भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन के चेहरे रहे अन्ना हजारे ने कृषि कानूनों के विरोध में प्रस्तावित अपना अनशन रद्द कर दिया है. शनिवार से वो भूख हड़ताल शुरू करने जा रहे थे कि शुक्रवार को ही महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस की मौजूदगी में ऐलान कर दिया कि अब अनशन रद्द है.
ऐसा कहा जा रहा है कि केंद्रीय कृषि मंत्री कैलाश चौधरी और देवेंद्र फडणवीस ने केंद्र सरकार की तरफ से जो प्रस्ताव रखे, उससे आश्वत होकर अन्ना हजारे ने ये फैसला किया है.
अब अन्ना हजारे के इस फैसले के बाद कुछ पार्टियों के नेता और सोशल मीडिया पर ये सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर ये 'यू-टर्न' क्यों लिया गया.
शिवसेना के मुखपत्र सामना में अन्ना हजारे पर सवाल है कि 'अन्ना किसकी और है !’ - इसी हेडलाइन से अन्ना हजारे पर निशाना साधा गया है. संपादकीय में आगे लिखा गया है कि मनमोहन सिंह सरकार में तो अन्ना हजारे दो बार दिल्ली आए और आंदोलन भी किया लेकिन 7 साल के मोदी सरकार के दौरान लॉकडाउन और नोटबंदी जैसे फैसलों से जनता परेशान हुई लेकिन अन्ना ने सुध नहीं ली.
आखिर कैसे रद्द हुआ अन्ना का ये अनशन?
एक तरफ दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के बाद, अब अन्ना हजारे का आमरण अनशन केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाला था. ऐसे में केंद्र सरकार हरकत में आई. पिछले एक हफ्ते से बीजेपी नेता अन्ना के गांव रालेगण सिद्धि के चक्कर काट रहे थे. पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस अन्य बीजेपी नेताओं के साथ अन्ना की मांगों पर लगातार चर्चा कर रहे थे. नतीजा ये रहा कि शुक्रवार को केंद्रीय राज्य मंत्री कैलाश चौधरी की उपस्थिति में हुई बैठक के बाद अन्ना ने आखिरकार अनशन को शुरू होने से पहले ही स्थगित कर दिया.
अन्ना की उठाई 15 प्रमुख मांगों में स्वामीनाथन आयोग के रिपोर्ट के हिसाब से किसानों की लागत का 50 फीसदी मूल्य मिलने की मांग सबसे अहम थी. साथ ही कृषि मूल्य आयोग को स्वायत्तता और संवैधानिक दर्जे की मांग अन्ना कर रहे हैं. जिससे किसानों के हित में निर्णय लेने में केंद्र का हस्तक्षेप खत्म हो जाए. MSP बढ़ाने को लेकर भी अन्ना ने केंद्र सरकार को कई पत्र लिखे. लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला था.
समिति के गठन का फैसला
ऐसे में केंद्र सरकार की तरफ से इन मांगों पर अब केंद्रीय कृषि मंत्री की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार समिति का गठन करने का निर्णय लिया गया है. जिसमें नीति आयोग के सदस्यों सहित अन्ना जिन नामों की सिफारिश करेंगे, वैसे एक्सपर्ट्स को शामिल किया जाएगा. अगले 6 महीनों में अन्ना की मांगों पर ठोस कदम उठाने का आश्वासन सरकार ने दिया है. तब जाकर अन्ना हजारे ने भूख हड़ताल रद्द करने का फैसला लिया.
अन्ना के फैसले पर लगातार उठ रहे सवाल
सोशल मीडिया पर अन्ना के फैसले को लेकर सवाल उठ रहे हैं. एक उदाहरण के तौर पर बात करें तो सियासी मुद्दों पर मुखर रहने वाले निर्देशक हंसल मेहता लिखते हैं कि 'मैंने अन्ना हजारे का समर्थन किया था, हर किसी से गलती हो जाती है.'
दरअसल, 2014 से पहले भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल कानून के लिए अन्ना हजारे ने किए आंदोलन ने देश को झकझोर कर रख दिया था. छात्र-प्रोफेशनल से लेकर हर तबके के लोगों को इस आंदोलन का समर्थन मिला था.
सिर्फ, वही आंदोलन नहीं महाराष्ट्र में अन्ना हजारे के किए अनशन के बाद एनसीपी सरकार के दो मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा था. श्रम मंत्री नवाब मालिक और उच्च शिक्षा मंत्री सुरेश जैन पर हुए भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद गठित पी.बी. सावंत कमिटी की रिपोर्ट में दोनों दोषी पाए गए थे. जिसके चलते कांग्रेस - एनसीपी की सरकार को बड़ा झटका लगा था.
2014 के बाद बीजेपी का सरकार आई है. अब शिवसेना का कहना है कि
“मनमोहन सरकार के दौरान अन्ना ने दो बार दिल्ली में जोरदार प्रदर्शन किए. इस आंदोलन की मशाल में तेल डालने का काम बीजेपी कर रही थी. लेकिन पिछले सात सालों में मोदी सरकार के नोटबंदी से लेकर लॉकडाउन तक कई निर्णयों से जनता बेजार हुई. लेकिन अन्ना ने करवट तक नही बदली.”
संपादकीय में आगे पूछा गया है कि, " फिलहाल देश मे किसानों पर दमन का चक्र शुरू है. उसे लेकर एक निर्णायक भूमिका अख्तियार करने के दृष्टिकोण से अन्ना ने किसानों की बुनियादी मांगों पर अनशन की घोषणा की है ऐसा फिर एक बार देश को लगा था. लेकिन बीजेपी के नेताओं के साथ हुई चर्चा के बाद अन्ना संतुष्ट हुए तो ये उनकी समस्या है. इसलिए अब अन्ना साफ कर दें कि वे सरकार की तरफ से हैं या फिर किसानों की तरफ से? क्या अब रामराज अवतरित हो गया है?"
अन्ना पर उठते सवालों पर बीजेपी भी सतर्क है. महाराष्ट्र में बीजेपी के विधायक गिरीश महाजन ने क्विंट हिंदी से कहा है कि "अन्ना तो लोकतंत्र और किसानों की हित मे काम करने वाले समाजसेवी हैं. अन्ना की मांगों को केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया है. कृषि बजट में बढ़ोतरी, कोल्ड स्टोरेज और वेयर हाउसेस को बढ़ावा, MSP में बढ़त और किसान सन्मान निधि के जरिये किसानों को न्यूनतम इनकम सपोर्ट की मांगों पर काम किया है. कुछ और मांगों के लिए भी सरकार कदम उठा रही है. ऐसे में 84 साल के अन्ना को सिर्फ अनशन के लिए उकसाना और केंद्र सरकार को अड़चन में लाना यही कुछ लोगो की मंशा है. चर्चा के बाद आंदोलन पीछे लेना लोकतंत्र का ही हिस्सा है."
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