26 जनवरी को किसानों की ट्रेक्टर परेड ने दिल्ली की सड़कों पर कब्जा कर लिया. दिल्ली की सड़कों पर हर तरफ किसान ही किसान दिखाई दिए. किसानों के इस जमावड़े ने 32 साल पहले हुए इसी तरह के आंदोलन की याद दिला दी. तब किसानों ने दिल्ली के विजय चौक से लेकर इंडिया गेट पर कब्जा कर लिया था.
क्या था पूरा मामला ?
बात 25 अक्टूबर 1988 की है. पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसानों ने फसलों के उचित मूल्य, बिजली बिल को कम करने जैसी 35 सूत्रीय मांगों को लेकर दिल्ली कूच कर दिया था. प्रशासन ने किसानों को रोकने के लिए लोनी बॉर्डर पर फायरिंग कर दी जिसमे 2 किसानों की मौत हो गई. इससे किसानों का गुस्सा भड़क गया.
उस वक्त बोट क्लब में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि के आयोजन की तैयारियां चल रही थी. किसानों ने आयोजन के लिए बने मंच पर ही कब्जा कर लिया था. किसानों ने अपने ट्रैक्टर और बैल गाड़ियां भी बोट क्लब में खड़े कर दी थीं. लाठीचार्ज के बाद भी किसान नहीं हटे तो सरकार को आयोजन स्थल ही बदलना पड़ा.
करीब 14 राज्यों के 5 लाख किसानों ने उस वक्त दिल्ली में डेरा जमाया था. आखिरकार केंद्र सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा. सरकार ने किसानों की सभी मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया उसके बाद बोट क्लब का धरना 31 अक्टूबर 1988 को खत्म हुआ.
कौन कर रहा था आंदोलन का नेतृत्व
किसानों के उस आंदोलन का नेतृत्व महेंद्र सिहं टिकैत कर रहे थे. उन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता है. किसानों के बीच उनकी लोकप्रियता इस कदर थी कि उनकी एक आवाज़ पर ही लाखों किसान इकट्ठा हो जाते थे. अभी दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के प्रवक्ता राकेश टिकैत उन्हीं के बेटे है. मई 2011 में महेंद्र सिंह टिकैत का निधन हो गया.
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