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Exclusive: कठुआ मामले पर फैसले से मिले इन अहम सवालों के जवाब

कठुआ रेप और हत्या मामले में 400 से ज्यादा पन्नों में आए फैसले ने कई सवालों के जवाब दे दिये हैं

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कठुआ रेप और हत्या मामले में 400 से ज्यादा पन्नों में आए फैसले ने कई सवालों के जवाब दे दिये. कई शक-शुबहों पर विराम लगे, जिन्होंने पिछले साल देशभर में डिबेट को जन्म दिया था.

जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में 8 साल की बच्ची के अपहरण, गैंगरेप और हत्या की वारदात के लिए 6 लोगों को दोषी करार दिया गया. ये वारदात पिछले साल जनवरी में गुज्जर बकरवाल समुदाय की एक बच्ची के साथ हुई थी. पठानकोट अदालत के जज तेजविन्दर सिंह ने इस मामले में फैसला सुनाया. जम्मू में इस मामले को लेकर भारी तनाव था, जिसके बाद ये मामला पठानकोट अदालत में शिफ्ट कर दिया गया था.

पेश हैं इस मामले के मुख्य बिन्दु, जिनका द क्विंट ने आकलन किया है :

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1. गुज्जर बकरवाल समुदाय की बच्ची को अगवा कर देवस्थान में कैद करने पर तर्क

जनवरी 2018 में ये मामला सामने आने के बाद से ही आरोपियों के समर्थन में तर्क दिया जा रहा था कि किसी को भी हफ्ते भर एक ऐसे देवस्थान में कैसे बंदकर रखा जा सकता है, जहां हर रोज अलग-अलग गांवों से आने वाले भक्तों का तांता लगा रहता हो. वो भी इकलौते कमरे में, जिसमें दो दरवाजे और तीन खिड़कियां हों.

कोर्ट के फैसले के मुताबिक:

बचाव पक्ष के वकील कोई भी दस्तावेज, तस्वीर, वीडियो, पैम्फलेट या दान की रसीदी किताब प्रस्तुत करने में नाकाम रहे, जिनसे साबित हो सके कि देवस्थान में पूजा के लिए भक्तों का नियमित आना-जाना रहा हो. इस बात के भी पुख्ता सबूत नहीं हैं कि जनवरी 2018 में वारदात के दौरान देवस्थान में लोहड़ी का त्योहार मनाया गया हो. इन तथ्यों के आधार पर बचाव पक्ष के चश्मदीदों पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

पेश हैं एक चश्मदीद के साथ सवाल-जवाब, जिसका दावा था कि देवस्थान का नियमित इस्तेमाल होता है और जहां लोहड़ी का त्योहार मनाया गया था. इन दावों के समर्थन में कोई पुख्ता सबूत नहीं पेश किये गए:

क्या आप कोर्ट में ऐसा कोई पोस्टर या पैम्फलेट पेश कर सकते हैं, जिनके आधार पर तय हो कि 13 जनवरी 2017 से 15 जनवरी 2018 के बीच देवस्थान में लोहड़ी समेत कोई कार्यक्रम आयोजित किए गए हों?

नहीं, मैं ऐसा कोई पोस्टर या पैम्फलेट नहीं पेश कर सकता, जो ये बता सकें कि 13 जनवरी 2017 से 15 जनवरी 2018 के बीच देवस्थान में लोहड़ी समेत कोई आयोजन किया गया हो.

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क्या आप दान की रसीद या कोई दूसरा दस्तावेज प्रस्तुत कर सकते हैं, जिनके आधार पर तय हो कि 13 जनवरी 2018 को देवस्थान पर वाकई लोहड़ी मनाई गई थी?

जी नहीं, मैं ऐसा कोई दस्तावेज या रसीद पेश नहीं कर सकता, जो 13 जनवरी को लोहड़ी मनाने की तस्दीक करें.

क्या आप कोई तस्वीर या वीडियो पेश कर सकते हैं, जो देवस्थान में वास्तव में लोहड़ी मनाना साबित करता हो?

जी नहीं, मैं कोर्ट में ऐसी कोई तस्वीर या वीडियो पेश नहीं कर सकता, जो देवस्थान में लोहड़ी मनाने से जुड़ी हो.

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क्या आपको कोर्ट में तस्वीरें या वीडियो पेश करने के लिये वक्त चाहिए, जो देवस्थान में लोहड़ी के आयोजन की तस्दीक करें?

