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कृषि मंत्री बोले- बिजनेसमैन नहीं हड़प सकते जमीन,हम बातचीत को तैयार

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कानूनों पर रखी सरकार की बात

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कृषि कानूनों को लेकर किसानों का प्रदर्शन जारी है और सरकार के प्रस्ताव को किसान खारिज कर चुके हैं. ऐसे में अब सरकार ने खुद सामने आकर किसानों के साथ हुई बातचीत और अपने प्रस्ताव की जानकारी दी है. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि उन्होंने किसानों को हर मुद्दे पर बातचीत का न्योता दिया और उनकी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की गई. इसके साथ ही उन्होंने कानून में जिन बिंदुओं पर किसानों को आपत्ति है, उन पर सरकार का स्टैंड भी बताया.

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चर्चा के बाद पास हुए बिल

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि, पिछले संसद के सत्र में भारत सरकार तीन कानून लेकर आई थी. कृषि के क्षेत्र में दो कानूनों में कृषि उपज के व्यापार से संबंधित है. इन दोनों कानूनों पर दोनों सदनों में 4-4 घंटे तक सभी दलों के सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किए. लोकसभा में पारित हुआ, राज्यसभा में जब जवाब देने की स्थिति खड़ी हुई तो प्रतिपक्ष के कुछ लोगों ने ऐसी घटना को अंजाम दिया जो देश के लिए एक काले धब्बे की तरह है. उन्होंने कहा-

दोनों कानून राष्ट्रपति के पास भेजे जाने के बाद देशभर में लागू हैं. हम सब इस बात को भलीभांति जानते हैं कि कृषि के क्षेत्र में योजनाओं के जरिए काफी कुछ करने का प्रयास किया जाता रहा है. लेकिन कृषि के क्षेत्र में निजी निवेश गांव तक और खेत तक पहुंचे. इसकी संभावना ना के बराबर थी. कानून के माध्यम से बंदिशें खुलें, इसका देशभर को इंतजार था. भारत सरकार ने पीएम मोदी के नेतृत्व में लगातार खेती किसानी आगे बढ़े, किसान की आमदनी 2022 तक दोगुनी हो, और ज्यादा अनुदान मिले... इसके लिए काम हुआ.

कृषि मंत्री ने भी एक बार फिर यूरिया को लेकर अपनी सरकार की तारीफ की और कहा- 2014 से पहले यूरिया की सीजन पर भयानक किल्लत होती थी. जब इसकी जरूरत राज्य को होती थी तो सीएम डेरा डालकर दिल्ली में बैठते थे. इसकी जमकर कालाबाजारी होती थी. कई जगहों पर पुलिस लगाकर यूरिया बांटने का काम किया जाता था. पिछले 6 साल में किसानों को यूरिया की कोई कमी नहीं हुई. इसीलिए ऐसे तमाम विषय हैं, जिन्हें 6 साल में किया गया.

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कोई नया विषय नहीं

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कृषि कानूनों का उद्देश्य है कि किसान मंडी की जंजीरों से मुक्त हो. किसान मंडी के बाहर किसी को भी कहीं भी अपना माल बेचने के लिए स्वतंत्र हो. इसके बाहर जो ट्रेड होगा, उस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा. इस पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है?

मूल्य आश्वासन की दृष्टि से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नया विषय नहीं है. इसके अनुभव भी अच्छे हैं. कानूनी प्लेटफॉर्म देने से इसका फायदा उठाएंगे. अपने जोखिम को प्रोसेस में ट्रांसफर करने में किसान सफल होगा. बुआई के समय उसे मूल्य की गारंटी मिल जाएगी. अगर विवाद भी हो तो एसडीएम 30 दिन के भीतर उसका निराकरण करेगा. साथ ही किसान के विरुद्ध फैसला जाने पर उससे सिर्फ आदान की वसूली हो सकती है. किसान की भूमि सुरक्षित रहेगी.

किसानों की तरफ से नहीं आया कोई सुझाव

नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि, इस कानून का देशभर में स्वागत हुआ. लोग नए उत्साह के साथ काम करने के लिए आए. नए कानून के अंतर्गत एसडीएम ने इस कानून के तहत तुरंत भुगतान कराया. किसान को बढ़ी हुई कीमत मिली. लेकिन बीच में इन विषयों को लेकर कुछ किसान और कुछ यूनियन आंदोलन की राह पर आ गए.

उन्होंने कहा कि, पंजाब के किसान यूनियन के लोगों के साथ 14 अक्टूबर, 13 नवंबर को बातचीत हुई. इसके साथ ही हम लोग लगातार चर्चा के लिए तैयार थे. लेकिन इसी बीच 26 और 27 के आंदोलन की घोषणा हो गई. फिर हमने 3 दिसंबर को बातचीत का निमंत्रण भेजा, क्योंकि ठंड का मौसम और कोविड का वक्त था. इसीलिए 1 दिसंबर को मीटिंग की, फिर 3 दिसंबर को बैठक की, फिर तय हुआ कि 5 दिसंबर को बातचीत होगी. इसके बाद 9 दिसंबर को भी बातचीत भी रखी गई थी. लेकिन उनकी तरफ से कोई सुझाव नहीं आया. फिर हमने सोचा कि जब किसान आखिर में यही चाहते हैं कि कानून को रद्द कर दो, हमारी हमेशा प्राथमिकता रही कि मुद्दों पर चर्चा हो. फिर हम लोगों ने उन्हें मुद्दे चिन्हित करके बताए. हम लोगों ने प्रस्ताव बनाकर भेजा.

