किसानों की ही भाषा में कहें तो 7 महीने का आंदोलन, 7 राउंड की सरकार से बातचीत और नतीजा फिर भी नहीं निकला. तारीख पर तारीख मिल रही है, लेकिन बात जहां से शुरू हुई है वहीं पर खत्म हो जा रही है. दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को 4 जनवरी की बैठक का इंतजार था. इस बैठक में किसान जहां तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े रहें वहीं सरकार की तरफ से संशोधन और सुधार करने की बात की गई लेकिन किसान इस बात पर सहमत नहीं थे.
अब सरकार-किसानों के बीच 8वें राउंड की बातचीत 8 जनवरी को है. इस दिन दोपहर 2 बजे एक बार फिर केंद्र और किसानों के बीच बातचीत होगी. लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी हम आपको बताते हैं कि आगे क्या होने के आसार हैं. इसके लिए हम किसानों और केंद्रीय कृषि मंत्री के बयानों से समझने की कोशिश करते हैं कि कौन किस दिशा में आगे कदम बढ़ा रहा है.
बैठक गतिरोध से शुरू गतिरोध पर खत्म
सबसे पहले बैठक की बात करें तो दोपहर करीब ढ़ाई बजे ये बैठक शुरू हुई. बैठक शुरू होते ही सबसे पहले उन किसानों की याद में 2 मिनट मौन रखा गया, जिन्होंने प्रदर्शन के दौरान अपनी जान गंवाई है. लेकिन इसके बाद बैठक का एक घंटा पूरा होते ही लंच ब्रेक हो गया. बताया गया कि कानूनों को खत्म करने को लेकर दोनों पक्षों में गतिरोध बढ़ गया, जिसे देखते हुए जल्दी लंच ब्रेक ले लिया गया. इसके बाद करीब सवा घंटे से ज्यादा लंच ब्रेक चलता रहा और बैठक दोबारा शुरू होने के आधे घंटे बाद ही इसे खत्म कर दिया गया. यानी साफ है कि केंद्र और किसानों के बीच बात नहीं बनी.
बैठक से बाहर आते ही किसान नेताओं का सामना एक बार फिर मीडिया के कैमरों से हुआ, सवाल वही दागे गए कि आखिर इस बैठक में भी नतीजा क्यों नहीं निकल पाया? किसान नेताओं ने बताया कि सरकार ने कानूनों को खत्म करने की बात नहीं की, जिस पर शाम तक गतिरोध जारी रहा. किसान नेताओं ने कहा कि, सरकार की कोशिश एक बार फिर यही है कि संशोधनों की तरफ किसानों को खींचा जाए. लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है.
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि बातचीत के बाद भी आंदोलन लगातार आगे जारी रहेगा. अब 8 जनवरी को एक बार फिर कानून वापसी को लेकर ही बातचीत शुरू होगी. सभी किसान नेताओं ने एक सुर में कहा है कि कानून वापसी पर किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं होगा.
किसानों की परीक्षा ले रही सरकार- यादव
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष और किसान नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि सरकार बातचीत नहीं, बल्कि किसानों के सब्र की परीक्षा लेना चाह रही है. उन्होंने कहा,
“7 महीने का आंदोलन, 7 राउंड की बातचीत के बाद अब सरकार जानना चाह रही है कि आखिर हम चाहते क्या हैं. सात महीने के बाद अभी सरकार पूछ रही है कि सचमुच आप रद्द ही करवाना चाहते हैं क्या कानून? मतलब कि क्या सरकार को किसानों की भाषा समझ नहीं आ रही है. मुझे तो लगता है कि ये वार्ता समाधान की नहीं है, सरकार परीक्षा ले रही है धैर्य की, संयम की. किसान अभी बारिश-ठंड के बीच प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार हमारी परीक्षा ले रही है. तो अगर ये परीक्षा है तो हम परीक्षा देकर दिखाएंगे.”
कुछ किसान नेताओं ने बैठक के बाद ये भी कहा कि सरकार ने कानून रद्द करने को लेकर सोचने का वक्त मांगा है. इस बयान के बाद ये लगा कि शायद सरकार ने आंदोलन को लेकर कुछ सोचा है. लेकिन ये सिर्फ किसानों की उम्मीदें थीं, जिन्हें अगले ही कुछ पलों में खुद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने चकनाचूर कर दिया. उन्होंने एक बार फिर साफ किया कि कानूनों को खत्म करने की बात दूर-दूर तक नहीं है.
