मेहता और केतन पारेख के बाजार घोटाले में शामिल लोग भी थे. जेठमलानी ने हवाला स्कैम में लालकृष्ण आडवाणी का केस भी लड़ा. राम जेठमलानी की उस वक्त भी बहुत आलोचना हुई, जब उन्होंने जेसिका लाल हत्याकांड में आरोपी मनु शर्मा का केस लिया. हालांकि वे मनु को बरी करवाने में कामयाब नहीं रहे.
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