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केंद्रीय कृषि मंत्री ने आगे कहा कि, किसानों की मांग थी कि कानून रद्द हों, लेकिन हमने कहा कि जिन बिंदुओं पर आपत्ति है उन पर समाधान निकाला जाएगा. कुछ लोगों ने कहा कि ये कानून वैध नहीं है, कृषि राज्य का विषय है और केंद्र इस पर कानून नहीं बना सकती है. इस पर उन्हें समझाया गया कि ट्रेड पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र को है. इससे एमएसपी और एपीएमसी पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

किसानों की दिक्कतें और सरकार का समाधान

  • इसी तरह नए ट्रेड एक्ट को लेकर एपीएमसी को लेकर शक था, उन्हें लगा कि मंडियां दिक्कत में फंस जाएंगी. हमने बताया कि टैक्स अगर लगाया जाता है तो व्यापारी उसकी वसूली किसान से ही करता है. लेकिन अगर फिर भी दिक्कत है तो हम इस पर चर्चा करने को तैयार हैं. इस आशंका को भी दूर करने की कोशिश की गई.
  • एक्ट में ये प्रावधान था कि पैन कार्ड से ही खरीद हो सकेगी. इससे इंस्पेक्टर राज और लाइसेंस राज से बचा जा सकता है. लेकिन उन्हें लगा कि कोई भी खरीदकर भाग जाएगा तो क्या करेंगे? इस पर हमने कहा कि इसके समाधान के लिए राज्य सरकारों को नियम बनाने की शक्ति प्रदान की जाएगी.
  • दूसरा विवाद निपटारे के लिए एसडीएम के पास जाने को लेकर आशंका थी. हमें लगता था कि गांव में किसान के सबसे नजदीक मजिस्ट्रियल पावर वाला कोई है तो वो एसडीएम ही है. बाकी सब कुछ किसान से दूरी पर होती है. कोर्ट में किसान जाएगा तो वकील करना पड़ेगा और समय भी लगेगा. इसीलिए एसडीएम का विषय रखा गया था. हमने कहा कि न्यायालय जाने की व्यवस्था का विकल्प दिया जाएगा.

बिजनेसमैन नहीं कर सकते जमीन पर कब्जा

  • मीडिया के सामने एक बात ये भी कही जाती है कि किसानों की भूमि पर बड़े उद्योगपति कब्जा कर लेंगे. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कई राज्यों में चल रही है और अब तक कोई ऐसा केस नहीं आया है. इस कानून में प्रावधान किया गया है कि जो एग्रीमेंट होगा, वो किसान की फसल और प्रोसेसर के बीच ही होगा. किसान की जमीन से संबंधित कोई करार नहीं हो सकता है. अगर खेत में कोई संरचना खड़ी भी करनी पड़े तो एग्रीमेंट खत्म होने के बाद उसे हटाना पड़ेगा. उस जमीन का मालिकाना हक किसान के पास ही होगा. ऐसा भी कहा गया कि अगर उस संरचना पर लोन लिया गया हो तो क्या होगा? इस पर हमने कहा कि उस पर लोन नहीं लिया जा सकता है.
  • एक मुद्दा ये भी था कि एमएसपी की खरीद के मामले में जो आशंका थी, इसे लेकर पीएम ने और खुद मैंने कहा कि एमएसपी पर कोई खतरा नहीं है. इस साल खरीद काफी अच्छी हुई है. मोदी जी के नेतृत्व में इसे डेढ़ गुना किया गया है. एमएसपी से किसानों को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा मिल सके इसे लेकर हम प्रतिबद्ध हैं. हम लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार हैं.
  • एक बिजली वाला विषय भी था. उन्हें लगता है कि ये एक्ट किसान के लिए तकलीफ पैदा करेगा. इस बारे में हमने बताया कि किसानों को सब्सिडी की व्यवस्था वैसे ही रहेगी जैसे पहले थी.
  • पराली वाले किसानों के समाधान को लेकर भी बात कही गई.

प्रस्ताव पर चर्चा के बाद बातचीत करें किसान

कृषि मंत्री ने कहा कि, उन लोगों ने प्रस्ताव मिलने के बाद कोई फैसला नहीं लिया. इसे लेकर मेरे मन में कष्ट है. किसान ठंड में इतनी तादाद में यहां बैठे हैं. इसीलिए हम लोगों की लगातार कोशिश है और मैं आग्रह करना चाहता हूं कि आप सभी ने जो प्रश्न उठाए थे उन्हें लेकर प्रस्ताव भेजा गया है. उन पर विचार करें और भारत सरकार चर्चा के लिए हमेशा तैयार है. किसानों को कहना चाहता हूं कि पूरा देश इस देश का साक्षी है कि 2006 में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट आई थी, इसके बाद लंबे समय तक एमएसपी को डेढ़ गुना करने का इंतजार हुआ. मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ये मुमकिन हुआ.

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