कृषि मंत्री ने किया साफ- कानून खत्म करने पर बात नहीं
केंद्रीय कृषि मंत्री इस बैठक के बाद भी अपने पुराने रुख पर अड़े रहे. जब उनसे सवाल पूछा गया कि क्या बैठक में सरकार की तरफ से कानून वापस लेने की बात हुई है? तो इस पर कृषि मंत्री ने बिना देरी किए जवाब देते हुए कहा कि हमने ऐसी कोई बात नहीं की है. यानी कानून वापसी की बात नहीं हुई है. इसके बाद कृषि मंत्री ने एक बार फिर ये साफ किया कि बिंदुवार विषयों पर ही सरकार चर्चा करने को तैयार है. उन्होंने कहा,
“सरकार ने कानून बनाए हैं तो किसानों के हितों को ध्यान में रखकर ही बनाया है. मोदी जी का नेतृत्व किसानों के प्रति संवेदनशील है. इसीलिए हमारी अपेक्षा है कि यूनियन की तरफ से वो विषय आए, जिस पर परेशानी हो रही है. सरकार उस पर पूरी तरह चर्चा करने को तैयार है.”
‘सरकार तो देशभर के किसानों के लिए प्रतिबद्ध’
सिर्फ इतना ही नहीं, कृषि मंत्री पिछले कई दिनों से जो मेहनत कर रहे हैं, उसकी झलक भी उन्होंने अपने बयान में दिखाई. दरअसल पिछले कई दिनों से देश के उन किसान संगठनों को जुटाया जा रहा है, जो सरकार और उनके कानूनों के समर्थक हैं. साथ ही वही बात कह रहे हैं, जो सरकार कहना चाह रही है. प्रदर्शनकारी किसानों से बैठक के बाद नरेंद्र सिंह तोमर ने इशारों-इशारों में ये बता दिया कि देश के बाकी किसान उनके कानूनों का समर्थन कर रहे हैं. इसीलिए कानूनों को खत्म नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा,
“जब इस तरह के विषय होते हैं तो, चर्चा के कई दौर करने पड़ते हैं. कानूनी पहलुओं को भी ध्यान में रखना पड़ता है. पूरे देश को भी ध्यान में रखना पड़ता है. देश में करोड़ों किसान हैं, उनकी अपनी भावनाएं हैं. कानून को लेकर उनके हित उनसे जुड़े हुए हैं. तो सरकार तो देशभर के किसानों के प्रति प्रतिबद्ध है ना? सरकार सारे देश को ध्यान में रखकर ही कोई फैसला लेगी.”
बैठक के लिए कृषि कानूनों के अलावा एमएसपी भी एक मुद्दा था. जिसे लेकर इस बैठक में कोई खास चर्चा नहीं हुई. किसान नेताओं से सिर्फ कृषि कानूनों को लेकर ही सवाल-जवाब किए गए. अंत में जब एमएसपी की बात आई तो कहा गया कि अब अगली बैठक में ही इस पर चर्चा होगी. यानी एमएसपी की कानूनी गारंटी पर भी बात नहीं बनी.
आगे क्या होगा?
अब किसान पहली बैठक से ही ये कह रह हैं कि वो कानूनों को रद्द करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प मानने को तैयार नहीं हैं, वहीं सरकार इसके बावजूद हर बार कानून में संशोधन की बात कर रही है. साथ ही अब देश की भावनाओं को ध्यान में रखने की भी बात की गई है. यानी सरकार ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है, कुल मिलाकर अगली बैठक में अगर किसान पीछे नहीं हटते हैं तो सरकार फिर से किसान बनाम किसान का कार्ड खेल सकती है. जिसकी एक झलक कृषि मंत्री ने बैठक के बाद दिखाई है. जिससे किसानों पर पूरा दबाव होगा और सरकार समर्थकों के लिए ये कहना आसान हो जाएगा कि कुछ खास संगठन के किसान कानूनों के नहीं, बल्कि सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए 2 डिग्री का टॉर्चर झेल रहे हैं.
कुल मिलाकर भले ही इन 40 दिनों में कई राउंड की बातचीत आगे बढ़ी हो, लेकिन कहा जाए तो बात जहां से शुरू हुई थी वहीं पर खत्म हो जाती है. 26 नवंबर को पेच जहां फंसा हुआ था वो पेच 4 जनवरी को वहीं है. अगर किसान अपनी मांगों पर अड़े हैं तो सरकार भी अपनी जिद पर है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि किसानों और सरकार की इस जिद में कौन पहले पीछे हटता है.
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