जी नहीं, मुझे कोर्ट में तस्वीरें पेश करने के लिये वक्त की जरूरत नहीं. देवस्थान में लोहड़ी के दौरान कभी कोई वीडियो तैयार नहीं किया गया है.

2. क्या इस वारदात का मकसद गुज्जर बकरवाल समुदाय को भगाना था?

अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि इलाके के स्थानीय निवासी बकरवाल समुदाय को भगाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने साजिश रचकर बकरवाल समुदाय की नाबालिग लड़की के साथ ऐसा कुकर्म किया, जिससे समुदाय में डर जाए और वो मजबूर होकर इलाका छोड़ दें.

बचाव पक्ष ने इस आरोप का विरोध किया. उनका कहना था कि आरोपियों का न तो ऐसा कोई इरादा था और न ही उन्होंने ऐसा गुनाह किया, जिसका उन पर आरोप लगाया गया है.

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फैसला:  ऐसा कुछ भी साबित नहीं हो सका कि इस मामले में आरोपियों पर लगे आरोप गलत हैं. इस इलाके के अतीत से साफ है कि स्थानीय निवासियों और बकरवाल समुदाय के रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं. अभियोजन पक्ष ने पिछले दो सालों में 11 शिकायतें गुम होने के सबूत पेश किये, जिससे स्थानीय निवासियों और बकरवाल समुदाय के बीच लगातार तनावपूर्ण सम्बन्ध साबित होता है. लिहाजा ये कोर्ट मानता है कि इस वारदात के पीछे गंभीर मकसद था.

3. विशाल जंगोत्रा के खिलाफ सभी आरोप खारिज करने के बारे में

6 आरोपियों को दोषी करार दिया गया, जबकि एक को बरी कर दिया गया. ये थे, सांझी राम का बेटा विशाल जंगोत्रा . पुलिस के सामने पेश नैरेटिव के मुताबिक सांझी राम के बेटे विशाल जंगोत्रा मुजफ्फरनगर स्थित अपने कॉलेज से लौटा और उसने * सुश्री 'ए' के साथ रेप किया.

फैसला: पांच गवाहों के बयान और दस्तावेजी सबूत दिखलाते हैं कि आरोपी विशाल जंगोत्रा वारदात के समय कठुआ में मौजूद नहीं था, मसलन परीक्षा की मूल कापी, पासबुक में एंट्री, अटेंडेंस शीट के रिकॉर्ड, सीडी और जी न्यूज के पास उपलब्ध पेनड्राइव. बल्कि वो मुजफ्फरनगर के मीरांपुर में था और अपनी परीक्षा दे रहा था. लिहाजा पाया जाता है कि विशाल इस आरोप में बेगुनाह है.

इन आधारों पर कोर्ट ने उसके मौके पर मौजूद न होने की दलील स्वीकार कर ली और विशाल जंगोत्रा पर लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया.

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4. फांसी की सजा की बजाय उम्रकैद क्यों?

अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि सारे सबूत साफ दिखलाते हैं कि ये गुनाह Rarest of rare cases के वर्ग में आते हैंं. लिहाजा दोषियों को फांसी की सजा देनी चाहिए और उनपर कोई दया नहीं करनी चाहिए.

दूसरी ओर बचाव पक्ष का तर्क था कि ये मामला Rarest of rare मामलों के वर्ग में नहीं आता है. लिहाजा दोषियों को फांसी की सजा न दी जाए, बल्कि उन्हें कानून के मुताबिक उम्रकैद की सजा दी जा सकती है.

फैसला :  मामले की सच्चाई और परिस्थितियों के आधार पर इस कोर्ट पर दोषियों को सजा सुनाने की जिम्मेदारी है.

सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए और खासकर ये देखते हुए कि दोषियों को इससे पहले किसी गुनाह में सजा नहीं मिली है, उनमें सुधार की पूरी गुंजाइश है, सभी तीन दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है. 

सांझी राम, दीपक खजूरिया और परवेश को हत्या का दोषी पाते हुए उम्रकैद और 1 लाख रुपया जुर्माने की सजा और सामूहिक रेप के मामले में 25 साल की कड़ी सजा और 50,000 रुपया जुर्माने की सजा सुनाई जाती है. आनंद दत्ता, तिलक राज और सुरेन्दर वर्मा को सबूत मिटाने का दोषी पाते हुए 5 साल कैद और 50,000 रुपया जुर्माने की सजा सुनाई जाती है.

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