कृषि कानूनों पर फिर से एक नई तारीख का ऐलान हुआ है. केंद्र और किसानों के बीच हुई 9वें दौर की बैठक भी बेनतीजा साबित हुई और अब बताया गया है कि 19 जनवरी दोपहर 12 बजे फिर से बातचीत होगी. यानी 10वें दौर की बातचीत होने जा रही है. लेकिन सवाल अब भी वही है कि क्या सरकार किसानों की कानून खत्म करने वाली मांग पर मानेगी? या फिर किसान संशोधन के लिए तैयार हो जाएंगे. आइए आज की बैठक के बाद किसानों और कृषि मंत्री के बयानों से समझते हैं.
केंद्र-किसानों की बैठक में क्या हुआ?
अब सुप्रीम कोर्ट की बनाई गई कमेटी को खारिज करने के बाद किसानों ने साफ कर दिया था कि वो सिर्फ सरकार से ही बातचीत करेंगे. 15 जनवरी की तारीख तय थी, तो किसान बैठक में पहुंच गए. बैठक की शुरुआत ही इससे हुई कि सरकार कानूनों को खत्म करने पर बात करे. लेकिन सरकार इस पर राजी नहीं हुई. केंद्रीय मंत्रियों ने किसानों को एक बार फिर कानूनों के बारे में समझाया और बताया कि वो कैसे उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं. लेकिन कोई सहमति नहीं बनी.
लेकिन इस बैठक के बाद एक बार फिर केंद्रीय कृषि मंत्री ने मीडिया को ये बताया कि किसान अब तक कानूनों के खिलाफ अपनी आपत्तियों को ठीक से समझा ही नहीं पाए हैं. ऐसा लगभग हर बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते आए हैं. इस बार उन्होंने किसानों को खुद अपने संगठनों का एक ग्रुप बनाने की सलाह दे डाली और कहा कि ऐसा समूह बनाएं जो ठीक तरह से कानूनों पर बात कर सकते हैं. कृषि मंत्री ने कहा,
“हमने किसानों से ये भी कहा कि अगर चाहें तो अपने बीच एक अनौपचारिक समूह बना लें, जो लोग ठीक प्रकार से कानून पर बात कर सकते हैं. सरकार से उनकी अपेक्षा क्या है, कानून में किसानों के प्रतिकूल क्या आता है? इस पर चर्चा करके अगर वो कुछ मसौदा बनाकर सरकार को दें तो सरकार उस पर खुले मन से विचार करने को तैयार है.”
9 दौर की बातचीत के बाद भी मंत्री पूछ रहे- सरकार से क्या अपेक्षा है?
अब कृषि मंत्री ने अपने इस बयान से इशारा किया है कि किसान नेता सिर्फ कानूनों को खत्म कराने पर अड़े हैं और मुद्दों पर बातचीत नहीं कर रहे हैं. उन्होंने ठीक तरह से कानूनों पर बात करने वाले लोगों का जिक्र किया, यानी जिन किसान नेताओं से बातचीत चल रही है क्या वो ठीक से बात नहीं कर पा रहे हैं? इसके अलावा तोमर ने कहा कि "किसानों का ये समूह सरकार को बताए कि- आखिर सरकार से उनकी अपेक्षा क्या है..." तो क्या पिछले करीब दो महीने में हुई 9 दौर की बातचीत में सरकार को ये भी पता नहीं चल सका है कि किसानों की सरकार के क्या अपेक्षा है? इसके बाद इसी बयान को थोड़ा आगे बढ़ाकर देखें तो कृषि मंत्री ने कहा कि- "अगर किसानों का समूह कुछ मसौदा बनाकर सरकार को दे तो सरकार उस पर खुले मन से बातचीत को तैयार है." तो क्या कानूनों को लेकर किसानों ने अब तक कोई मसौदा सरकार को नहीं दिया है?
इन तमाम सवालों के जवाब भी केंद्रीय कृषि मंत्री को देने चाहिए. क्योंकि अगर अब तक सरकार को ये भी नहीं पता है कि आखिर किसान क्या चाहते हैं और उन्हें क्या आपत्तियां हैं तो 9 दौर की बैठक में आखिर हुआ क्या?
किसानों को संशोधनों पर लाना चाहती है सरकार
लेकिन कृषि मंत्री पहले भी ऐसा ही बयान दे चुके हैं. उन्होंने पिछले बैठकों के बाद भी कहा कि किसान स्पष्ट तरीके से अपनी बात नहीं रख रहे हैं. जबकि किसानों का कहना है कि पहले दिन से ही उनकी एक ही मांग है. इसके बाद जब सरकार ने बिंदुवार आपत्तियां मांगी थी तो किसानों की तरफ से सरकार को लिखित में बताया गया था कि वो कानूनों को क्यों रद्द करवाना चाहते हैं. तो कुल मिलाकर कृषि मंत्री का ये बयान सरकार की रणनीति का एक हिस्सा है, जिसमें वो यही चाहते हैं कि किसान संशोधनों पर बातचीत करे. इससे ये भी जताने की कोशिश होती है कि कृषि कानून किसानों के खिलाफ नहीं हैं, तो इन्हें रद्द नहीं किया जा सकता है.
किसानों ने कहा- कानून खत्म करने पर ही होगी बात
अब किसानों की अगर बात करें तो उनका यही कहना है कि सरकार कानूनों को खत्म करने पर बात नहीं करना चाहती है. इसीलिए नतीजा नहीं निकल रहा है. किसानों का कहना है कि सरकार एमएसपी को कानूनी गारंटी देने को लेकर भी बात आगे नहीं बढ़ा रही है. साथ ही किसान नेताओं ने फिर से साफ किया कि वो सुप्रीम कोर्ट की बनाई गई कमेटी के सामने पेश नहीं होंगे. इसीलिए सरकार के साथ अगली तारीख तय की गई है.
किसान गणतंत्र दिवस के मौके पर एक बड़ा प्रदर्शन भी करने जा रहे हैं. इस प्रदर्शन को लेकर सरकार की तरफ से कई सवाल खड़े हो रहे हैं. कहा जा रहा है कि किसान दिल्ली में घुसने की कोशिश कर सकते हैं. 26 जनवरी के प्रदर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर हुई है. वहीं किसानों का कहना है कि अंतिम फैसला 17 जनवरी की बैठक में होगा. सभी किसान संगठन आगे की रणनीति तय करेंगे.
तो कुल मिलाकर फिलहाल दोनों पक्ष वहीं पर घूमकर आ चुके हैं, जहां दो महीने पहले थे. सरकार जहां एक बार फिर किसानों से मसौदे की मांग कर रही है, वहीं किसानों का कहना है कि कानून ही खत्म किए जाएं. इतना तो साफ हो चुका है कि सरकार किसी भी हाल में कानूनों वापस नहीं करेगी, उधर किसानों के मूड से भी फिलहाल यही लग रहा है कि वो संशोधन पर बातचीत नहीं करेंगे. इसीलिए कृषि कानूनों पर छिड़ा ये संग्राम अभी आगे भी जारी रह सकता है.
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